No: 45 Dated: Oct, 06 1860

भारतीय दण्ड संहिता (IPC) भारत के किसी भी नागरिक द्वारा किये गये अपराधों की परिभाषा व दण्ड का प्रावधान करती है। परन्तु यह संहिता भारतीय सेना पर लागू नहीं होती। अनुच्छेद 370 हटने के बाद जम्मू एवं कश्मीर में भी अब भारतीय दण्ड संहिता (IPC) लागू है। [Act 34 of 2019]

भारतीय दण्ड संहिता ब्रिटिश हुकूमत में सन् 1860 में लागू हुई। भारत के स्वतन्त्र होने के बाद इसमे समय-समय पर संशोधन होते रहे। वर्तमान में, भारतीय दण्ड संहिता में 23 अध्याय और 511 धाराएं हैं।

भारतीय दण्ड संहिता, 1860

[ INDIAN PENAL CODE, 1860 ]

[ 1860 का अधिनियम संख्यांक 45 ]

भाग 1

[ 6 अक्टूबर 1860 ]

 अध्याय 1

प्रस्तावना

उद्देशिका -  भारत के लिए एक साधारण दण्ड संहिता का उपबन्ध करना समीचीन है। अतः यह निम्नलिखित रूप में अधिनियमित किया जाता है।

1. संहिता का नाम और उसके प्रवर्तन का विस्तार - यह अधिनियम भारतीय दण्ड संहिता कहलाएगा और इसका विस्तार सम्पूर्ण भारत पर होगा। [The words "except the State of Jammu and Kashmir" omitted by Act 34 of 2019, s. 95 and the Fifth Schedule (w.e.f. 31-10- 2019)]

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 Indian Penal Code (IPC) in Hindi (See - PDF)

 भारतीय दंड संहिता हिंदी में

दण्ड विधि (मध्यप्रदेश संशोधन) विधेयक 2021

दण्ड विधि(मध्यप्रदेश संशोधन) विधेयक 2019

भारतीय साक्ष्य अधिनियम ,1872

Criminal Law (Amendment) Act, 2018

Criminal Procedure Code 1973 [CrPC] With State Amendments [Hindi & English]

भारतीय दंड संहिता से संबंधित नवीनतम निर्णय 

 

Also Read - INDIAN PENAL CODE, 1860 (IPC) in Hindi and English - PDF

 

2. भारत के भीतर किए गए अपराधों का दण्ड - 

हर व्यक्ति इस संहिता के उपबन्धों के प्रतिकूल हर कार्य या लोप के लिए जिसका वह भारत के भीतर दोषी होगा, इसी संहिता के अधीन दण्डनीय होगा अन्यथा नहीं।

3. भारत से परे किए गए किन्तु उसके भीतर विधि के अनुसार विचारणीय अपराधों का दण्ड–

भारत से परे किए गए अपराध के लिए जो कोई व्यक्ति किसी भारतीय विधि के अनुसार विचारण का पात्र हो, भारत से परे किए गए किसी कार्य के लिए उससे इस संहिता के उपबन्धों के अनुसार ऐसा बरता जाएगा मानो वह कार्य भारत के भीतर किया गया था।

4. राज्यक्षेत्रातीत अपराधों पर संहिता का विस्तार -

इस संहिता के उपबन्ध -

(1) भारत से बाहर और परे किसी स्थान में भारत के किसी नागरिक द्वारा;

(2) भारत में रजिस्ट्रीकृत किसी पोत या विमान पर, चाहे वह कहीं भी हो किसी व्यक्ति द्वारा किए गए किसी अपराध को भी लागू है।

(3) भारत में स्थित कम्प्यूटर संस्थान को लक्ष्य करके भारत के बाहर और परे किसी स्थान में अपराध कारित करने वाले किसी व्यक्ति के द्वारा दिये गये किसी अपराध को भी लागू होगा।

स्पष्टीकरण- इस धारा में -

(क) "अपराध" शब्द के अन्तर्गत भारत से बाहर किया गया ऐसा हर कार्य आता है जो यदि भारत में किया जाता तो, इस संहिता के अधीन दण्डनीय होता है;

(ख) पद "कम्प्यूटर साधन” का वही अर्थ होगा, जो उसे सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 (2000 का 21) की यदि 2 की उपधारा (1) खण्ड (त) में उसे समनुदेशित है।

दृष्टांत

क, जो भारत का नागरिक है उगाण्डा में हत्या करता है वह भारत के किसी स्थान में, जहाँ वह पाया जाए, हत्या के लिए विचारित और दोषसिद्ध किया जा सकता है.

5. कुछ विधियों पर इस अधिनियम द्वारा प्रभाव न डाला जाना — इस अधिनियम में की कोई बात भारत सरकार की सेवा के आफिसरों, सैनिकों, नौसैनिकों या वायु सैनिकों द्वारा विद्रोह और अभित्यजन को दण्डित करने वाले किसी अधिनियम के उपबन्धों, या किसी विशेष या स्थानीय विधि के उपबन्धों, पर प्रभाव नहीं डालेगी।

अध्याय 2

साधारण स्पष्टीकरण

[General Explanations]

6. संहिता में की परिभाषाओं का अपवादों के अध्यधीन समझा जाना -

इस संहिता में सर्वत्र, अपराध की हर परिभाषा हर दण्ड उपबन्ध और, हर ऐसी परिभाषा या दण्ड उपबन्ध का हर दष्टान्त,"साधारण अपवाद" शीर्षक वाले अध्याय में अन्तर्विष्ट अपवादों के अध्यधीन समझा जायेगा, चाहे उन अपवादों को ऐसी परिभाषा, दण्ड उपबन्ध या दृष्टान्त में दुहराया न गया हो।

दृष्टान्त

(क) इस संहिता की वे धाराएँ, जिनमें अपराधों की परिभाषाएँ अन्तर्विष्ट है, यह अभिव्यक्त नहीं करती कि सात वर्ष से कम आयु का शिशु ऐसे अपराध नहीं कर सकता, किन्तु परिभाषाएँ उस साधारण अपवाद के अध्यधीन समझी जाती हैं जिसमें यह उपबन्धित कोई बात, जो सात वर्ष से कम आयु के शिशु द्वारा की जाती है, अपराध नहीं है।

(ख) क, एक पुलिस आफिसर, वारण्ट के बिना, य को, जिसने हत्या की है, पकड़ लेता है। यहाँ क सदोष परिरोध के अपराध का दोषी नहीं हैं, क्योंकि वह य को पकड़ने के लिए विधि द्वारा आबद्ध था, और इसलिए यह मामला उस साधारण अपवाद के अन्तर्गत आ जाता है, जिसमें यह उपबन्धित है कि “कोई बात अपराध नहीं है जो किसी ऐसे व्यक्ति द्वारा की जाए जो उसे करने के लिए विधि द्वारा आबद्ध हो"। 

7. एक बार स्पष्टीकृत पद का भाव - हर पद, जिसका स्पष्टीकरण इस संहिता के किसी भाग में किया गया है, इस संहिता के हर भाग में उस स्पष्टीकरण के अनुरूप ही प्रयोग किया गया है।

8. लिंग - पुल्लिंग वाचक शब्द जहाँ प्रयोग किया गया है, वे हर व्यक्ति के बारे में लागू हैं, चाहे नर हो या नारी।

9. वचन - जब तक कि संदर्भ से तत्प्रतिकूल प्रतीत न हो, एक वचन द्योतक शब्दों के अन्तर्गत बहुवचन आता है, और बहुवचन द्योतक शब्दों के अन्तर्गत एकवचन आता है।

10. पुरुष, स्त्री -

"पुरुष" शब्द किसी भी आयु के मानव नर का ध्योत्तक है; "स्त्री" शब्द किसी भी आयु की मानव नारी का द्योत्तक है।

11. "व्यक्ति” -

कोई भी कम्पनी या संगम, या व्यक्ति निकाय चाहे वह निगमित हो या नहीं, " व्यक्ति" शब्द के अन्तर्गत आता है।

12. "लोक" -

लोक का कोई भी वर्ग या कोई भी समुदाय "लोक" शब्द के अन्तर्गत आता है।

13. क्वीन - 

विधि अनुकूलन आदेश, 1950 द्वारा निरसित।

14. "सरकार का सेवक" -

"सरकार का सेवक" शब्द सरकार के प्राधिकार के द्वारा या अधीन, भारत के भीतर उस रूप में बने रहने दिए गए, नियुक्त किए गए, या नियोजित किए गए किसी भी आफिसर या सेवक के ध्योत्तक है।

15. "ब्रिटिश इण्डिया" की परिभाषा -

विधि अनुकूलन आदेश, 1937 द्वारा निरसित.

16. "भारत सरकार" -

भारत सरकार (भारतीय विधि अनुकूलन) आदेश, 1937 द्वारा निरसित ।

17. सरकार - 

"सरकार" शब्द केन्द्रीय सरकार या किसी राज्य की सरकार का ध्योत्तक है।

18. "भारत" - 

"भारत" से जम्मू-कश्मीर राज्य के सिवाय भारत का राज्य क्षेत्र अभिप्रेत है।

19. "न्यायाधीश" -

"न्यायाधीश" शब्द न केवल हर ऐसे व्यक्ति का ध्योत्तक है, जो पद रूप से न्यायाधीश अभिहित हो, किन्तु उस हर व्यक्ति का भी ध्योत्तक है, जो किसी विधि-कार्यवाही में, चाहे वह सिविल हो या दाण्डिक, अन्तिम निर्णय या ऐसा निर्णय, जो उसके विरुद्ध अपील न होने पर अंतिम हो जाए या ऐसा निर्णय, जो किसी अन्य प्राधिकारी द्वारा पुष्ट किए जाने पर अन्तिम हो जाए, देने के लिए विधि द्वारा सशक्त किया गया हो अथवा

जो उस व्यक्ति-निकाय में से एक हो, जो व्यक्ति-निकाय ऐसा निर्णय देने के लिए विधि द्वारा सशक्त किया गया हो।

दृष्टान्त

(क) सन् 1859 के अधिनियम 10 के अधीन किसी वाद में अधिकारिता का प्रयोग करने वाला कलेक्टर न्यायाधीश है।

(ख) किसी आरोप के सम्बन्ध में, जिसके लिए उसे जुर्माना या कारावास का दण्ड देने की शक्ति प्राप्त है, चाहे उसकी अपील होती हो या न होती हो, अधिकारिता का प्रयोग करने वाला मजिस्ट्रेट न्यायाधीश है।

(ग) मद्रास संहिता के सन् 1816 के विनियम 7 के अधीन वादों का विचारण करने की और अवधारणा करने की शक्ति रखने वाली पंचायत का सदस्य न्यायाधीश है।

(घ) किसी आरोप के सम्बन्ध में, जिनके लिए उसे केवल अन्य न्यायालय को विचारणार्थ सुपुर्द करने की शक्ति प्राप्त है, अधिकारिता का प्रयोग करने वाला मजिस्ट्रेट न्यायाधीश नहीं है।

20. "न्यायालय" - 

"न्यायालय" शब्द उस न्यायाधीश का, जिसे अकेले ही को न्यायिकतः कार्य करने के लिए विधि द्वारा सशक्त किया गया हो, या उस न्यायाधीश निकाय का, जिसे एक निकाय के रूप में न्यायिकतः कार्य करने के लिए विधि द्वारा सशक्त किया गया हो, जबकि ऐसा न्यायाधीश या न्यायाधीश निकाय न्यायिकतः कार्य कर रहा है, ध्योत्तक है।

दृष्टान्त

मद्रास संहिता के सन् 1816 के विनियम 7 के अधीन कार्य करने वाली पंचायत जिसे वादों का विचारण करने और अवधारण करने की शक्ति प्राप्त है, न्यायालय है।

21. "लोक सेवक" - 

"लोक सेवक" शब्द उस व्यक्ति का ध्योत्तक है जो एतस्मिन् पश्चात् निम्नगत वर्णनों में से किसी में आता है, अर्थात् -

दूसरा -- भारत की सेना नौसेना या वायुसेना का हर आयुक्त आफिसर;

तीसरा - हर न्यायाधीश जिसके अन्तर्गत ऐसा कोई भी व्यक्ति आता है जो किन्हीं न्याय निर्णायिक कृत्यों का चाहे स्वयं या व्यक्तियों के किसी निकाय के सदस्य के रूप में निर्वहन करने के लिए विधि द्वारा शक्त किया गया हो;

चौथा - न्यायालय का हर आफिसर जिसके अन्तर्गत समापक, रिसीवर या कमिश्नर आता है, जिसका ऐसे आफिसर के नाते यह कर्तव्य हो कि वह विधि या तथ्य के किसी मामले में अन्वेषण या रिपोर्ट करे, या कोई दस्तावेज बनाए, अधिप्रमाणीकृत करे, या रखे, या किसी सम्पति का भार सम्भाले या उस सम्पति का व्ययन करे, या किसी न्यायिक आदेशिका का निष्पादन करे, या कोई शपथ ग्रहण कराए या निर्वचन करे, या न्यायालय में व्यवस्था बनाए रखे और हर व्यक्ति, जिसे ऐसे कर्तव्यों में से किन्हीं का पालन करने का प्राधिकार न्यायालय द्वारा विशेष रूप से दिया गया हो;

पांचवा - किसी न्यायालय या लोक-सेवक की सहायता करने वाला हर जूरी सदस्य, असेसर या पंचायत का सदस्य।

छटा - हर मध्यस्थ या अन्य व्यक्ति, जिसको किसी न्यायालय द्वारा, या किसी अन्य सक्षम लोक प्राधिकारी द्वारा कोई मामला या विषय, विनिश्चय या रिपोर्ट के लिए निर्देशित किया गया हो।

सातवां - हर व्यक्ति जो किसी ऐसे पद को धारण करता हो, जिसके आधार से वह किसी व्यक्ति को परिरोध में करने या रखने के लिए सशक्त हो।

आठवां - सरकार का हर आफिसर जिसका ऐसे आफिसर के नाते यह कर्तव्य हो कि वह अपराधों का निवारण करे, अपराधों की इत्तिला दे, अपराधियों को न्याय के लिए उपस्थित करे, या लोक के स्वास्थ्य, क्षेम या सुविधा की संरक्षा करे।

नवां - हर आफिसर जिसका ऐसे आफिसर के नाते यह कर्तव्य हो कि वह सरकार की ओर से किसी सम्पत्ति को ग्रहण करे, प्राप्त करे, रखे, या व्यय करे, या सरकार की ओर से कोई सर्वेक्षण, निर्धारण या संविदा करे, या किसी राजस्व आदेशिका का निष्पादन करे या सरकार के धन सम्बन्धी हितों पर प्रभाव डालने वाले किसी मामले में अन्वेषण या रिपोर्ट करे या सरकार के धन सम्बन्धी हितों से सम्बन्धित किसी दस्तावेज को बनाए, अधिप्रमाणीकृत करे या रखे, या सरकार के धन-सम्बन्धी हितों की संरक्षा के लिए किसी विधि के व्यतिक्रम को रोके।

दसवां - हर आफिसर, जिसका ऐसे आफिसर के नाते यह कर्तव्य हो कि वह किसी ग्राम, नगर या जिले के किसी धर्मनिरपेक्ष सामान्य प्रयोजन के लिए किसी सम्पत्ति को ग्रहण करे, प्राप्त करे, रखे, या व्यय करे, कोई सर्वोक्षण या निर्धारण करे, या कोई रेट या कर उद्गृहीत करे, या किसी ग्राम, नगर या जिले के लोगों के अधिकारों के अभिनिश्चयन के लिए कोई दस्तावेज बनाए, अधिप्रमाणीकृत करे या रखे।

ग्यारहवां - हर व्यक्ति जो कोई ऐसा पद धारण करता हो जिसके आधार से वह निर्वाचक नामावली तैयार करने, प्रकाशित करने, बनाए रखने या पुनरीक्षित करने के लिए या निर्वाचन या निर्वाचन के किसी भाग को संचालित करने के लिए सशक्त हो;

बारहवां - हर व्यक्ति, जो –

          (क) सरकार की सेवा या वेतन में हो, या किसी लोक-कर्तव्य के पालन के लिए सरकार से फीस या कमीशन के रूप में पारिश्रमिक पाता हो।

         (ख) स्थानीय प्राधिकारी की, अथवा केन्द्र, प्रान्त या राज्य के अधिनियम के द्वारा या अधीन स्थापित निगम की अथवा कम्पनी अधिनियम, 1956 (1956 का 1) की धारा 617 में यथा परिभाषित सरकारी कम्पनी की, सेवा या वेतन में हो।

दृष्टान्त

नगरपालिका आयुक्त लोक सेवक है।

स्पष्टीकरण 1 - ऊपर के वर्णनों में से किसी में आने वाले व्यक्ति लोक सेवक हैं, चाहे वे सरकार द्वारा नियुक्त किए गए हों या नहीं।

स्पष्टीकरण 2 - जहाँ कहीं "लोक सेवक" शब्द आए हैं, वे उस हर व्यक्ति के सम्बन्ध में समझे जायेंगे जो लोक सेवक के ओहदे को वास्तव में धारण किए हुए हों, चाहे उस ओहदे को धारण करने के उसके अधिकार में कैसी ही विधिक त्रुटि हो।

स्पष्टीकरण 3 - "निर्वाचन" शब्द ऐसे किसी विधायी, नगरपालिका या अन्य लोक प्राधिकारी के नाते, चाहे वह कैसे ही स्वरूप का हो, सदस्यों के वरणार्थ निर्वाचन का ध्योत्तक है जिसके लिए वरण करने की पद्धति किसी विधि के द्वारा या अधीन निर्वाचन के रूप में निहित की गई हो।

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राज्य संशोधन

राजस्थान - भा० द० संहिता की धारा 21 राजस्थान में यथा प्रयोज्य खण्ड बारहवाँ के पश्चात् निम्नलिखित नवीन खण्ड जोड़े जाएँगे, यथा -

तेरहवाँ - प्रत्येक व्यक्ति जो किसी विधि के अन्तर्गत अनुमोदित अथवा मान्यता प्राप्त किसी परीक्षा को सम्पादित कराने के लिए और उसकी देख-रेख करने के लिए किसी लोक निकाय द्वारा नियुक्त किया गया या लगाया गया है।

स्पष्टीकरण - अभिव्यक्ति लोक निकाय में सम्मिलित हैं -

(क) विश्वविद्यालय शिक्षा परिषद या अन्य निकाय चाहे वह केन्द्र अथवा राज्य के अन्तर्गत स्थापित हुआ ओ अथवा भारतीय संविधान के उपबन्धों द्वारा सरकार द्वारा गठित किया गया हो।

(ख) "एक स्थानीय प्राधिकारी" [राजस्थान अधि० सं० 4 सन् 1993 धारा 2 प्रभावी 11-2-1993]

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22. "जंगम सम्पत्ति" -

"जंगम सम्पत्ति" शब्दों से यह आशयित है कि इनके अन्तर्गत हर भाँति की मूर्त सम्पत्ति आती है, किन्तु भूमि और वे चीजें, जो भूबद्ध हों या भूबद्ध किसी चीज से स्थायी रूप से जकड़ी हुई हों, इनके अन्तर्गत नहीं आती।

23. "सदोष अभिलाभ" -

"सदोष अभिलाभ" विधि विरुद्ध साधनों द्वारा ऐसी सम्पत्ति का अभिलाभ है, जिसका वैध रूप से हकदार अभिलाभ प्राप्त करने वाला व्यक्ति न हो।

"सदोष हानि" - "सदोष हानि" विरुद्ध साधनों द्वारा ऐसी सम्पत्ति की हानि है, जिसका वैध रूप से हकदार हानि उठाने वाला व्यक्ति हो।

सदोष अभिलाभ प्राप्त करना - सदोष हानि उठाना -  कोई व्यक्ति सदोष अभिलाभ प्राप्त करता है, यह तब कहा जाता है जब कि वह व्यक्ति सदोष रखे रखता है तब भी जब कि वह व्यक्ति सदोष अर्जन करता है। कोई व्यक्ति सदोष हानि उठाता है, यह तब कहा जाता है जबकि उसे किसी सम्पति से सदोष अलग रखा जाता है और तब भी जबकि उसे किसी सम्पत्ति से सदोष वंचित किया जाता है।

24. “बेईमानी से" -

जो कोई इस आशय से कोई कार्य करता है कि एक व्यक्ति को सदोष अभिलाभ कारित करे या अन्य व्यक्ति को सदोष हानि कारित करे, वह उस कार्य को “बेईमानी से" करता है, यह कहा जाता है।

25. “कपटपूर्वक” -

कोई व्यक्ति किसी बात को कपटपूर्वक करता है, यह कहा जाता है, यदि वह उस बात को कपट करने के आशय से करता है, किन्तु अन्यथा नहीं।

26. “विश्वास करने का कारण” -

कोई व्यक्ति किसी बात के “विश्वास करने का कारण” रखता है, यह तब कहा जाता है, जब यह उस बात के विश्वास करने का पर्याप्त हेतुक रखता है, अन्यथा नहीं।

27. “पत्नी, लिपिक या सेवक के कब्जे में संपत्ति” -

जबकि संपत्ति किसी व्यक्ति के निमित्त उस व्यक्ति की पत्नी, लिपिक या सेवक के कब्जे में है, तब वह इस संहिता के अर्थ के अन्तर्गत उस व्यक्ति के कब्जे में है।

स्पष्टीकरण -- लिपिक या सेवक के नाते अस्थायी रूप से या किसी विशिष्ट अवसर पर नियोजित व्यक्ति इस धारा के अर्थ के अन्तर्गत लिपिक या सेवक है।

28. “कूटकरण” -

जो व्यक्ति एक चीज को दूसरी चीज के सदृश इस आशय से करता है कि वह उस सदृश से प्रवंचना करे, या यह संभाव्य जानते हुए करता है कि तद्द्वारा प्रवंचना की जाएगी, वह 'कूटकरण' करता है, यह कहा जाता है।

स्पष्टीकरण 1- कूटकरण के लिए यह आवश्यक नहीं है कि नकल ठीक वैसी ही हो।

स्पष्टीकरण 2- जबकि कोई व्यक्ति एक चीज को दूसरी चीज के सदृश कर दे और सदृश ऐसा है कि तद्द्वारा किसी व्यक्ति को प्रवंचना हो सकती हो, तो जब तक कि तत्प्रतिकूल साबित न किया जाए, यह उपधारणा की जाएगी कि जो व्यक्ति एक चीज को दूसरी चीज के इस प्रकार सदृश बनाता है उसका आशय उस सदृश द्वारा प्रवंचना करने का था या वह यह संभाव्य जानता था कि एतद्वारा प्रवंचना की जाएगी।

29. “दस्तावेज” -

“दस्तावेज” शब्द किसी भी विषय का द्योतक है जिसको किसी पदार्थ पर अक्षरों, अंकों या चिन्हों के साधन द्वारा, या उनमें एक से अधिक साधनों द्वारा अभिव्यक्त या वर्णित किया गया हो जो उस विषय के साक्ष्य के रूप में उपयोग किए जाने को आशयित हो या उपयोग किया जा सके।

स्पष्टीकरण 1- यह तत्वहीन है कि किस साधन द्वारा या किस पदार्थ पर अक्षर, अंक या चिन्ह बनाए गए हैं या यह कि साक्ष्य किसी न्यायालय के लिए आशयित है या नहीं, या उसमें उपयोग किया जा सकता है या नहीं।

दृष्टांत 

किसी संविदा के निबंधनों को अभिव्यक्त करने वाला लेख, जो उस संविदा के साक्ष्य के रूप में उपयोग किया जा सके, दस्तावेज है।

बैंककार पर दिया गया चैक दस्तावेज है।

मुख्तारनामा दस्तावेज है।

मानचित्र या रेखांक, जिसको साक्ष्य के रूप में उपयोग में लाने का आशय हो या जो उपयोग में लाया जा सके, दस्तावेज है।

जिस लेख में निर्देश या अनुदेश अन्तर्विष्ठ हो, वह दस्तावेज है।

स्पष्टीकरण 2 - अक्षरों, अंकों या चिन्हों से जो कुछ भी वाणिज्यिक या अन्य प्रथा के अनुसार व्याख्या करने पर अभिव्यक्त होता है, वह इस धारा के अर्थ के अन्तर्गत ऐसे अक्षरों, अंकों या चिन्हों से अभिव्यक्त हुआ समझा जाएगा, चाहे वह वस्तुतः अभिव्यक्त न भी किया गया हो।

दृष्टांत

क एक विनिमयपत्र की पीठ पर, जो उसके आदेश के अनुसार देय है, अपना नाम लिख देता है। वाणिज्यिक प्रथा के अनुसार व्याख्या करने पर इस पृष्ठांकन का अर्थ है कि धारक को विनिमयपत्र का भुगतान कर दिया जाए। पृष्ठांकन दस्तावेज है और इसका अर्थ उसी प्रकार से लगाया जाना चाहिए मानो हस्ताक्षर के ऊपर “धारक को भुगतान करो” शब्द या तत्प्रभाव वाले शब्द लिख दिए गए हों।

29 क. इलेक्ट्रानिक अभिलेख -

“इलेक्ट्रानिक अभिलेख” शब्दों का वही अर्थ होगा, जो उन्हें सूचना प्रोद्योगिकी अधिनियम, 2000 की धारा 2 की उपधारा (1) के खण्ड (न) में समनुदेशित किया गया है।

30. “मूल्यवान प्रतिभूति" -

“मूल्यवान प्रतिभूति' शब्द उस दस्तावेज के द्योतक हैं, जो ऐसा दस्तावेज है, या होना तात्पर्यित है, जिसके द्वारा कोई विधिक अधिकार सृजित, विस्तृत, अन्तरित, निर्बन्धित, निर्वापित, किया जाए, छोड़ा जाए या जिसके द्वारा कोई व्यक्ति यह अभिस्वीकार करता है कि वह विधिक दायित्व के अधीन है, या अमुक विधिक अधिकार नहीं रखता है।

दृष्टांत

क एक विनिमयपत्र की पीठ पर अपना नाम लिख देता है। इस पृष्ठांकन का प्रभाव किसी व्यक्ति को, जो उसका विधिपूर्ण धारक हो जाए, उस विनिमयपत्र पर का अधिकार अन्तरित किया जाना है, इसलिए यह पृष्ठांकन “मूल्यवान प्रतिभूति" है।

31. “विल" -

"विल" शब्द किसी भी वसीयती दस्तावेज का द्योतक है।

32. कार्यों का निर्देश करने वाले शब्दों के अन्तर्गत अवैध लोप आता है -

जब तक कि संदर्भ से तत्प्रतिकूल आशय प्रस्तुत न हो, इस संहिता के हर भाग में किए गए कार्यों का निर्देश करने वाले शब्दों का विस्तार अवैध लोपों पर भी है।

33. "कार्य”, “लोप" -

“कार्य" शब्द कार्यावली का द्योतक उसी प्रकार है जिस प्रकार एक कार्य का; "लोप” शब्द लोपावली का द्योतक उसी प्रकार है जिस प्रकार एक लोप का।

34. सामान्य आशय को अग्रसर करने में कई व्यक्तियों द्वारा किए गए कार्य -

जबकि कोई आपराधिक कार्य कई व्यक्तियों द्वारा अपने सब के सामान्य आशय को अग्रसर करने में किया जाता है, तब ऐसे व्यक्तियों में से हर व्यक्ति उस कार्य के लिए उसी प्रकार दायित्व के अधीन है, मानो वह कार्य अकेले उसी ने किया हो।

35. जबकि ऐसा कार्य इस कारण आपराधिक है कि वह आपराधिक ज्ञान या आशय से किया गया है -

जब कभी कोई कार्य, जो आपराधिक ज्ञान या आशय से किए जाने के कारण ही आपराधिक है, कई व्यक्तियों द्वारा किया जाता है, तब ऐसे व्यक्तियों में से हर व्यक्ति, जो ऐसे ज्ञान या आशय से उस कार्य में सम्मिलित होता है, उस कार्य के लिए उसी प्रकार दायित्व के अधीन है, मानो वह कार्य उस ज्ञान या आशय से अकेले उसी द्वारा किया गया हो।

36. अंशतः कार्य द्वारा और अंशतः लोप द्वारा कारित परिणाम –

जहां कहीं किसी कार्य द्वारा या किसी लोप द्वारा किसी परिणाम का कारित किया जाना या उस परिणाम को कारित करने का प्रयत्न करना अपराध है, वहां यह समझा जाना है कि उस परिणाम का अंशतः कार्य द्वारा और अंशतः लोप द्वारा कारित किया जाना वही अपराध है।

दृष्टांत

क अंशतः य को भोजन देने का अवैध रूप से लोप करके, और अंशतः य को पीटकर साशय य की मृत्युकारित करता है। क ने हत्या की है।

37. किसी अपराध को गठित करने वाले कई कार्यों में से किसी एक को करके सहयोग करना -

जब कि कोई अपराध कई कार्यों द्वारा किया जाता है, तब जो कोई या तो अकेले या किसी अन्य व्यक्ति के साथ सम्मिलित होकर उन कार्यों में से कोई एक कार्य करके उस अपराध के किए जाने में साशय सहयोग करता है, वह उस अपराध को करता है।

दृष्टांत -

(क) क और ख पृथक्-पृथकू रूप से और विभिन्न समयों पर य को विष की छोटी-छोटी मात्राएं देकर उसकी हत्या करने को सहमत होते हैं। क और ख, य की हत्या करने के आशय से सहमति के अनुसार य को विष देते हैं। य इस प्रकार दी गई विष की कई मात्राओं के प्रभाव से मर जाता है। यहां क और ख हत्या करने में साशय सहयोग करते हैं और क्योंकि उनमें से हर एक ऐसे कार्य करता है, जिससे मृत्यु कारित होती है, वे दोनों इस अपराध के दोषी हैं, यद्यपि उनके कार्य पृथक हैं।

(ख) कऔर ख संयुक्त जेलर हैं, और अपनी उस हैसियत में वे एक कैदी य का बारी-बारी से एक समय में घण्टे के लिए संरक्षण-भार रखते हैं। य को दिए जाने के प्रयोजन से जो भोजन क और ख को दिया जाता है, वह भोजन इस साशय से कि य की मृत्युकारित कर दी जाए, हर एक अपनी हाजिरी के काल में य को देने का लोप करके वह परिणाम अवैध रूप से कारित करने में जानते हुए सहयोग करते हैं। य भूख से मर जाता है। क और ख दोनों य की हत्या के दोषी हैं।

 (ग) एक जेलर क, एक कैदी य का संरक्षण भार रखता है। क, य की मृत्यु कारित करने के आशय से, य को भोजन देने का अवैध रूप से लोप करता है, जिसके परिणामस्वरूप य की शक्ति बहुत क्षीण हो जाती है, किन्तु यह क्षुधापीड़न उसकी मृत्यु कारित करने के लिए पर्याप्त नहीं होता। क अपने पद से च्युत कर दिया जाता है और ख उसका उत्तरवर्ती होता है। क से दुस्संधि या सहयोग किए बिना ख यह जानते हुए कि ऐसा करने से संभाव्य है कि वह य की मृत्युकारित कर दे, य को भोजन देने का अवैध रूप से लोप करता है। य भूख से मर जाता है। ख हत्या का दोषी है, किन्तु क ने ख से सहयोग नहीं किया, इसलिए क हत्या करने के प्रयत्न का ही दोषी है।

38. आपराधिक कार्य में संपृक्त व्यक्ति विभिन्न अपराधों के दोषी हो सकेंगे -

जहां कि कई व्यक्ति किसी आपराधिक कार्य को करने में लगे हुए या सम्पृक्त हैं, वहां वे उस कार्य के आधार पर विभिन्न अपराधों के दोषी हो सकेंगे।

दृष्टांत

क गम्भीर प्रकोपन की ऐसी परिस्थितियों के अधीन य पर आक्रमण करता है कि य का उसके द्वारा वध किया जाना केवल ऐसा आपराधिक मानव वध है, जो हत्या की कोटि में नहीं होता है। ख जो य से वैमनस्य रखता है, उसका वध करने के आशय से और प्रकोपन से वशीभूत न होते हुए य का वध करने में क की सहायता करता है। यहां यद्यपि क और ख दोनों य की मृत्युकारित करने में लगे हुए हैं, ख हत्या का दोषी है और क केवल आपराधिक मानव वध का दोषी है।

39. “स्वेच्छया” -

कोई व्यक्ति किसी परिणाम को “स्वेच्छया" कारित करता है, यह तब कहा जाता है, जब वह उसे उन साधनों द्वारा कारित करता है, जिनके द्वारा उसे कारित करना उसका आशय था या उन साधनों द्वारा कारित करता है जिन साधनों को काम में लाते समय यह जानता था, या यह विश्वास करने का कारण रखता था कि उनसे उसका कारित होना संभाव्य है।

दृष्टांत

क लूट को सुकर बनाने के प्रयोजन से एक बड़े नगर के एक बसे हुए गृह में रात को आग लगाता है और इस प्रकार एक व्यक्ति की मृत्युकारित कर देता है। यहां क का आशय भले ही मृत्यु कारित करने का न रहा हो और वह दुखित भी हो कि उसके कार्य से मृत्युकारित हुई है तो भी यदि वह यह जानता था कि संभाव्य है कि वह मृत्युकारित कर दे तो उसने स्वेच्छया मृत्युकारित की है।

40. “अपराध” -

इस धारा के खण्ड 2 और 3 में वर्णित अध्यायों और धाराओं के सिवाय “अपराध” शब्द इस संहिता द्वारा दण्डनीय की गई किसी बात का द्योतक है। 

अध्याय 4, अध्याय 5क और निम्नलिखित धाराएं, अर्थात् धारा 64, 65, 66, 67, 71, 109, , 110, 112, 114, 115, 116, 117, 118, 119 और 120,187, 194, 195, 203, 211, 213, 214, 221, 222, 223, 224, 225, 327, 328, 329, 330, 331, 347, 348, 388, 389 और 445 में “अपराध’ शब्द इस संहिता के अधीन या एतस्मिन् पश्चात् यथापरिभाषित विशेष या स्थानीय विधि के अधीन दण्डनीय बात का द्योतक है और धारा 141,176, 177, 201, 202, 212, 216 और 441 में "अपराध” शब्द का अर्थ उस दशा में वही है जिसमें कि विशेष या स्थानीय विधि के अधीन दण्डनीय बात ऐसी विधि के अधीन छह मास या उससे अधिक अवधि के कारावास से, चाहे वह जुर्माने सहित हो या रहित, दण्डनीय हो ।

41. “विशेष विधि" -

“विशेष विधि” वह विधि है जो किसी विशिष्ट विषय को लागू हो।

42. “स्थानीय विधि” -

“स्थानीय विधि” वह विधि है जो भारत के किसी विशिष्ट भाग को ही लागू हो।

43. “अवैध”, “करने के लिए वैध रूप से आबद्ध” -

“अवैध" शब्द उस हर बात को लागू है, जो अपराध हो, या जो विधि द्वारा प्रतिषिद्ध हो, या जो सिविल कार्यवाही के लिए आधार उत्पन्न करती हो; और कोई व्यक्ति उस बात को "करने के लिए वैध रूप से आबद्ध” कहा जाता है जिसका लोप करना उसके लिए अवैध है।

44. “क्षति” -

“क्षति” शब्द किसी प्रकार की अपहानि का द्योतक है, जो किसी व्यक्ति के शरीर, मन, ख्याति या संपत्ति को अवैध रूप से कारित हुई हो।

45. “जीवन” -

जब तक कि संदर्भ से तत्प्रतिकूल प्रतीत न हो, “जीवन” शब्द मानव के जीवन का द्योतक है।

46. “मृत्यु” -

जब तक कि संदर्भ से तत्प्रतिकूल प्रतीत न हो, “मृत्यु” शब्द मानव की मृत्यु का द्योतक है।

47. “जीवजन्तु” -

“जीवजन्तु” शब्द मानव से भिन्न किसी जीवधारी का द्योतक है।

48. “जलयान” -

“जलयान” शब्द किसी चीज का द्योतक है, जो मानवों के या संपत्ति के जल द्वारा प्रवहण के लिए बनाई गई हो।

49. “वर्ष”, “मास” -

जहां कहीं “वर्ष” शब्द या “मास' शब्द का प्रयोग किया गया है वहां यह समझा जाना है कि वर्ष या मास की गणना ब्रिटिश कलैण्डर के अनुकूल की जानी है।

50. “धारा” -

“धारा' शब्द इस संहिता के किसी अध्याय के उन भागों में से किसी एक का द्योतक है, जो सिरे पर लगे संख्यांकों द्वारा सुभिन्न किए गए हैं। GO toTOP

51. “शपथ” -

“शपथ” के लिए विधि द्वारा प्रतिस्थापित सत्यनिष्ठ प्रतिज्ञान और ऐसी कोई घोषणा, जिसका किसी लोक-सेवक के समक्ष किया जाना या न्यायालय में या अन्यत्र सबूत के प्रयोजन के लिए उपयोग किया जाना विधि द्वारा अपेक्षित या प्राधिकृत हो, “शपथ” शब्द के अन्तर्गत आती है।

52. “सद्भावपूर्वक” -

कोई बात “सद्भावपूर्वक” की गई या विश्वास की गई नहीं कही जाती जो सम्यक् सतर्कता और ध्यान के बिना की गई या विश्वास की गई हो।

52 क. “संश्रय’ -

धारा 157 में के सिवाय और धारा 130 में वहां के सिवाय जहां कि संश्रय संश्रित व्यक्ति की पत्नी या पति द्वारा दिया गया हो ‘संश्रय' शब्द के अंतर्गत किसी व्यक्ति को आश्रय, भोजन, पेय, धन, वस्त्र, आयुध, गोलाबारूद या प्रवहन के साधन देना, या किन्हीं साधनों से चाहे वे उसी प्रकार के हों या नहीं, जिस प्रकार के इस धारा में परिगणित हैं, किसी व्यक्ति की सहायता पकड़े जाने से बचने के लिए करना, आता है।

अध्याय 3: दण्डों के विषय में

53. “दण्ड” -

अपराधी इस संहिता के उपबंधों के अधीन जिन दण्डों से दण्डनीय है, वे ये हैं

पहला - मृत्यु;

दूसरा - आजीवन कारावास;

तीसरा - विलोपित

चौथा - कारावास, जो दो भाँति का है, अर्थात्:-

(1) कठिन, अर्थात् कठोर श्रम के साथ;

(2) सादा;

पाँचवाँ -- सम्पत्ति का समपहरण;

छटा -- जुर्माना।

53 क. - निर्वासन के प्रति निर्देश का अर्थ लगाना -

(1) उपधारा (2) के और उपधारा (3) के उपबंधों के अध्यधीन किसी अन्य तत्समय प्रवृत्ति विधि में, या किसी ऐसी विधि या किसी निरसित अधिनियमिति के आधार पर प्रभावशील किसी लिखत या आदेश में “आजीवन निर्वासन” के प्रति निर्देश का अर्थ यह लगाया जायेगा, कि वह “आजीवन कारावास” के प्रति निर्देश है।

(2) हर मामले में, जिसमें कि किसी अवधि के लिए निर्वासन का दण्डादेश दण्ड प्रक्रिया संहिता (संशोधन) अधिनियम, 1955 (1955 का 26) के प्रारंभ से पूर्व दिया गया है, अपराधी से उसी प्रकार बरता जाएगा, मानो वह उस अवधि के लिए कठिन कारावास के लिए दण्डादिष्ट किया गया हो।

(3) किसी अन्य तत्समय प्रवृत्त विधि में किसी अवधि के लिए निर्वासन या किसी लघुतर अवधि के लिए निर्वासन के प्रति (चाहे उसे कोई भी नाम दिया गया हो) कोई निर्देश लुप्त कर दिया गया समझा जाएगा।

(4) किसी अन्य तत्समय प्रवृत्त विधि में निर्वासन के प्रति जो कोई निर्देश हो -

(क) यदि उस पद से आजीवन निर्वासन अभिप्रेत है, तो उसका अर्थ आजीवन कारावास के प्रति निर्देश होना लगाया जाएगा;

(ख) यदि उस पद से किसी लघुत्तर अवधि के लिए निर्वासन अभिप्रेत है, तो यह समझा जाएगा कि वह लुप्त कर दिया गया है।

54. मृत्यु दण्डादेश का लघुकरण -

हर मामले में, जिसमें मृत्यु का दण्डादेश दिया गया हो, उस दण्ड को अपराधी की सम्मति के बिना भी समुचित सरकार इस संहिता द्वारा उपबंधित किसी अन्य दण्ड में लघुकृत कर सकेगी।

55. आजीवन कारावास के दण्डादेश का लघुकरण -

हर मामले में, जिसमें आजीवन कारावास का दण्डादेश दिया गया हो, अपराधी की सम्मति के बिना भी समुचित सरकार उस दण्ड को ऐसी अवधि के लिए, जो चौदह वर्ष से अधिक न हो, दोनों में से किसी भांति के कारावास में लघुकृत कर सकेगी।

55 क. “समुचित सरकार” की परिभाषा -

धारा 54 और 55 में “समुचित सरकार” पद से -

(क) उन मामलों में केन्द्रीय सरकार अभिप्रेत है, जिनमें दण्डादेश मृत्यु का दण्डादेश है, या ऐसे विषय से, जिस पर संघ की कार्यपालन शक्ति का विस्तार है, संबंधित किसी विधि के विरुद्ध अपराध के लिए है; तथा

(ख) उन मामलों में उस राज्य की सरकार, जिसके अन्दर अपराधी दण्डादिष्ट हुआ है, अभिप्रेत है, जहां कि दण्डादेश (चाहे मृत्यु का हो या नहीं) ऐसे विषय से, जिस पर राज्य की कार्यपालन शक्ति का विस्तार है, संबंधित किसी विधि के विरुद्ध अपराध के लिए है।

56. यूरोपियों तथा अमरीकियों को कठोर श्रम कारावास का दण्डादेश दस वर्ष से अधिक किन्तु जो आजीवन कारावास से अधिक न हो, दण्डादेश के संबंध में परन्तुक -

दाण्डिक विधि (मूलवंशीय विभेदों का निराकरण) अधिनियम, 1949 (1949 का 17) द्वारा (6 अप्रैल, 1949 से) निरसित 

57. दण्डावधियों की भिन्ने -

दण्डावधियों की भिन्नों की गणना करने में, आजीवन कारावास को बीस वर्ष के कारावास के तुल्य गिना जाएगा।

58. निर्वासन से दण्डादिष्ट अपराधियों के साथ कैसा व्यवहार किया जाए जब तक वे निर्वासित न कर दिए जाएं -

दण्ड प्रक्रिया संहिता (संशोधन) अधिनियम 1955 (1955 का 26) की धारा 117 और अनुसूची द्वारा (1 जनवरी, 1956 से) निरसित. 

59. कारावास के बदले निर्वासन -

[ दण्ड प्रक्रिया संहिता (संशोधन) अधिनियम, 1955 (1955 का 26) की धारा 117 और अनुसूची द्वारा (1 जनवरी, 1956 से) निरसित ]

60. दण्डादिष्ट कारावास के कतिपय मामलों में संपूर्ण कारावास या उसका कोई भाग कठिन या सादा हो सकेगा -

हर मामले में, जिसमें अपराधी दोनों में से किसी भांति के कारावास से दण्डनीय है, वह न्यायालय, जो ऐसे अपराधी को दण्डादेश देगा, सक्षम होगा कि दण्डादेश में यह निर्दिष्ट करे कि ऐसा संपूर्ण कारावास कठिन होगा, या यह कि ऐसा संपूर्ण कारावास सादा होगा, या यह कि ऐसे कारावास का कुछ भाग कठिन होगा और शेष सादा।

61. संपत्ति के समपहरण का दण्डादेश -

भारतीय दण्ड संहिता के समपहरण का दण्डादेश भारतीय दण्ड संहिता (संशोधन) अधिनियम, 1921 (1921 का 16) की धारा 4 द्वारा निरसित.

62. मृत्यु, निर्वासन या कारावास से दण्डनीय अपराधियों की बाबत संपत्ति का समपहरण -

[भारतीय दण्ड संहिता (संशोधन) अधिनियम, 1921 (1921 का 16) की धारा 4 द्वारा निरसित ]

63. जुर्माने की रकम -

जहां कि वह राशि अभिव्यक्त नहीं की गई है जितनी तक जुर्माना हो सकता है, वहां अपराधी जिस रकम के जुर्माने का दायी है, वह अमर्यादित है किन्तु अत्यधिक नहीं होगी।

64. जुर्माना न देने पर कारावास का दण्डादेश -

कारावास और जुर्माना दोनों से दण्डनीय अपराध के हर मामले में; जिसमें अपराधी कारावास सहित या रहित, जुर्माने से दण्डादिष्ट हुआ है, तथा कारावास या जुर्माने अथवा केवल जुर्माने से दण्डनीय अपराध के हर मामले में, जिसमें अपराधी जुर्माने से दण्डादिष्ट हुआ है,

वह न्यायालय, जो ऐसे अपराधी को दण्डादिष्ट करेगा, सक्षम होगा कि दण्डादेश द्वारा निदेश दे कि जुर्माना देने में व्यतिक्रम होने की दशा में, अपराधी अमुक अवधि के लिए कारावास भोगेगा जो कारावास उस अन्य कारावास के अतिरिक्त होगा, जिसके लिए वह दण्डादिष्ट हुआ है या जिससे वह दण्डादेश के लघुकरण पर दण्डनीय है।

65. जबकि कारावास और जुर्माना दोनों आदिष्ट किए जा सकते हैं, तब जुर्माना न देने पर कारावास की अवधि -

यदि अपराध कारावास और जुर्माना दोनों से दण्डनीय हो, तो वह अवधि, जिसके लिए जुर्माना देने में व्यतिक्रम होने की दशा के लिए न्यायालय अपराधी को कारावासित करने का निर्देश दे, कारावास की उस अवधि की एक-चौथाई से अधिक न होगी, जो अपराध के लिए अधिकतम नियत है।

66. जुर्माना न देने पर किस भांति का कारावास दिया जाए -

वह कारावास, जिसे न्यायालय जुर्माना देने में व्यतिक्रम होने की दशा के लिए अधिरोपित करे, ऐसा किसी भांति का हो सकेगा, जिससे अपराधी को उस अपराध के लिए दण्डादिष्ट किया जा सकता था।

67. जुर्माना न देने पर कारावास, जबकि अपराध केवल जुर्माने से दण्डनीय हो -

यदि अपराध केवल जुर्माने से दण्डनीय हो तो वह कारावास, जिसे न्यायालय जुर्माना देने में व्यतिक्रम होने की दशा के लिए अधिरोपित करे, सादा होगा और वह अवधि, जिसके लिए जुर्माना देने में व्यतिक्रम होने की दशा के लिए न्यायालय अपराधी को कारावासित करने का निर्देश दे; निम्न मापमान से अधिक नहीं होगी, अर्थात्,-

जबकि जुर्माने का परिमाण पचास रुपए से अधिक न हो तब दो मास से अनधिक कोई अवधि,

तथा जबकि जुर्माने का परिमाण एक सौ रुपए से अधिक न हो तब चार मास से अनधिक कोई अवधि,

तथा किसी अन्य दशा में छह मास से अनधिक कोई अवधि।

68. जुर्माना देने पर कारावास का पर्यवसान हो जाना -

जुर्माना देने में व्यतिक्रम होने की दशा के लिए अधिरोपित कारावास तब पर्यवसित हो जाएगा, जब वह जुर्माना या तो चुका दिया जाए या विधि की प्रक्रिया द्वारा उद्गृहीत कर लिया जाए।

69. जुर्माने के आनुपातिक भाग के दे दिए जाने की दशा में कारावास का पर्यवसान -

यदि जुर्माना देने में व्यतिक्रम होने की दशा के लिए नियत की गई कारावास की अवधि का अवसान होने से पूर्व जुर्माने का ऐसा अनुपात चुका दिया या उद्गृहीत कर लिया जाए कि देने में व्यतिक्रम होने पर कारावास की जो अवधि भोगी जा चुकी हो, वह जुर्माने के तब तक न चुकाए गए भाग के आनुपातिक से कम न हो तो कारावास पर्यवसित हो जाएगा।

दृष्टांत -

क एक सौ रुपए के जुर्माने और उसके देने में व्यतिक्रम होने की दशा के लिए चार मास के कारावास से दण्डादिष्ट किया गया है। यहां, यदि कारावास के एक मास के अवसान से पूर्व जुर्माने के पचहत्तर रुपए चुका दिए जाएं या उद्गृहीत कर लिए जाएं तो प्रथम मास का अवसान होते ही क उन्मुक्त कर दिया जाएगा। यदि पचहत्तर रुपए प्रथम मास के अवसान पर या किसी भी पश्चात्वर्ती समय पर, जबकि क कारावास में है, चुका दिए या उद्गृहीत कर लिए जाएं, तो क तुरंत उन्मुक्त कर दिया जाएगा। यदि कारावास के दो मास के अवसान से पूर्व जुर्माने के पचास रुपए चुका दिये जाएं या उद्गृहीत कर लिए जाएं, तो क दो मास पूरे होते ही उन्मुक्त कर दिया जाएगा। यदि पचास रुपये उन दो मास के अवसान पर या किसी भी पश्चात्वर्ती समय पर, जबकि क कारावास में है, चुका दिए जाएं या उद्गृहीत कर लिए जाएं, तो क तुरन्त उन्मुक्त कर दिया जाएगा।

70. जुर्माने का छह वर्ष के भीतर या कारावास के दौरान में उद्ग्रहणीय होना -

संपत्ति को दायित्व से मृत्यु उन्मुक्त नहीं करती -

जुर्माना या उसका कोई भाग, जो चुकाया न गया हो, दण्डादेश दिए जाने के पश्चात् छह वर्ष के भीतर किसी भी समय, और यदि अपराधी दण्डादेश के अधीन छह वर्ष से अधिक के कारावास से दण्डनीय हो तो उस कालावधि के अवसान से पूर्व किसी समय, उद्गृहीत किया जा सकेगा, और अपराधी की मृत्यु किसी भी संपत्ति को, जो उसकी मृत्यु के पश्चात् उसके ऋणों के लिए वैध रूप से दायी हो, इस दायित्व से उन्मुक्त नहीं करती।

71. कई अपराधों से मिलकर बने अपराध के लिए दण्ड की अवधि -

जहां कि कोई बात, जो अपराध है, ऐसे भागों से, जिनमें का कोई भाग स्वयं अपराध है, मिलकर बनी है, वहां अपराधी अपने ऐसे अपराधों में से एक से अधिक के दण्ड से दण्डित न किया जाएगा, जब तक कि ऐसा अभिव्यक्त रूप से उपबंधित न हो।

जहां कि कोई बात अपराधों को परिभाषित या दंडित करने वाली किसी तत्समय प्रवृत्त विधि की दो या अधिक पृथक् परिभाषाओं में आने वाला अपराध है, अथवा

जहां कि कई कार्य, जिनमें से स्वयं एक से या स्वयं एकाधिक से अपराध गठित होता है, मिलकर भिन्न अपराध गठित करते हैं;

वहां अपराधी को उससे गुरुत्तर दण्ड से दण्डित न किया जाएगा, जो ऐसे अपराधों में से किसी भी एक के लिए वह न्यायालय,जो उसका विचारण करे,उसे दे सकता हो ।

दृष्टांत -

(क) क, य पर लाठी से पचास प्रहार करता है। यहां, हो सकता है कि क ने संपूर्ण मारपीट द्वारा उन प्रहारों में से हर एक प्रहार द्वारा भी, जिनसे वह संपूर्ण मारपीट गठित है, य को स्वेच्छया उपहति कारित करने का अपराध किया हो। यदि क हर प्रहार के लिए दण्डनीय होता तो वह हर एक प्रहार के लिए एक वर्ष के हिसाब से पचास वर्ष के लिए कारावासित किया जा सकता था। किन्तु वह संपूर्ण मारपीट के लिए केवल एक ही दण्ड से दण्डनीय है। 

(ख) किन्तु यदि उस समय जब क, य को पीट रहा है, म हस्तक्षेप करता है, और क, म पर साशय प्रहार करता है, तो यहां म पर किया गया प्रहार उस कार्य का भाग नहीं है, जिसके द्वारा क, य को स्वेच्छया उपहति कारित करता है, इसलिए क, य को स्वेच्छया कारित की गई उपहति के लिए एक दण्ड से और म पर किए गए प्रहार के लिए दूसरे दण्ड से दंडनीय है।

72. कई अपराधों में से एक के दोषी व्यक्ति के लिए दण्ड जबकि निर्णय में यह कथित है कि यह संदेह है कि वह किस अपराध का दोषी है -

उन सब मामलों में, जिनमें यह निर्णय दिया जाता है। कि कोई व्यक्ति उस निर्णय में विनिर्दिष्ट कई अपराधों में से एक अपराध का दोषी है, किन्तु यह संदेहपूर्ण है कि वह उन अपराधों में से किस अपराध का दोषी है, यदि वही दण्ड सब अपराधों के लिए उपबंधित नहीं है तो वह अपराधी उस अपराध के लिए दंडित किया जाएगा, जिसके लिए कम से कम दण्ड उपबंधित किया गया है।

73. एकांत परिरोध -

जब कभी कोई व्यक्ति ऐसे अपराध के लिए दोषसिद्ध ठहराया जाता है जिसके लिए न्यायालय को इस संहिता के अधीन उसे कठिन कारावास से दण्डादिष्ट करने की शक्ति है, तो न्यायालय अपने दण्डादेश द्वारा आदेश दे सकेगा कि अपराधी को उस कारावास के, जिसके लिए वह दण्डादिष्ट किया गया है, किसी भाग या भागों के लिए, जो कुल मिलाकर तीन मास से अधिक के न होंगे, निम्न मापमान के अनुसार एकांत परिरोध में रखा जाएगा, अर्थात् -

यदि कारावास की अवधि छह मास से अधिक न हो तो एक मास से अनधिक समय; 

यदि कारावास की अवधि छह मास से अधिक हो और एक वर्ष से अधिक न हो तो दो मास से अनधिक समय;

यदि कारावास की अवधि एक वर्ष से अधिक हो तो तीन मास से अनधिक समय।

74. एकांत परिरोध की अवधि -

एकांत परिरोध के दण्डादेश के निष्पादन में ऐसा परिरोध किसी भी दशा में एक बार में चौदह दिन से अधिक न होगा, साथ ही ऐसे एकांत परिरोध की कालावधियों के बीच में उन कालावधियों से अन्यून अंतराल होगे और जब दिया गया कारावास तीन मास से अधिक हो, तब दिए गए संपूर्ण कारावास के किसी एक मास में एकांत परिरोध सात दिन से अधिक न होगा, साथ ही एकांत परिरोध की कालावधियों के बीच में उन्हीं कालावधियों से अन्यून अंतराल होंगे।

75. पूर्व दोषसिद्धि के पश्चात् अध्याय 12 या अध्याय 17 के अधीन कतिपय अपराधों के लिए वर्धित दण्ड -

जो कोई व्यक्ति -

(क) भारत में के किसी न्यायालय द्वारा इस संहिता के अध्याय 12 या अध्याय 17 के अधीन तीन वर्ष या उससे अधिक की अवधि के लिए दोनों में से किसी भांति के कारावास से दण्डनीय अपराध के लिए,दोषसिद्ध ठहराए जाने के पश्चात् उन दोनों अध्यायों में से किसी अध्याय के अधीन उतनी ही अवधि के लिए वैसे ही कारावास से दण्डनीय किसी अपराध का दोषी हो, तो वह हर ऐसे पश्चात्वर्ती अपराध के लिए आजीवन कारावास से या दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डनीय होगा।

अध्याय 4 : साधारण अपवाद

76. विधि द्वारा आबद्ध या तथ्य की भूल के कारण अपने आपको विधि द्वारा आबद्ध होने का विश्वास करने वाले व्यक्ति द्वारा किया गया कार्य -

कोई बात अपराध नहीं है, जो किसी ऐसे व्यक्ति द्वारा की जाए जो उसे करने के लिए विधि द्वारा आबद्ध हो या जो तथ्य की भूल के कारण, न कि विधि की भूल के कारण, सद्भावपूर्वक विश्वास करता हो कि वह उसे करने के लिए विधि द्वारा आबद्ध है।

दृष्टांत -

(क) विधि के समादेशों के अनुवर्तन में अपने वरिष्ठ ऑफिसर के आदेश से एक सैनिक क भीड़ पर गोली चलाता है। क ने कोई अपराध नहीं किया।

(ख) न्यायालय का ऑफिसर, क, म को गिरफ्तार करने के लिए उस न्यायालय द्वारा आदिष्ट किए जाने पर और सम्यक् जांच के पश्चात् यह विश्वास करके कि य, म है, य को गिरफ्तार कर लेता है। क ने कोई अपराध नहीं किया।

77. न्यायिकतः कार्य करते हुए न्यायाधीश का कार्य -

कोई बात अपराध नहीं है, जो न्यायिकतः कार्य करते हुए न्यायाधीश द्वारा ऐसी किसी शक्ति के प्रयोग में की जाती है, जो या जिसके बारे में उसे सद्भावपूर्वक विश्वास है कि वह उसे विधि द्वारा दी गई है।

78. न्यायालय के निर्णय या आदेश के अनुसरण में किया गया कार्य -

कोई बात, जो न्यायालय के निर्णय या आदेश के अनुसरण में की जाए या उसके द्वारा अधिदिष्ट हो, यदि वह उस निर्णय या आदेश के प्रवृत्त रहते की जाए, अपराध नहीं है, चाहे उस न्यायालय को ऐसा निर्णय या आदेश देने की अधिकारिता न रही हो, परन्तु यह तब जब कि वह कार्य करने वाला व्यक्ति सद्भावपूर्वक विश्वास करता हो कि उस न्यायालय को वैसी अधिकारिता थी।

79. विधि द्वारा न्यायानुमत या तथ्य की भूल से अपने को विधि द्वारा न्यायानुमत होने का विश्वास करने वाले व्यक्ति द्वारा किया गया कार्य -

कोई बात अपराध नहीं है, जो ऐसे व्यक्ति द्वारा की जाए, जो उसे करने के लिए विधि द्वारा न्यायानुमत हो, या तथ्य की भूल के कारण, न कि विधि की भूल के कारण, सद्भावपूर्वक विश्वास करता हो कि वह उसे करने के लिए विधि द्वारा न्यायानुमत है।

दृष्टांत -

क, य को ऐसा करते देखता है, जो क को हत्या प्रतीत होता है क सद्भावपूर्वक काम में लाए गए अपने श्रेष्ठ निर्णय के अनुसार उस शक्ति को प्रयोग में लाते हुए, जो विधि ने हत्याकारियों को उस कार्य में पकड़ने के लिए समस्त व्यक्तियों को दे रखी है, य को उचित प्राधिकारियों के समक्ष ले जाने के लिए य को अभिगृहीत करता है। क ने कोई अपराध नहीं किया है चाहे तत्पश्चात् असल बात यह निकले कि य आत्म-प्रतिरक्षा में कार्य कर रहा था।

80. विधिपूर्ण कार्य करने में दुर्घटना -

कोई बात अपराध नहीं है, जो दुर्घटना या दुर्भाग्य से और किसी आपराधिक आशय या ज्ञान के बिना विधिपूर्ण प्रकार से विधिपूर्ण साधनों द्वारा और उचित सतर्कता और सावधानी के साथ विधिपूर्ण कार्य करने में हो जाती है।

दृष्टांत -

क कुल्हाड़ी से काम कर रहा है; कुल्हाड़ी का फल उसमें से निकल कर उछल जाता है और निकट खड़ा हुआ व्यक्ति उससे मारा जाता है। यहां यदि क की ओर से उचित सावधानी का कोई अभाव नहीं था तो उसका कार्य माफी योग्य है और अपराध नहीं है।

81. कार्य, जिससे अपहानि कारित होना संभाव्य है, किन्तु जो आपराधिक आशय के बिना और अन्य अपहानि के निवारण के लिए किया गया है -

कोई बात केवल इस कारण अपराध नहीं है कि वह यह जानते हुए की गई है कि उससे अपहानि कारित होना संभाव्य है, यदि वह अपहानि कारित करने के किसी आपराधिक आशय के बिना और व्यक्ति या संपत्ति को अन्य अपहानि का निवारण या परिवर्जन करने के प्रयोजन से सद्भावपूर्वक की गई हो।

स्पष्टीकरण - ऐसे मामले में यह तथ्य का प्रश्न है कि जिस अपहानि का निवारण या परिवर्जन किया जाना है। क्या वह ऐसी प्रकृति की और इतनी आसन्न थी कि वह कार्य, जिससे यह जानते हुए कि उससे अपहानि कारित होना संभाव्य है, करने की जोखिम उठाना न्यायानुमत या माफी योग्य था।

दृष्टांत -

(क) , जो एक वाष्प जलयान का कप्तान है, अचानक और अपने किसी कसूर या उपेक्षा के बिना अपने आपको ऐसी स्थिति में पाता है कि यदि उसने जलयान का मार्ग नहीं बदला तो इससे पूर्व कि वह अपने जलयान को रोक सके वह बीस या तीस यात्रियों से भरी नाव को अनिवार्यतः टकराकर डुबो देगा, और कि अपना मार्ग बदलने से उसे केवल दो यात्रियों वाली नाव को डुबोने की जोखिम उठानी पड़ती है। जिसको वह संभवत: बचाकर निकल जाए। यहाँ यदि क नाव ग को डुबोने के आशय के बिना और ख के यात्रियों के संकट का परिवर्जन करने के प्रयोजन से सद्भावपूर्वक अपना मार्ग बदल देता है तो यद्यपि वह नाव ग को ऐसे कार्य द्वारा टकराकर डुबो देता है, जिससे ऐसे परिणाम का उत्पन्न होना वह संभाव्य जानता था, तथापि तथ्यतः यह पाया जाता है कि वह संकट जिसे परिवर्जित करने का उसका आशय था, ऐसा था जिससे नाव ग को डुबोने की जोखिम उठाना माफी योग्य है, तो वह किसी अपराध का दोषी नहीं है।

(ख) एक बड़े अग्निकाण्ड के समय आग को फैलने से रोकने के लिए गृहों को गिरा देता है। वह इस कार्य को मानव जीवन या संपत्ति को बचाने के आशय से सद्भावनापूर्वक करता है। यहां, यदि यह पाया जाता है कि निवारण की जाने वाली अपहानि इस प्रकृति की और इतनी आसन्न थी कि क का कार्य माफी योग्य है तो क उस अपराध का दोषी नहीं है।

82. सात वर्ष से कम आयु के शिशु का कार्य -

कोई बात अपराध नहीं है, जो सात वर्ष से कम आयु के शिशु द्वारा की जाती है।

83. सात वर्ष से ऊपर किन्तु बारह वर्ष से कम आयु के अपरिपक्व समझ के शिशु का कार्य -

कोई बात अपराध नहीं है, जो सात वर्ष से ऊपर और बारह वर्ष से कम आयु के ऐसे शिशु द्वारा की जाती है जिसकी समझ इतनी परिपक्व नहीं हुई है कि वह उस अवसर पर अपने आचरण की प्रकृति और परिणामों का निर्णय कर सके।

84. विकृतचित्त व्यक्ति का कार्य -

कोई बात अपराध नहीं है जो ऐसे व्यक्ति द्वारा की जाती है, जो उसे करते समय चित्त-विकृति के कारण उस कार्य की प्रकृति, या यह कि जो कुछ वह कर रहा है वह दोषपूर्ण या विधि के प्रतिकूल है, जानने में असमर्थ है।

85. ऐसे व्यक्ति का कार्य जो अपनी इच्छा के विरुद्ध मत्तता में होने के कारण निर्णय पर पहुंचने में असमर्थ है -

कोई बात अपराध नहीं है, जो ऐसे व्यक्ति द्वारा की जाती है, जो उसे करते समय मत्तता के कारण उस कार्य की प्रकृति, या यह कि जो कुछ वह कर रहा है वह दोषपूर्ण या विधि के प्रतिकूल है, जानने में असमर्थ है, परन्तु यह तब जबकि वह चीज, जिससे उसकी मत्तता हुई थी, उसको अपने ज्ञान के बिना या इच्छा के विरुद्ध दी गई थी।

86. किसी व्यक्ति द्वारा, जो मत्तता में है, किया गया अपराध जिसमें विशेष आशय या ज्ञान का होना अपेक्षित है -

उन दशाओं में, जहां कि कोई किया गया कार्य अपराध नहीं होता जब तक कि वह किसी विशिष्ट ज्ञान या आशय से न किया गया हो, कोई व्यक्ति जो वह कार्य मत्तता की हालत में करता है, इस प्रकार बरते जाने के दायित्व के अधीन होगा, मानो उसे वही ज्ञान था जो उसे होता यदि वह मत्तता में न होता जब तक कि वह चीज, जिससे उसे मत्तता हुई थी, उसे उसके ज्ञान के बिना या उसकी इच्छा के विरुद्ध न दी गई हो।

87. सम्मति से किया गया कार्य जिससे मृत्यु या घोर उपहति कारित करने का आशय न हो और न उसकी सम्भाव्यता का ज्ञान हो -

कोई बात, जो मृत्यु या घोर उपहति कारित करने के आशय से न की गई हो और जिसके बारे में कर्ता को यह ज्ञात न हो कि उससे मृत्यु या घोर उपहति कारित होना संभाव्य है, किसी ऐसी अपहानि के कारण अपराध नहीं है जो उस बात से अठारह वर्ष से अधिक आयु के व्यक्ति को, जिसने वह अपहानि सहन करने की चाहे अभिव्यक्त चाहे विवक्षित सम्मति दे दी हो, कारित हो या कारित होना कर्ता द्वारा आशयित हो अथवा जिसके बारे में कर्ता को ज्ञात हो कि वह उपर्युक्त जैसे किसी व्यक्ति को, जिसने उस अपहानि की जोखिम उठाने की सम्मति दे दी है, उस बात द्वारा कारित होनी संभाव्य है

दृष्टांत -

 और य आमोदार्थ आपस में पटेबाजी करने को सहमत होते हैं। इस सहमति में किसी अपहानि को, जो ऐसी पटेबाजी में खेल के नियम के विरुद्ध न होते हुए कारित हो, उठाने की हर एक की सम्मति विवक्षित है, और यदि के यथानियम पटेबाजी करते हुए य को उपहति कारित कर देता है, तो क कोई अपराध नहीं करता है।

88. किसी व्यक्ति के फायदे के लिए सम्मति से सदभावपूर्वक किया गया कार्य जिससे मृत्यु कारित करने का आशय नहीं है -

कोई बात, जो मृत्यु कारित करने के आशय से न की गई हो, किसी ऐसी अपहानि के कारण नहीं है, जो उस बात से किसी ऐसे व्यक्ति को, जिसके फायदे के लिए वह बात सद्भावपूर्वक की जाए और जिसने उस अपहानि को सहने, या उस अपहानि की जोखिम उठाने के लिए चाहे अभिव्यक्त चाहे विवक्षित सम्मति दे दी हो, कारित हो या कारित करने का कर्ता का आशय हो या कारित होने की संभाव्यता कर्ता को ज्ञात है |

दृष्टांत -

क, एक शल्य चिकित्सक यह जानते हुए कि एक विशेष शल्यकर्म से य को, जो वेदनापूर्ण व्याधि से ग्रस्त है, मृत्यु कारित होने की संभाव्यता है, किन्तु य की मृत्युकारित करने का आशय न रखते हुए और सद्भावनापूर्वक य के फायदे के आशय से, य की सम्मति से, य पर वह शल्यकर्म करता है। क ने कोई अपराध नहीं कया है।

89. संरक्षक द्वारा या उसकी सम्मति से शिशु या उन्मत्त व्यक्ति के फायदे के लिए सद्भावपूर्वक किया गया कार्य -

कोई बात, जो बारह वर्ष से कम आयु के या विकृतचित्त व्यक्ति के फायदे के लिए सद्भावपूर्वक उसके संरक्षक के, या विधिपूर्ण भारसाधक किसी दूसरे व्यक्ति के द्वारा, या की अभिव्यक्त या विवक्षित सम्मति से की जाए, किसी ऐसी अपहानि के कारण, अपराध नहीं है जो उस बात से उस व्यक्ति को कारित हो, या कारित करने का कर्ता का आशय हो या कारित होने की सम्भाव्यता कर्ता को ज्ञात हो :

परन्तुक - परन्तु -

पहला - इस अपवाद का विस्तार साशय मृत्युकारित करने या मृत्यु कारित करने का प्रयत्न करने पर न होगा;

दूसरा - इस अपवाद का विस्तार मृत्यु या घोर उपहति के निवारण के या किसी घोर रोग या अंगशैथिल्य से मुक्त करने के प्रयोजन से भिन्न किसी प्रयोजन के लिए किसी ऐसी बात के करने पर न होगा जिसे करने वाला व्यक्ति जानता हो कि उससे मृत्युकारित होना संभाव्य है;

तीसरा - इस अपवाद का विस्तार स्वेच्छया घोर उपहति कारित करने या घोर उपहति कारित करने का प्रयत्न करने पर न होगा जब तक कि वह मृत्यु या घोर उपहति के निवारण के, या किसी घोर रोग या अंगशैथिल्य से मुक्त करने के प्रयोजन से न की गई हो;

चौथा - इस अपवाद का विस्तार किसी ऐसे अपराध के दुष्प्रेरण पर न होगा जिस अपराध के किए जाने पर इसका विस्तार नहीं है।

दृष्टांत -

क सद्भावपूर्वक, अपने शिशु के फायदे के लिए अपने शिशु की सम्मति के बिना, यह संभाव्य जानते हुए कि शल्यकर्म से उस शिशु की मृत्युकारित होगी, न कि इस आशय से कि उस शिशु की मृत्युकारित कर दे, शल्य चिकित्सक द्वारा पथरी निकलवाने के लिए अपने शिशु की शल्यक्रिया करवाता है। क का उद्देश्य शिशु को रोगमुक्त कराना था, इसलिए वह इस अपवाद के अन्तर्गत आता है।

90. सम्मति, जिसके संबंध में यह ज्ञात हो कि वह भय या भ्रम के अधीन दी गई है -

कोई सम्मति ऐसी सम्मति नहीं है जैसी इस संहिता की किसी धारा से आशयित है, यदि वह सम्मति किसी व्यक्ति ने क्षति, भय के अधीन या तथ्य के भ्रम के अधीन दी हो, और यदि कार्य करने वाला व्यक्ति यह जानता हो या उसके पास विश्वास करने का कारण हो कि ऐसे भय या भ्रम के परिणामस्वरूप वह सम्मति दी गई थी; अथवा 

उन्मत्त व्यक्ति की सम्मति - यदि वह सम्मति ऐसे व्यक्ति ने दी हो जो चित्तविकृति या मत्तता के कारण उस बात की, जिसके लिए वह अपनी सम्मति देता है, प्रकृति और परिणाम को समझने में असमर्थ हो; अथवा 

शिशु की सम्मति - जब तक कि संदर्भ से तत्प्रतिकूल प्रतीत न हो, यदि वह सम्मति ऐसे व्यक्ति ने दी हो जो बारह वर्ष से कम आयु का है।

91. ऐसे कार्यों का अपवर्जन जो कारित अपहानि के बिना भी स्वतः अपराध है -

धारा 87, 88 और 89 के अपवादों का विस्तार उन कार्यों पर नहीं है जो उस अपहानि के बिना भी स्वतः अपराध है जो उस व्यक्ति को, जो सम्मति देता है या जिसकी ओर से सम्मति दी जाती है, उन कार्यों से कारित हो, या कारित किए जाने का आशय हो, या कारित होने की सम्भाव्यता ज्ञात हो।

दृष्टांत -

गर्भपात कराना (जब तक कि वह उस स्त्री का जीवन बचाने के प्रयोजन से सद्भावपूर्वक कारित न किया गया हो) किसी अपहानि के बिना भी, जो उससे उस स्त्री को कारित हो या कारित करने का आशय हो, स्वतः अपराध है। इसलिए वह “ऐसी अपहानि के कारण" अपराध नहीं है; और ऐसा गर्भपात कराने की उस स्त्री की या उसके संरक्षक की सम्मति उस कार्य को न्यानुमत नहीं बनाती है। 

92. सम्मति के बिना किसी व्यक्ति के फायदे के लिए सद्भावपूर्वक किया गया कार्य -

कोई बात, जो किसी व्यक्ति के फायदे के लिए सद्भावपूर्वक यद्यपि उसकी सम्मति के बिना, की गई है, ऐसी किसी अपहानि के कारण, जो उस बात से उस व्यक्ति को कारित हो जाए, अपराध नहीं है, यदि परिस्थितियां ऐसी हों कि उस व्यक्ति के लिए यह असंभव हो कि वह अपनी सम्मति प्रकट करे या वह व्यक्ति सम्मति देने के लिए असमर्थ हो और उसका कोई संरक्षक या उसका विधिपूर्ण भारसाधक कोई दूसरा व्यक्ति न हो जिससे ऐसे समय पर सम्मति अभिप्राप्त करना संभव हो कि वह बात फायदे के साथ की जा सके ।

परन्तुक - परन्तु -

पहला - इस अपवाद का विस्तार साशय मृत्युकारित करने या मृत्युकारित करने का प्रयत्न करने पर न होगा;

दूसरा - इस अपवाद का विस्तार मृत्यु या घोर उपहति के निवारण के या किसी घोर रोग या अंगशैथिल्य से मुक्त करने के प्रयोजन से भिन्न किसी प्रयोजन के लिए किसी ऐसी बात के करने पर न होगा, जिसे करने वाला व्यक्ति जानता हो कि उससे मृत्यु कारित होना संभाव्य है;

तीसरा - इस अपवाद का विस्तार मृत्यु या उपहति के निवारण के प्रयोजन से भिन्न किसी प्रयोजन के लिए स्वेच्छया उपहति कारित करने या उपहति कारित करने का प्रयत्न करने पर न होगा;

चौथा - इस अपवाद का विस्तार किसी ऐसे अपराध के दुष्प्रेरण पर न होगा जिस अपराध के किए जाने पर इसका विस्तार नहीं है।

दृष्टांत -

(क) य अपने घोड़े से गिर गया और मूर्छित हो गया है। क, एक शल्य चिकित्सक का यह विचार है कि य के कपाल पर शल्य क्रिया आवश्यक है। क, य की मृत्यु करने का आशय न रखते हुए, किन्तु सद्भावपूर्वक य के फायदे के लिए य के स्वयं किसी निर्णय पर पहुंचने की शक्ति प्राप्त करने से पूर्व ही कपाल पर शल्यक्रिया करता है। क ने कोई अपराध नहीं किया।

(ख) य को एक बाघ उठा ले जाता है। यह जानते हुए कि संभाव्य है कि गोली लगने से य मर जाए, किन्तु य का वध करने का आशय न रखते हुए और सद्भावपूर्वक य के फायदे के आशय से क उस बाघ पर गोली चलाता है। क की गोली से य को मृत्युकारक घाव हो जाता है। क ने कोई अपराध नहीं किया।

(ग) क, एक शल्य चिकित्सक, यह देखता है कि एक शिशु की ऐसी दुर्घटना हो गई है जिसका प्राणांतक साबित होना सम्भाव्य है, यदि शल्यकर्म तुरन्त न कर दिया जाए। इतना समय नहीं है कि उस शिशु के संरक्षक से आवेदन किया जा सके। क, सद्भावपूर्वक शिशु के फायदे का आशय रखते हुए शिशु के अन्यथा अनुनय करने पर भी शल्यकर्म करता है। क ने कोई अपराध नहीं किया। 

(घ) एक शिशु य के साथ क एक जलते हुए गृह में है। गृह के नीचे लोग एक कम्बल तान लेते हैं। क उस शिशु को यह जानते हुए कि सम्भाव्य है कि गिरने से वह शिशु मर जाए किन्तु उस शिशु को मार डालने का आशय न रखते हुए और सद्भावपूर्वक उस शिशु के फायदे के आशय से गृह-छत पर से नीचे गिरा देता है। यहां, यदि गिरने से वह शिशु मर भी जाता है, तो भी क ने कोई अपराध नहीं किया।

स्पष्टीकरण - केवल धन संबंधी फायदा वह फायदा नहीं है, जो धारा 88, 89 और 92 के भीतर आता है।

93. सद्भावपूर्वक दी गई संसूचना -

सद्भावपूर्वक दी गई संसूचना उस अपहानि के कारण अपराध नहीं है, जो उस व्यक्ति को हो जिसे वह दी गई है, यदि वह उस व्यक्ति के फायदे के लिए दी गई हो।

दृष्टांत -

क, एक शल्य चिकित्सक, एक रोगी को सद्भावपूर्वक यह संसूचित करता है कि उसकी राय में वह जीवित नहीं रह सकता। इस आघात के परिणामस्वरूप उस रोगी की मृत्यु हो जाती है। क ने कोई अपराध नहीं किया है, यद्यपि वह जानता था कि उस संसूचना से उस रोगी की मृत्यु कारित होना संभाव्य है।

94. वह कार्य जिसको करने के लिए कोई व्यक्ति धमकियों द्वारा विवश किया गया है -

हत्या और मृत्यु से दण्डनीय उन अपराधों को जो राज्य के विरुद्ध है, छोड़कर कोई बात अपराध नहीं है, जो ऐसे व्यक्ति द्वारा की जाए, जो उसे करने के लिए ऐसी धमकियों से विवश किया गया हो जिनसे उस बात को करते समय उसको युक्तियुक्त रूप से यह आशंका कारित हो गई हो कि अन्यथा परिणाम यह होगा कि उस व्यक्ति की तत्काल मृत्यु हो जाए।

परन्तु यह तब जबकि उस कार्य को करने वाले व्यक्ति ने अपनी ही इच्छा से या तत्काल मृत्यु से कम अपनी अपहानि की युक्तियुक्त आशंका से अपने को उस स्थिति में न डाला हो, जिसमें कि वह ऐसी मजबूरी के अधीन पड़ गया है।

स्पष्टीकरण 1 - वह व्यक्ति, जो स्वयं अपनी इच्छा से, या पीटे जाने की धमकी के कारण, डाकुओं की टोली में उनके शील को जानते हुए सम्मिलित हो जाता है, इस आधार पर ही इस अपवाद का फायदा उठाने का हकदार नहीं कि वह अपने साथियों द्वारा ऐसी बात करने के लिए विवश किया गया था जो विधिना अपराध है। |

स्पष्टीकरण 2 - डाकुओं की एक टोली द्वारा अभिगृहीत और तत्काल मृत्यु की धमकी द्वारा किसी बात के करने के लिए जो विधिना अपराध है, विवश किया गया व्यक्ति, उदाहरणार्थ, एक लोहार, जो अपने औजार लेकर एक गृह का द्वार तोड़ने को विवश किया जाता है, जिससे डाकू उसमें प्रवेश कर सकें और उसे लूट सकें, इस अपवाद का फायदा उठाने के लिए हकदार है।

95. तुच्छ अपहानि कारित करने वाला कार्य -

कोई बात इस कारण से अपराध नहीं है कि उससे कोई अपहानि कारित होती है या कारित की जानी आशयित है या कारित होने की संभाव्यता ज्ञात है, यदि वह इतनी तुच्छ है कि मामूली समझ और स्वभाव वाला कोई व्यक्ति उसकी शिकायत न करेगा।

प्राइवेट प्रतिरक्षा के अधिकार के विषय में

96. प्राइवेट प्रतिरक्षा में की गई बातें -

कोई बात अपराध नहीं है, जो प्राइवेट प्रतिरक्षा के अधिकार के प्रयोग में की जाती है।

97. शरीर तथा संपत्ति की प्राइवेट प्रतिरक्षा का अधिकार -

धारा 99 में अन्तर्विष्ट निबंधनों के अध्यधीन, हर व्यक्ति को अधिकार है कि वह -

पहला - मानव शरीर पर प्रभाव डालने वाले किसी अपराध के विरुद्ध अपने शरीर और किसी अन्य व्यक्ति के शरीर की प्रतिरक्षा करें;

दूसरा - किसी ऐसे कार्य के विरुद्ध, जो चोरी, लूट, रिष्टि या आपराधिक अतिचार की परिभाषा में आने  वाला अपराध है, या जो चोरी, लूट, रिष्टि या आपराधिक अतिचार करने का प्रयत्न है अपनी या किसी अन्य व्यक्ति की, चाहे जंगम, चाहे स्थावर संपत्ति की प्रतिरक्षा करे।

98. ऐसे व्यक्ति के कार्य के विरुद्ध प्राइवेट प्रतिरक्षा का अधिकार जो विकृतचित्त आदि हो -

जबकि कोई कार्य, जो अन्यथा कोई अपराध होता, उस कार्य को करने वाले व्यक्ति के बालकपन, समझ की परिपक्वता के अभाव, चित्तविकृति या मत्तता के कारण, या उस व्यक्ति के किसी भ्रम के कारण, वह अपराध नहीं है, तब हर व्यक्ति उस कार्य के विरुद्ध प्राइवेट प्रतिरक्षा का वही अधिकार रखता है, जो वह उस कार्य के वैसा अपराध होने की दशा में रखता।

दृष्टांत -

(क) य, पागलपन के असर में, क को जान से मारने का प्रयत्न करता है। य किसी अपराध का दोषी नहीं है। किन्तु क को प्राइवेट प्रतिरक्षा का वही अधिकार है, जो वह य के स्वस्थचित्त होने की दशा में रखता। 

(ख) क रात्रि में एक ऐसे गृह में प्रवेश करता है जिसमें प्रवेश करने के लिए वह वैध रूप से हकदार है। य, सद्भावपूर्वक क को गृहभेदक समझकर, क पर आक्रमण करता है। यहां य इस भ्रम के अधीन क पर आक्रमण करके कोई अपराध नहीं करता है, किन्तु क, य के विरुद्ध प्राइवेट प्रतिरक्षा का वही अधिकार रखता है, जो वह तब रखता, जब य उस भ्रम के अधीन कार्य न करता।

99. कार्य, जिनके विरुद्ध प्राइवेट प्रतिरक्षा का कोई अधिकार नहीं है -

यदि कोई कार्य, जिससे मृत्यु या घोर उपहति की आशंका युक्तियुक्त रूप से कारित नहीं होती, सद्भावपूर्वक अपने पदाभास में कार्य करते हुए लोक-सेवक द्वारा किया जाता है या किए जाने का प्रयत्न किया जाता है तो उस कार्य के विरुद्ध प्राइवेट प्रतिरक्षा का कोई अधिकार नहीं है, चाहे वह कार्य विधि अनुसार सर्वथा न्यायानुमत न भी हो। 

यदि कोई कार्य, जिससे मृत्यु या घोर उपहति की आशंका युक्तियुक्त रूप से कारित नहीं होती, सद्भावपूर्वक अपने पदाभास में कार्य करते हुए लोक-सेवक के निर्देश से किया जाता है, या किए जाने का प्रयत्न किया जाता है, तो उस कार्य के विरुद्ध प्राइवेट प्रतिरक्षा का कोई अधिकार नहीं है, चाहे वह निदेश विधि अनुसार सर्वथा न्यायनुमत न भी हो।

उन दशाओं में जिनमें संरक्षा के लिए लोक प्राधिकारियों की सहायता प्राप्त करने के लिए समय है, प्राइवेट प्रतिरक्षा का कोई अधिकार नहीं है।

इस अधिकार के प्रयोग का विस्तार - किसी दशा में भी प्राइवेट प्रतिरक्षा के अधिकार का विस्तार उतनी अपहानि से अधिक अपहानि करने पर नहीं है, जितनी प्रतिरक्षा के प्रयोजन से करनी आवश्यक है।

स्पष्टीकरण 1- कोई व्यक्ति किसी लोक-सेवक द्वारा ऐसे लोक-सेवक के नाते किए गए या किए जाने के लिए प्रयतित, कार्य के विरुद्ध प्राइवेट प्रतिरक्षा के अधिकार से वंचित नहीं होता, जबकि वह यह न जानता हो, या विश्वास करने का कारण न रखता हो कि उस कार्य को करने वाला व्यक्ति ऐसा लोक-सेवक है।  

स्पष्टीकरण 2 - कोई व्यक्ति किसी लोक-सेवक के निदेश से किए गए, या किए जाने के लिए प्रयतित, किसी कार्य के विरुद्ध प्राइवेट प्रतिरक्षा के अधिकार से वंचित नहीं होता, जब तक कि वह यह न जानता हो, या विश्वास करने का कारण न रखता हो, कि उस कार्य को करने वाला व्यक्ति ऐसे निदेश से कार्य कर रहा है, या जब तक कि वह व्यक्ति उस प्राधिकार का कथन न कर दे, जिसके अधीन वह कार्य कर रहा है, या यदि उसके पास लिखित प्राधिकार है, तो जब तक कि वह ऐसे प्राधिकार को मांगे जाने पर पेश न कर दे।

100. शरीर की प्राइवेट प्रतिरक्षा के अधिकार का विस्तार मृत्युकारित करने तक कब होता है -

शरीर की प्राइवेट प्रतिरक्षा के अधिकार का विस्तार, पूर्ववर्ती अंतिम धारा में वर्णित निर्बधनों के अधीन रहते हुए, हमलावर की स्वेच्छया मृत्यु कारित करने या कोई अन्य अपहानि कारित करने तक है, यदि वह अपराध, जिसके कारण उस अधिकार के प्रयोग का अवसर आता है, एतस्मिन् पश्चात् प्रगणित भांतियों में से किसी भी भांति का है, अर्थात् :-

पहला - ऐसा हमला जिससे युक्तियुक्त रूप से यह आशंका कारित हो कि अन्यथा ऐसे हमले का परिणाम मृत्यु होगा;

दूसरा - ऐसा हमला जिससे युक्तियुक्त रूप से यह आशंका कारित हो कि अन्यथा ऐसे हमले का परिणाम घोर उपहति होगा;

तीसरा - बलात्संग करने के आशय से किया गया हमला;

चौथा - प्रकृति विरुद्ध काम-तृष्णा की तृप्ति के आशय से किया गया हमला;

पाँचवाँ - व्यपहरण या अपहरण करने के आशय से किया गया हमला;

छठा - इस आशय से किया गया हमला कि किसी व्यक्ति का ऐसी परिस्थितियों में सदोष परिरोध किया जाए, जिनसे उसे युक्तियुक्त रूप से यह आशंका कारित हो कि वह अपने को छुड़वाने के लिए लोक प्राधिकारियों की सहायता प्राप्त नहीं कर सकेगा।

सातवां - अम्ल फेंकने या देने का कृत्य, या अम्ल फेंकने या देने का प्रयास करना जिससे युक्तियुक्त रूप से यह आशंका कारित हो कि ऐसे कृत्य के परिणामस्वरूप अन्यथा घोर उपहति कारित होगी। GO toTOP

101. कब ऐसे अधिकार का विस्तार मृत्यु से भिन्न कोई अपहानि कारित करने तक का होता है -

यदि अपराध पूर्वगामी अंतिम धारा में प्रगणित भांतियों में से किसी भांति का नहीं है, तो शरीर की प्राइवेट प्रतिरक्षा के अधिकार का विस्तार हमलावर की मृत्यु स्वेच्छया कारित करने तक का नहीं होता, किन्तु इस अधिकार का विस्तार धारा 99 में वर्णित निबंधनों के अध्यधीन हमलावर की मृत्यु से भिन्न कोई अपहानि स्वेच्छया कारित करने तक का होता है।

102. शरीर की प्राइवेट प्रतिरक्षा के अधिकार का प्रारंभ और बना रहना -

शरीर की प्राइवेट प्रतिरक्षा का अधिकार उसी क्षण प्रारंभ हो जाता है, जब अपराध करने के प्रयत्न या धमकी से शरीर के संकट की युक्तियुक्त आशंका पैदा होती है, चाहे वह अपराध किया न गया हो और वह तब तक बना रहता है जब तक शरीर के संकट की ऐसी आशंका बनी रहती है।

103. कब संपत्ति की प्राइवेट प्रतिरक्षा के अधिकार का विस्तार मृत्युकारित करने तक का होता है -

संपत्ति की प्राइवेट प्रतिरक्षा के अधिकार का विस्तार, धारा 99 में वर्णित निर्बधनों के अध्यधीन दोषकर्ता की मृत्यु या अन्य अपहानि स्वेच्छया कारित करने तक का है, यदि वह अपराध जिसके किए जाने के, या किए जाने के प्रयत्न के कारण उस अधिकार के प्रयोग का अवसर आता है एतस्मिन् पश्चात् प्रगणित भांतियों में से किसी भी भांति का है, अर्थात् :-

पहला - लूट;

दूसरा - रात्रि गृह भेदन;

तीसरा - अग्नि द्वारा रिष्टि, जो किसी ऐसे निर्माण, तम्बू या जलयान को की गई है, जो मानव आवास के रूप में या संपत्ति की अभिरक्षा के स्थान के रूप में उपयोग में लाया जाता है;

चौथा - चोरी, रिष्टि या गृह अतिचार, जो ऐसी परिस्थितियों में किया गया है, जिनसे युक्तियुक्त रूप से यह आशंका कारित हो कि यदि प्राइवेट प्रतिरक्षा के ऐसे अधिकार का प्रयोग न किया गया तो परिणाम मृत्यु या घोर उपहति होगा।

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राज्य संशोधन

उत्तरप्रदेश - धारा 103 में चौथे खण्ड के पश्चात्‌ अग्रलिखित खण्ड जोड़ा जाएगा, यथा :-

'पाँचवाँ - आग या ज्वलनशील पदार्थ द्वारा -

(क) शासन या किसी स्थानीय प्राधिकारी या शासन के स्वामित्व या नियंत्रण में का कोई निगम के प्रयोजनों के लिए उपयोग की गई या उपयोग के लिए आशयित किसी संपत्ति को, या

(ख) भारतीय रेल अधिनियम, 1880 की धारा 3 के खण्ड (4) में यथा परिभाषित कोई रेलवे या रेलवे स्टोर्स (विधिविरुद्ध कब्जा) अधिनियम, 1955 में यथा परिभाषित स्टोर्स को, या

(ग). मोटर यान अधिनियम, 1939 की धारा 2 के खण्ड (33)* में यथा परिभाषित कोई परिवहन वाहन को, रिष्टि पहुंचाना।''

[यू.पी. अधिनियम संख्या 29 सन्‌ 1970 की धारा 2, दिनांक 17-7-1970 से प्रभावशील]

* अब देखें, मोटर यान अधिनियम, 1988 की धारा 2 का खण्ड (47) ।

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104. ऐसे अधिकार का विस्तार मृत्यु से भिन्न कोई अपहानि कारित करने तक का कब होता है -

यदि वह अपराध, जिसके किए जाने या जिसके किए जाने के प्रयत्न से प्राइवेट प्रतिरक्षा के अधिकार के प्रयोग का अवसर आता है, ऐसी चोरी, रिष्टि या आपराधिक अतिचार है, जो पूर्वगामी अंतिम धारा में प्रगणित भांतियों में से किसी भांति का न हो, तो उस अधिकार का विस्तार स्वेच्छया मृत्यु कारित करने तक का नहीं होता, किन्तु उसका विस्तार धारा 99 में वर्णित निर्बधनों के अध्यधीन दोषकर्ता की मृत्यु से भिन्न कोई अपहानि स्वेच्छया कारित करने तक का होता है।

105. संपत्ति की प्राइवेट प्रतिरक्षा के अधिकार का प्रारंभ और बना रहना –

संपत्ति की प्राइवेट प्रतिरक्षा का अधिकार तब प्रारंभ होता है, जब संपत्ति के संकट की युक्तियुक्त आशंका प्रारंभ होती है।

संपत्ति की प्राइवेट प्रतिरक्षा का अधिकार चोरी के विरुद्ध अपराधी के संपत्ति सहित पहुंच से बाहर हो जाने तक अथवा या तो लोक प्राधिकारियों की सहायता अभिप्राप्त कर लेने या संपत्ति प्रत्युद्धत हो जाने तक बना रहता है।

संपत्ति की प्राइवेट प्रतिरक्षा का अधिकार लूट के विरुद्ध तब तक बना रहता है, जब तक अपराधी किसी व्यक्ति की मृत्यु या उपहति, या सदोष अवरोध कारित करता रहता या कारित करने का प्रयत्न करता रहता है, अथवा जब तक तत्काल मृत्यु का, या तत्काल उपहति का, या तत्काल वैयक्तिक अवरोध का, भय बना रहता है।

संपत्ति की प्राइवेट प्रतिरक्षा का अधिकार आपराधिकआतेचार या रिष्टि के विरुद्ध तब तक बना रहता है, जब तक अपराधी आपराधिक अतिचार या रिष्टि करता रहता है।

संपत्ति की प्राइवेट प्रतिरक्षा का अधिकार रात्रि गृहभेदन के विरुद्ध तब तक बना रहता है, जब तक ऐसे गृहभेदन से आरंभ हुआ गृह अतिचार होता रहता है।

106. घातक हमले के विरुद्ध प्राइवेट प्रतिरक्षा का अधिकार जबकि निर्दोष व्यक्ति को अपहानि होने की जोखिम है -

जिस हमले से मृत्यु की आशंका युक्तियुक्त रूप से कारित होती है उसके विरुद्ध प्राइवेट प्रतिरक्षा के अधिकार का प्रयोग करने में यदि प्रतिरक्षक ऐसी स्थिति में हो कि निर्दोष व्यक्ति की अपहानि की जोखिम के बिना वह उस अधिकार का प्रयोग कार्यसाधक रूप से न कर सकता हो तो उसके प्राइवेट प्रतिरक्षा के अधिकार का विस्तार वह जोखिम उठाने तक का है।

दृष्टांत -

क, पर एक भीड़ द्वारा आक्रमण किया जाता है, जो उसकी हत्या करने का प्रयत्न करती है। वह उस भीड़ पर गोली चलाए बिना प्राइवेट प्रतिरक्षा के अपने अधिकार का प्रयोग कार्यसाधक रूप से नहीं कर सकता, और वह भीड़ में मिले हुए छोटे-छोटे शिशुओं को अपहानि करने की जोखिम उठाए बिना गोली नहीं चला सकता। यदि वह इस प्रकार गोली चलाने से उन शिशुओं में से किसी शिशु को अपहानि करे तो क कोई अपराध नहीं करता।

अध्याय: 5 दुष्प्रेरण के विषय में

107. किसी बात का दुष्प्रेरण -

वह व्यक्ति किसी बात के किए जाने का दुष्प्रेरण करता है, जो -

पहला - उस बात को करने के लिए किसी व्यक्ति को उकसाता है; अथवा 

दूसरा - उस बात को करने के लिए किसी षड़यंत्र में एक या अधिक अन्य व्यक्ति या व्यक्तियों के साथ सम्मिलित होता है, यदि उस षड़यंत्र के अनुसरण में, और उस बात को करने के उद्देश्य से, कोई कार्य या अवैध लोप घटित हो जाए; अथवा 

तीसरा - उस बात के लिए किए जाने में किसी कार्य या अवैध लोप द्वारा साशय सहायता करता है।

स्पष्टीकरण 1- जो कोई व्यक्ति जानबूझकर दुर्व्यपदेशन द्वारा, या तात्विक तथ्य, जिसे प्रकट करने के लिए वह आबद्ध है, जानबूझकर छिपाने द्वारा, स्वेच्छया किसी बात का किया जाना कारित या उपाप्त करता है अथवा कारित या उपाप्त करने का प्रयत्न करता है, वह उस बात का किया जाना उकसाता है, यह कहा जाता है।

दृष्टांत -

क एक लोक ऑफिसर, न्यायालय के वारण्ट द्वारा य को पकड़ने के लिए प्राधिकृत है। ख उस तथ्य को जानते हुए और यह भी जानते हुए कि ग, य नहीं है, क को जानबूझकर यह व्यपदिष्ट करता है, कि ग, य है और तद्द्वारा साशय के से ग को पकड़वाता है। यहां ख, ग के पकड़े जाने का उकसाने द्वारा दुष्प्रेरण करता है।  

स्पष्टीकरण 2 - जो कोई या तो किसी कार्य के किए जाने से पूर्व या किए जाने के समय, उस कार्य के किए जाने को सुकर बनाने के लिए कोई बात करता है और एतद्द्वारा उसके किए जाने को सुकर बनाता है वह उस कार्य के करने में सहायता करता है, यह कहा जाता है।

108. दुष्प्रेरक -

वह व्यक्ति अपराध का दुष्प्रेरण करता है, जो अपराध के किए जाने का दुष्प्रेरण करता है या ऐसे कार्य के किए जाने का दुष्प्रेरण करता है, जो अपराध होता, यदि वह कार्य अपराध करने के लिए विधि अनुसार समर्थ व्यक्ति द्वारा उसी आशय या ज्ञान से, जो दुष्प्रेरक का है, किया जाता।

स्पष्टीकरण 1 - किसी कार्य के अवैध लोप का दुष्प्रेरण अपराध की कोटि में आ सकेगा, चाहे दुष्प्रेरक उस कार्य को करने के लिए स्वयं आबद्ध न हो।

स्पष्टीकरण 2 - दुष्प्रेरण का अपराध गठित होने के लिए यह आवश्यक नहीं है कि दुष्प्रेरित कार्य किया जाए या अपराध गठित करने के लिए अपेक्षित प्रभाव कारित हो।

दृष्टांत -

(क) ग की हत्या करने के लिए ख को क उकसाता है। ख वैसा करने से इंकार कर देता है। क हत्या करने के लिए ख के दुष्प्रेरण का दोषी है |

(ख) घ की हत्या करने के लिए ख को क उकसाता है। ख ऐसी उकसाहट के अनुसरण में घ को विद्ध करता है। घ का घाव अच्छा हो जाता है। क हत्या करने के लिए ख को उकसाने का दोषी है।  

स्पष्टीकरण 3 -- यह आवश्यक नहीं है कि दुष्प्रेरित व्यक्ति अपराध करने के लिए विधि अनुसारसमर्थ हो, या उसका वही दूषित आशय या ज्ञान हो, जो दुष्प्रेरक का है, या कोई भी दूषित आशय या ज्ञान हो।

दृष्टांत -

(क) क दूषित आशय से एक शिशु या पागल को वह कार्य करने के लिए दुष्प्रेरित करता है, जो अपराध होगा, यदि वह ऐसे व्यक्ति द्वारा किया जाए जो कोई अपराध करने के लिए विधि अनुसार समर्थ है और वही आशय रखता है जो कि क का है। यहां, चाहे वह कार्य किया जाए, या न किया जाए, क अपराध के दुष्प्रेरण का दोषी है। 

(ख) य की हत्या करने के आशय से ख को, जो सात वर्ष से कम आयु का शिशु है, वह कार्य करने के लिए के उकसाता है जिससे य की मृत्यु कारित हो जाती है। ख दुष्प्रेरण के परिणामस्वरूप वह कार्य क की अनुपस्थिति में करता है और उससे य की मृत्यु कारित करता है। यहां यद्यपि ख वह अपराध करने के लिए विधि अनुसार समर्थ नहीं था तथापि क उसी प्रकार से दण्डनीय है, मानो ख वह अपराध करने के लिए विधि अनुसार समर्थ हो और उसने हत्या की हो, और इसलिए क मृत्युदण्ड से दण्डनीय है।

(ग) ख को एक निवास गृह में आग लगाने के लिए क उकसाता है। ख अपनी चित्तविकृति के परिणामस्वरूप उस कार्य की प्रकृति या यह कि वह जो कुछ कर रहा है वह दोषपूर्ण या विधि के प्रतिकूल है जानने में असमर्थ होने के कारण क के उकसाने के परिणामस्वरूप उस गृह में आग लगा देता है। ख ने कोई अपराध नहीं किया है, किन्तु क एक निवासगृह में आग लगाने के अपराध के दुष्प्रेरण का दोषी है, और उस अपराध के लिए उपबंधित दण्ड से दण्डनीय है।

(घ) क चोरी कराने के आशय से य के कब्जे में से य की संपत्ति लेने के लिए ख को उकसाता है। ख को यह विश्वास करने के लिए क उत्प्रेरित करता है कि वह संपत्ति क की है। ख उस संपत्ति को इस विश्वास से कि वह क की संपत्ति है, य के कब्जे में से सद्भावपूर्वक ले लेता है। ख इस भ्रम के अधीन कार्य करते हुए, उसे बेईमानी से नहीं लेता, और इसलिए चोरी नहीं करता, किन्तु क चोरी के दुष्प्रेरण का दोषी है, और उसी दण्ड से दण्डनीय है, मानो ख ने चोरी की हो।

स्पष्टीकरण 4 - अपराध का दुष्प्रेरण अपराध होने के कारण ऐसे दुष्प्रेरण का दुष्प्रेरण भी अपराध है।

दृष्टांत -

ग को य की हत्या करने को उकसाने के लिए ख को क उकसाता है। ख तद्नुकुल य की हत्या करने के लिए ग को उकसाता है और ख के उकसाने के परिणामस्वरूप ग उस अपराध को करता है। ख अपने अपराध के लिए हत्या के दण्ड से दण्डनीय है, और क ने उस अपराध को करने के लिए ख को उकसाया, इसलिए क भी उसी दण्ड से दण्डनीय है।  

स्पष्टीकरण 5 - षड़यंत्र द्वारा दुष्प्रेरण का अपराध करने के लिए यह आवश्यक नहीं है कि दुष्प्रेरक उस अपराध को करने वाले व्यक्ति के साथ मिलकर उस अपराध की योजना बनाए। यह पर्याप्त है कि उस षड़यंत्र में सम्मिलित हो जिसके अनुसरण में वह अपराध किया जाता है।

दृष्टांत -

य को विष देने के लिए क एक योजना ख से मिलकर बनाता है। यह सहमति हो जाती है कि क विष देगा। ख तब यह वर्णित करते हुए ग को यह योजना समझा देता है कि कोई तीसरा व्यक्ति विष देगा, किन्तु क का नाम नहीं लेता। ग विष उपाप्त करने के लिए सहमत हो जाता है, और उसे उपाप्त करके समझाए गए प्रकार से प्रयोग में लाने के लिए ख को परिदत्त करता है। क विष देता है, परिणामस्वरूप य की मृत्यु हो जाती है। यहां यद्यपि क और ग ने मिलकर षड़यंत्र नहीं रचा है, तो भी ग उस षड़यंत्र से सम्मिलित रहा है, जिसके अनुसरण में य की हत्या की गई है। इसलिए ग ने इस धारा में परिभाषित अपराध किया है और हत्या के लिए दण्ड से दण्डनीय है।

108 क, भारत से बाहर के अपराधों का भारत में दुष्प्रेरण -

वह व्यक्ति इस संहिता के अर्थ के अन्तर्गत अपराध का दुष्प्रेरण करता है, जो भारत से बाहर और उससे परे किसी ऐसे कार्य के किए जाने का भारत में दुष्प्रेरण करता है, जो अपराध होगा, यदि भारत में किया जाए।

दृष्टांत -

क,भारत में ख को, जो गोवा में विदेशी है, गोवा में हत्या करने के लिए उकसाता है। क हत्या के दुष्प्रेरण का दोषी है।

109. दुष्प्रेरण का दण्ड, यदि दुष्प्रेरित कार्य उसके परिणामस्वरूप किया जाए, और जहां कि उसके दण्ड के लिए कोई अभिव्यक्त उपबंध नहीं है -

जो कोई किसी अपराध का दुष्प्रेरण करता है, यदि दुष्प्रेरित कार्य दुष्प्रेरण के परिणामस्वरूप किया जाता है, और ऐसे दुष्प्रेरण के दण्ड के लिए इस संहिता द्वारा कोई अभिव्यक्त उपबंध नहीं किया गया है, तो वह उस दण्ड से दण्डित किया जाएगा, जो उस अपराध के लिए उपबंधित है।

स्पष्टीकरण - कोई कार्य या अपराध दुष्प्रेरण के परिणामस्वरूप किया गया तब कहा जाता है, जब वह उस उकसाहट के परिणामस्वरूप या उस षड़यंत्र के अनुसरण में या उस सहायता से किया जाता है, जिससे दुष्प्रेरण गठित होता है।

दृष्टांत -

(क) ख को, जो एक लोक-सेवक, है ख के पदीय कृत्यों के प्रयोग में क पर कुछ अनुग्रह दिखाने के लिए इनाम के रूप में क रिश्वत की प्रस्थापना करता है। ख वह रिश्वत प्रतिगृहीत कर लेता है। क ने धारा 161 में परिभाषित अपराध का दुष्प्रेरण किया है।

(ख) ख को मिथ्या साक्ष्य देने के लिए क उकसाता है। ख उस उकसाहट के परिणामस्वरूप, वह अपराध करता है। क उस अपराध के दुष्प्रेरण का दोषी है, और उसी दण्ड से दण्डनीय है जिससे ख है।

(ग) य को विष देने का षड़यंत्र क और ख रचते हैं। क उस षड़यंत्र के अनुसरण में विष उपाप्त करता है और उसे ख को इसलिए परिदत्त करता है कि वह उसे य को दे। ख उस षड़यंत्र के अनुसरण में वह विष क की अनुपस्थिति में य को देता है और उसके द्वारा य की मृत्युकारित कर देता है। यहां ख, हत्या का दोषी है। क षड़यंत्र द्वारा उस अपराध के दुष्प्रेरण का दोषी है, और वह हत्या के लिए दण्ड से दण्डनीय है।

110. दुष्प्रेरण का दण्ड, यदि दुष्प्रेरित व्यक्ति दुष्प्रेरक के आशय से भिन्न आशय से कार्य करता है -

जो कोई किसी अपराध के किए जाने का दुष्प्रेरण करता है, यदि दुष्प्रेरित व्यक्ति ने दुष्प्रेरक के आशय या ज्ञान से भिन्न आशय या ज्ञान से वह कार्य किया हो, तो वह उसी दण्ड से दण्डित किया जाएगा, जो उस अपराध के लिए उपबंधित है, जो किया जाता यदि वह कार्य दुष्प्रेरक के ही आशय या ज्ञान से, न कि किसी अन्य आशय या ज्ञान से, किया जाता।

111. दुष्प्रेरक का दायित्व जब एक कार्य का दुष्प्रेरण किया गया है और उससे भिन्न कार्य किया गया है -

जबकि किसी एक कार्य का दुष्प्रेरण किया जाता है, और कोई भिन्न कार्य किया जाता है, तब दुष्प्रेरक उस किए गए कार्य के लिए उसी प्रकार से और उसी विस्तार तक दायित्व के अधीन है, मानो उसने सीधे उसी कार्य का दुष्प्रेरण किया हो :

परन्तुक - परन्तु यह तब जबकि किया गया कार्य दुष्प्रेरण का अधिसंभाव्य परिणाम था और उस उकसाहट के असर के अधीन या उस सहायता से या उस षड़यंत्र के अनुसरण में किया गया था जिससे वह दुष्प्रेरण गठित होता है।

दृष्टांत -

(क) एक शिशु को य के भोजन में विष डालने के लिए क उकसाता है, और उस प्रयोजन से उसे विष परिदत्त करता है। वह शिशु उस उकसाहट के परिणामस्वरूप भूल से म के भोजन में, जो य के भोजन के पास रखा हुआ है, विष डाल देता है। यहां, यदि वह शिशु क के उकसाने के असर के अधीन उस कार्य को कर रहा था, और किया गया कार्य उन परिस्थितियों में उस दुष्प्रेरण का अधिसंभाव्य परिणाम है, तो क उसी प्रकार और उसी विस्तार तक दायित्व के अधीन है, मानो उसने उस शिशु को म के भोजन में विष डालने के लिए उकसाया हो।

(ख) ख को य का गृह जलाने के लिए क उकसाता है। ख उस गृह को आग लगा देता है और उसी समय वहां संपत्ति की चोरी करता है। क यद्यपि गृह जलाने के दुष्प्रेरण का दोषी है, किन्तु चोरी के दुष्प्रेरण का दोषी नहीं है; क्योंकि वह चोरी एक अलग कार्य थी और उस गृह के जलाने का अधिसंभाव्य परिणाम नहीं थी।  

(ग) ख और ग को बसे हुए गृह में अर्धरात्रि में लूट के प्रयोजन से भेदन करने के लिए क उकसाता है, और उनको उस प्रयोजन के लिए आयुध देता है। ख और ग वह गृह भेदन करते हैं, और य द्वारा जो निवासियों में से एक है, प्रतिरोध किए जाने पर, य की हत्या कर देते हैं। यहां, यदि वह हत्या उस दुष्प्रेरण का अधिसंभाव्य परिणाम थी, तो क हत्या के लिए उपबंधित दण्ड से दण्डनीय है।

112. दुष्प्रेरक कब दुष्प्रेरित कार्य के लिए और किए गए कार्य के लिए आकलित दण्ड से दण्डनीय है -

यदि वह कार्य, जिसके लिए दुष्प्रेरक अंतिम पूर्वगामी धारा के अनुसार दायित्व के अधीन है, दुष्प्रेरित कार्य के अतिरिक्त किया जाता है और वह कोई सुभिन्न अपराध गठित करता है, तो दुष्प्रेरक उन अपराधों में से हर एक के लिए दण्डनीय है।

दृष्टांत -

ख को एक लोक-सेवक द्वारा किए गए करस्थम् का बलपूर्वक प्रतिरोध करने के लिए क उकसाता है। ख परिणामस्वरूप उस करस्थम का प्रतिरोध करता है। प्रतिरोध करने में ख करस्थम का निष्पादन करने वाले ऑफिसर को स्वेच्छया घोर उपहति कारित करता है। ख ने करस्थम् का प्रतिरोध करने और स्वेच्छया घोर उपहति कारित करने के दो अपराध किए हैं। इसलिए ख दोनों अपराधों के लिए दण्डनीय है, और यदि क यह संभाव्य जानता था कि उस करस्थम का प्रतिरोध करने में ख स्वेच्छया घोर उपहति कारित करेगा, तो क भी उनमें से हर एक अपराध के लिए दण्डनीय होगा।

113. दुष्प्रेरित कार्य से कारित उस प्रभाव के लिए दुष्प्रेरक का दायित्व जो दुष्प्रेरक द्वारा आशयित से भिन्न हो -

जबकि कार्य का दुष्प्रेरण दुष्प्रेरक द्वारा किसी विशिष्ट प्रभाव को कारित करने के आशय से किया जाता है और दुष्प्रेरण के परिणामस्वरूप जिस कार्य के लिए दुष्प्रेरक दायित्व के अधीन है, वह कार्य दुष्प्रेरक के द्वारा आशयित प्रभाव से भिन्न प्रभाव कारित करता है तब दुष्प्रेरक कारित प्रभाव के लिए उसी प्रकार और उसी विस्तार तक दायित्व के अधीन है, मानो उसने उस कार्य का दुष्प्रेरण उसी प्रभाव को कारित करने के आशय से किया हो परन्तु यह तब जबकि वह यह जानता था कि दुष्प्रेरित कार्य से यह प्रभाव कारित होना संभाव्य है। 

दृष्टांत -

य को घोर उपहति करने के लिए ख को क उकसाता है। ख उस उकसाहट के परिणामस्वरूप य को घोर उपहति कारित करता है। परिणामतः य की मृत्यु हो जाती है। यहां, यदि क यह जानता था कि दुष्प्रेरित घोर उपहति से मृत्यु कारित होना संभाव्य है, तो क हत्या के लिए उपबंधित दण्ड से दण्डनीय है।

114. अपराध किए जाते समय दुष्प्रेरक की उपस्थिति -

जब कभी कोई व्यक्ति, जो अनुपस्थित होने पर दुष्प्रेरक के नाते दण्डनीय होता, उस समय उपस्थित हो जब वह कार्य या अपराध किया जाए, जिसके लिए वह दुष्प्रेरण के परिणामस्वरूप दण्डनीय होता, तब यह समझा जाएगा कि उसने ऐसा कार्य या अपराध किया है।

115. मृत्यु या आजीवन कारावास से दण्डनीय अपराध का दुष्प्रेरण -

यदि अपराध नहीं किया जाता - जो कोई मृत्यु या आजीवन कारावास से दण्डनीय अपराध किए जाने का दुष्प्रेरण करेगा, यदि वह अपराध उस दुष्प्रेरण के परिणामस्वरूप न किया जाए, और ऐसे दुष्प्रेरण के दण्ड के लिए कोई अभिव्यक्त उपबंध इस संहिता में नहीं किया गया है, तो वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा;  

यदि अपहानि करने वाला कार्य परिणामस्वरूप किया जाता है - और यदि ऐसा कोई कार्य कर दिया जाए, जिसके लिए दुष्प्रेरक उस दुष्प्रेरण के परिणामस्वरूप दायित्व के अधीन हो और जिससे कि व्यक्ति को उपहति कारित हो, तो दुष्प्रेरक दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि चौदह वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डनीय होगा, और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा। 

दृष्टांत -

ख को य की हत्या करने के लिए कउकसाता है। वह अपराध नहीं किया जाता है। यदि य की हत्या ख कर देता. तो वह मृत्यु या आजीवन कारावास के दण्ड से दण्डनीय होता। इसलिए क कारावास से, जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डनीय है और जुर्माने से भी दण्डनीय है, और यदि दुष्प्रेरण के परिणामस्वरूप य को कोई उपहति हो जाती है, तो, वह कारावास से, जिसकी अवधि चौदह वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डनीय होगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।

116. कारावास से दण्डनीय अपराध का दुष्प्रेरण - यदि अपराध न किया जाए -

जो कोई कारावास से दण्डनीय अपराध का दुष्प्रेरण करेगा यदि, वह अपराध उस दुष्प्रेरण के परिणामस्वरूप न किया जाए और ऐसे दुष्प्रेरण के दण्ड के लिए कोई अभिव्यक्त उपबंध इस संहिता में नहीं किया गया है; तो वह उस अपराध के लिए उपबंधित किसी भांति के कारावास से ऐसी अवधि के लिए, जो उस अपराध के लिए उपबंधित दीर्घतम अवधि के एक-चौथाई भाग तक की हो सकेगी, या ऐसे जुर्माने से, जो उस अपराध के लिए उपबंधित है, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा। 

यदि दुष्प्रेरक या दुष्प्रेरित व्यक्ति ऐसा लोक-सेवक है, जिसका कर्तव्य अपराध निवारित करना हो - और यदि दुष्प्रेरक या दुष्प्रेरित व्यक्ति ऐसा लोक-सेवक हो, जिसका कर्तव्य ऐसे अपराध के किए जाने को निवारित करना हो, तो वह दुष्प्रेरक उस अपराध के लिए उपबंधित किसी भांति के कारावास से ऐसी अवधि के लिए जो उस अपराध के लिए उपबंधित दीर्घतम अवधि के आधे भाग तक की हो सकेगी, या ऐसे जुर्माने से, जो उस अपराध के लिए उपबंधित है, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।

दृष्टांत -

(क) ख को, जो एक लोक-सेवक है, ख के पदीय कृत्यों के प्रयोग में कअपने प्रति कुछ अनुग्रह दिखाने के लिए इनाम के रूप में रिश्वत की प्रस्थापना करता है। ख उस रिश्वत को प्रतिगृहीत करने से इंकार कर देता है। क इस धारा के अधीन दण्डनीय है।

(ख) मिथ्या साक्ष्य देने के लिए ख को क उकसाता है। यहां, यदि ख मिथ्या साक्ष्य न दे, तो भी क ने इस धारा में परिभाषित अपराध किया है, और वह तदनुसार दण्डनीय है।

(ग) क, एक पुलिस ऑफिसर, जिसका कर्तव्य लूट को निवारित करना है, लूट किए जाने का दुष्प्रेरण करता है। यहां, यद्यपि वह लूट नहीं की जाती, क उस अपराध के लिए उपबंधित कारावास की दीर्घतम अवधि के आधे से, और जुर्माने से भी, दण्डनीय है।

 (घ) क द्वारा, जो एक पुलिस ऑफिसर है, और जिसका कर्त्तव्य लूट को निवारित करना है, उस अपराध के किए जाने का दुष्प्रेरण ख करता है, यहां यद्यपि वह लूट न की जाए, ख लूट के अपराध के लिए उपबंधित कारावास की दीर्घतम अवधि के आधे से, और जुर्माने से भी, दण्डनीय है। 

117. लोक साधारण द्वारा या दस से अधिक व्यक्तियों द्वारा अपराध किए जाने का दुष्प्रेरण -

जो कोई लोक साधारण द्वारा या दस से अधिक व्यक्तियों की किसी भी संख्या या वर्ग द्वारा किसी अपराध के किए जाने का दुष्प्रेरण करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।

दृष्टांत -

क, एक लोक स्थान में एक प्लेकार्ड चिपकाता है, जिसमें एक पंथ को जिसमें दस से अधिक सदस्य हैं, एक विरोधी पंथ के सदस्यों पर, जबकि वे जुलूस निकालने में लगे हुए हों, आक्रमण करने के प्रयोजन से, किसी निश्चित समय और स्थान पर मिलने के लिए उकसाया गया है। क ने इस धारा में परिभाषित अपराध किया है।

118. मृत्यु या आजीवन कारावास से दण्डनीय अपराध करने की परिकल्पना को छिपाना -

जो कोई मृत्यु या आजीवन कारावास से दण्डनीय अपराध का किया जाना सुकर बनाने के आशय से या सम्भाव्यतः तद्द्वारा सुकर बनाएगा यह जानते हुए;

ऐसे अपराध के किए जाने की परिकल्पना के अस्तित्व को किसी कार्य या लोप द्वारा या गूढ़लेखन के प्रयोग या जानकारी छुपाने के किसी अन्य उपाय द्वारा स्वेच्छया छिपाएगा या ऐसी परिकल्पना के बारे में ऐसा व्यपदेशन करेगा जिसका मिथ्या होना वह जानता है,

यदि अपराध कर दिया जाए - यदि अपराध नहीं किया जाए - यदि ऐसा अपराध कर दिया जाए, तो वह दोनों  में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी, अथवा यदि अपराध न किया जाए, तो वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और दोनों दशाओं में से हर एक में जुर्माने से भी दण्डनीय होगा। 

दृष्टांत -

क यह जानते हुए कि ख स्थान पर डकैती पड़ने वाली है, मजिस्ट्रेट को यह मिथ्या इत्तिला देता है कि डकैती ग स्थान पर, जो विपरीत दिशा में है, पड़ने वाली है, और इस आशय से कि एतद्द्वारा उस अपराध का किया जाना सुकर बनाए मजिस्ट्रेट को भुलावा देता है। डकैती परिकल्पना के अनुसरण में ख स्थान पर पड़ती है। क इस धारा के अधीन दण्डनीय है।

119. किसी ऐसे अपराध के किए जाने की परिकल्पना का लोक-सेवक द्वारा छिपाया जाना, जिसका निवारण करना उसका कर्तव्य है -

जो कोई लोक-सेवक होते हुए उस अपराध का किया जाना, जिसका निवारण करना ऐसे लोक- सेवक के नाते उसका कर्तव्य है, सुकर बनाने के आशय से या संभाव्यतः तद्वारा सुकर बनाएगा यह जानते हुए,

ऐसे अपराध के किए जाने की परिकल्पना के अस्तित्व को किसी कार्य या लोप द्वारा या गूढ़लेखन के प्रयोग या जानकारी छुपाने के किसी अन्य उपाय द्वारा स्वेच्छया छिपाएगा या ऐसी परिकल्पना के बारे में ऐसा व्यपदेशन करेगा जिसका मिथ्या होना वह जानता है,

यदि अपराध कर दिया जाए - यदि ऐसा अपराध कर दिया जाए, तो वह उस अपराध के लिए उपबंधित किसी भाँति के कारावास से, जिसकी अवधि ऐसे कारावास की दीर्घतम अवधि से आधी तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो उस अपराध के लिए उपबंधित है, या दोनों से;

यदि अपराध मृत्यु आदि से दण्डनीय है - अथवा यदि वह अपराध मृत्यु या आजीवन कारावास से दण्डनीय हो, तो वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी।

यदि अपराध नहीं किया जाए - अथवा यदि वह अपराध नहीं किया जाए, तो वह उस अपराध के लिए उपबंधित किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि ऐसे कारावास की दीर्घतम अवधि की एक चौथाई तक की हो सकेगी या ऐसे जुर्माने से, जो उस अपराध के लिए उपबंधित है, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा

दृष्टांत -

क, एक पुलिस ऑफिसर, लूट किए जाने से संबंधित सब परिकल्पनाओं की, जो उसको ज्ञात हो जाए, इत्तिला देने के लिए वैध रूप से आबद्ध होते हुए और यह जानते हुए कि ख लूट करने की परिकल्पना बना रहा है, उस अपराध के किए जाने को सुकर बनाने के आशय से ऐसी इत्तिला देने का लोप करता है। यहां क ने ख की परिकल्पना के अस्तित्व को एक अवैध लोप द्वारा छिपाया है, और वह इस धारा के उपबंध के अनुसार दण्डनीय है।

120. कारावास से दण्डनीय अपराध करने की परिकल्पना को छिपाना -

जो कोई उस अपराध का किया जाना, जो कारावास से दण्डनीय है, सुकर बनाने के आशय से या संभाव्यतः तद्द्वारा सुकर बनाएगा, यह जानते हुए;

ऐसे अपराध के किए जाने की परिकल्पना के अस्तित्व को किसी कार्य या अवैध लोप द्वारा स्वेच्छया छिपाएगा या ऐसी परिकल्पना के बारे में ऐसा व्यपदेशन करेगा, जिसका मिथ्या होना वह जानता है,

 यदि अपराध कर दिया जाए - यदि अपराध नहीं किया जाए - यदि ऐसा अपराध कर दिया जाए, तो वह उस अपराध के लिए उपबंधित भांति के कारावास से, जिसकी अवधि ऐसे कारावास की दीर्घतम अवधि की एक चौथाई तक की हो सकेगी और यदि वह अपराध नहीं किया जाए, तो वह ऐसे कारावास से, जिसकी अवधि ऐसे कारावास की दीर्घतम अवधि के आठवें भाग तक की हो सकेगी, या ऐसे जुर्माने से, जो उस अपराध के लिए उपबंधित है, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।

अध्याय 5 क: आपराधिक षडयंत्र

120 , आपराधिक षड़यंत्र की परिभाषा -

जबकि दो या अधिक व्यक्ति -

(1) कोई अवैध कार्य, अथवा

(2) कोई ऐसा कार्य, जो अवैध नहीं है, अवैध साधनों द्वारा, करने या करवाने को सहमत होते हैं, तब ऐसी सहमति आपराधिक षड़यंत्र कहलाती है।

परन्तु किसी अपराध को करने की सहमति के सिवाय कोई सहमति आपराधिक षड़यंत्र तब तक न होगी, जब तक कि सहमति के अलावा कोई कार्य उसके अनुसरण में उस सहमति के एक या अधिक पक्षकारों द्वारा नहीं कर दिया जाता।

स्पष्टीकरण - यह तत्वहीन है कि अवैध कार्य ऐसी सहमति का चरम उद्देश्य है या उस उद्देश्य का आनुषंगिक मात्र है।

120 ख. आपराधिक षड़यंत्र का दण्ड -

(1) जो कोई मृत्यु, आजीवन कारावास या दो वर्ष या उससे अधिक अवधि के कठिन कारावास से दण्डनीय अपराध करने के आपराधिक षड़यंत्र में शरीक होगा, यदि ऐसे षड़यंत्र के दण्ड के लिए इस संहिता में कोई अभिव्यक्त उपबंध नहीं है, तो वह उसी प्रकार दण्डित किया जाएगा, मानो उसने ऐसे अपराध का दुष्प्रेरण किया था।

(2) जो कोई पूर्वोक्त रूप से दण्डनीय अपराध को करने के आपराधिक षड़यंत्र से भिन्न किसी आपराधिक षड़यंत्र में शरीक होगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि छह मास से अधिक की नहीं होगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।

अध्याय 6: राज्य के विरुद्ध अपराधो के विषय में 

121. भारत सरकार के विरुद्ध युद्ध करना या युद्ध करने का प्रयत्न करना या युद्ध करने का दुष्प्रेरण करना -

जो कोई भारत सरकार के विरुद्ध युद्ध करेगा, या ऐसा युद्ध करने का प्रयत्न करेगा या ऐसा युद्ध करने का दुष्प्रेरण करेगा, वह मृत्यु या आजीवन कारावास से दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।

दृष्टांत -

क भारत सरकार के विरुद्ध विप्लव में सम्मिलित होता है। क ने इस धारा में परिभाषित अपराध किया है।

121 क, धारा 121 द्वारा दण्डनीय अपराधों को करने का षड़यंत्र -

जो कोई धारा 121 द्वारा दण्डनीय अपराधों में से कोई अपराध करने के लिए भारत के भीतर या बाहर षड़यंत्र करेगा, या केन्द्रीय सरकार को या किसी राज्यों की सरकार को आपराधिक बल द्वारा या आपराधिक बल के प्रदर्शन द्वारा आतंकित करने का षड़यंत्र करेगा, वह आजीवन कारावास से, या दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय  होगा |

स्पष्टीकरण - इस धारा के अधीन षड़यंत्र गठित होने के लिए यह आवश्यक नहीं है कि उसके अनुसरण में कोई कार्य या अवैध लोप घटित हुआ हो।

122. भारत सरकार के विरुद्ध युद्ध करने के आशय से आयुध आदि संग्रह करना -

जो कोई भारत सरकार के विरुद्ध या तो युद्ध करने, या युद्ध करने की तैयारी करने के आशय से पुरुष, आयुध या गोलाबारूद संग्रह करेगा, या अन्यथा युद्ध करने की तैयारी करेगा, वह आजीवन कारावास से, या दोनों में से भांति के कारावास से जिसकी अवधि दस वर्ष से अधिक की नहीं होगी, दण्डित किया जाएगा और जुमाने से भी दण्डनीय होगा।

123. युद्ध करने की परिकल्पना को सुकर बनाने के आशय से छिपाना -

जो कोई भारत सरकार के विरुद्ध युद्ध करने की परिकल्पना के अस्तित्वों को किसी कार्य द्वारा, या किसी अवैध लोप द्वारा, इस आशय से कि इस प्रकार छिपाने के द्वारा ऐसे युद्ध करने को सुकर बनाए, या यह संभाव्य जानते हुए कि इस प्रकार छिपाने के द्वारा ऐसे युद्ध करने को सुकर बनाएगा, छिपाएगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी, दण्डनीय होगा।

124. किसी विधिपूर्ण शक्ति का प्रयोग करने के लिए विवश करने या उसका प्रयोग अवरोधित करने के आशय से राष्ट्रपति, राज्यपाल आदि पर हमला करना -

जो कोई भारत के राष्ट्रपति या किसी राज्य के राज्यपाल को ऐसे राष्ट्रपति या राज्यपाल की विधिपूर्ण शक्तियों में से किसी शक्ति का किसी प्रकार प्रयोग करने के लिए या प्रयोग करने से विरत रहने के लिए उत्प्रेरित करने या विवश करने के आशय से,

ऐसे राष्ट्रपति या राज्यपाल पर हमला करेगा या उसका सदोष अवरोध करेगा, या सदोष अवरोध करने का प्रयत्न करेगा या उसे आपराधिक बल द्वारा या आपराधिक बल के प्रदर्शन द्वारा आतंकित करेगा या ऐसे आतंकित करने का प्रयत्न करेगा,

वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी, दण्डनीय होगा।

124 क. राजद्रोह -

जो कोई बोले गए या लिखे गए शब्दों द्वारा या संकेतों द्वारा, या दृश्यरूपण द्वारा या अन्यथा भारत में विधि द्वारा स्थापित सरकार के प्रति घृणा या अवमान पैदा करेगा, या पैदा करने का प्रयत्न करेगा, अप्रीति प्रदीप्त करेगा या प्रदीप्त करने का प्रयत्न करेगा, वह आजीवन कारावास से, जिसमें जुर्माना जोड़ा जा सकेगा या तीन वर्ष तक के कारावास से जिसमें जुर्माना जोड़ा जा सकेगा, या जुर्माने से दण्डित किया जाएगा।

 स्पष्टीकरण 1 - “अप्रीति" पद के अन्तर्गत अभक्ति और शत्रुता की समस्त भावनाएं आती हैं।  

स्पष्टीकरण 2 - घृणा, अवमान या अप्रीति को प्रदीप्त किए बिना या प्रदीप्त करने का प्रयत्न किए बिना, सरकार के कामों के प्रति विधिपूर्ण साधनों द्वारा उनको परिवर्तित कराने की दृष्टि से अनुमोदन प्रकट करने वाली टीका टिप्पणियां इस धारा के अधीन अपराध नहीं हैं।

स्पष्टीकरण 3 - घृणा, अवमान या अप्रीति को प्रदीप्त किए बिना या प्रदीप्त करने का प्रयत्न किए बिना सरकार की प्रशासनिक या अन्य क्रिया के प्रति अनुमोदन प्रकट करने वाली टीका टिप्पणियाँ इस धारा के अधीन अपराध गठित नहीं करती।

125. भारत सरकार से मैत्री संबंध रखने वाली किसी एशियाई शक्ति के विरुद्ध युद्ध करना -

जो कोई भारत सरकार से मैत्री का या शांति का संबंध रखने वाली किसी एशियाई शक्ति की सरकार के विरुद्ध युद्ध करेगा, या ऐसा युद्ध करने का प्रयत्न करेगा, या ऐसा युद्ध करने के लिए दुष्प्रेरण करेगा, वह आजीवन कारावास से, जिसमें जुर्माना जोड़ा जा सकेगा, या दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी, जिसमें जुर्माना जोड़ा जा सकेगा, या जुर्माने से दण्डित किया जाएगा।

126. भारत सरकार के साथ शांति का संबंध रखने वाली शक्ति के राज्यक्षेत्र में लूटपाट करना -

जो कोई भारत सरकार से मैत्री का या शांति का संबंध रखने वाली किसी शक्ति के राज्यक्षेत्र में लूटपाट करेगा, या लूटपाट करने की तैयारी करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और वह जुर्माने से और ऐसी लूटपाट करने के लिए उपयोग में लाई गई या उपयोग में लाई जाने के लिए आशयित, या ऐसी लूटपाट द्वारा अर्जित संपत्ति के समपहरण से भी दण्डनीय होगा।

127. धारा 125 और 126 में वर्णित युद्ध या लूटपाट द्वारा ली गई संपत्ति प्राप्त करना -

जो कोई किसी संपत्ति को यह जानते हुए प्राप्त करेगा कि वह धारा 125 और 126 में वर्णित अपराधों में से किसी के किए जाने में ली गई है, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से और इस प्रकार प्राप्त की गई संपत्ति के समपहरण से भी दण्डनीय होगा।

128. लोक-सेवक का स्वेच्छया राजकैदी या युद्धकैदी को निकल भागने देना -

जो कोई लोक-सेवक होते हुए और किसी राजकैदी या युद्धकैदी को अभिरक्षा में रखते हुए, स्वेच्छया ऐसे कैदी को किसी ऐसे स्थान से जिसमें ऐसा कैदी परिरुद्ध है, निकल भागने देगा, वह आजीवन कारावास से या दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी, दण्डनीय होगा।

129. उपेक्षा से लोक-सेवक का ऐसे कैदी का निकल भागना सहन करना -

जो कोई लोकसेवक होते हुए और किसी राजकैदी या युद्धकैदी की अभिरक्षा में रखते हुए उपेक्षा में ऐसे कैदी को किसी ऐसे परिरोध स्थान  से जिस में ऐसा कैदी परिरुद्ध है, निकल भागना सहन करेगा, वह सादा कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा, और जुर्माने से भी, दण्डनीय होगा।

130. ऐसे कैदी के निकल भागने में सहायता देना, उसे छुड़ाना या संश्रय देना -

जो कोई जानते हुए किसी राजकैदी या युद्धकैदी को विधिपूर्ण अभिरक्षा से निकल भागने में मदद या सहायता देगा, या किसी ऐसे कैदी को छुड़ाएगा या छुड़ाने का प्रयत्न करेगा, या किसी ऐसे कैदी को, जो विधिपूर्ण अभिरक्षा से निकल भागा है, संश्रय देगा या छिपाएगा या ऐसे कैदी के फिर से पकड़े जाने का प्रतिरोध करेगा या करने का प्रयत्न करेगा, वह आजीवन कारावास से, या दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।  

स्पष्टीकरण - कोई राजकैदी या युद्धकैदी, जिसे अपने पैरोल पर भारत में कतिपय सीमाओं के भीतर यथेच्छ विचरण की अनुज्ञा है, विधिपूर्ण अभिरक्षा से निकल भागा है, यह तब कहा जाता है, जब वह उन सीमाओं से परे चला जाता है, जिनके भीतर उसे यथेच्छ विचरण की अनुज्ञा है।

अध्याय 7:

सेना नोसेना और वायुसेना से सम्बंधित अपराधो के विषय में

131. विद्रोह का दुष्प्रेरण या किसी सैनिक, नौसेनिक या वायुसैनिक को कर्तव्य से विचलित करने का प्रयत्न करना -

जो कोई भारत सरकार की सेना, नौसेना या वायुसेना के किसी ऑफिसर, सैनिक, नौसैनिक या वायुसैनिक द्वारा विद्रोह किए जाने का दुष्प्रेरण करेगा, या किसी ऐसे ऑफिसर, सैनिक, नौसैनिक या वायुसैनिकों को उसकी राजनिष्ठा या उसके कर्त्तव्य से विचलित करने का प्रयत्न करेगा, वह आजीवन कारावास से, या दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।

स्पष्टीकरण - इस धारा में “ऑफिसर”, “सैनिक”, नौसैनिक और “वायुसैनिक” शब्दों के अन्तर्गत कोई भी व्यक्ति आता है, जो यथास्थिति, आर्मी एक्ट, सेना अधिनियम, 1950 (1950 का 46), नेवल डिसिप्लिन एक्ट, इंडियन नेवी (डिसिप्लिन) एक्ट, 1934 (1934 का 34) एयरफोर्स एक्ट या वायुसेना अधिनियम, 1950 (1950 का 45) के अध्यधीन हो ।

132. विद्रोह का दुष्प्रेरण, यदि उसके परिणामस्वरूप विद्रोह किया जाए -

जो कोई भारत सरकार की सेना, नौसैना या वायुसेना के किसी ऑफिसर, सैनिक, नौसैनिक या वायुसैनिक द्वारा विद्रोह किए जाने का दुष्प्रेरण करेगा, यदि उस दुष्प्रेरण के परिणामस्वरूप विद्रोह हो.जाए, तो वह मृत्यु से, या आजीवन कारावास से, या दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।

133. सैनिक, नौसैनिक या वायुसैनिक द्वारा अपने वरिष्ठ ऑफिसर पर जबकि वह ऑफिसर अपने पद निष्पादन में हो, हमले का दुष्प्रेरण -

जो कोई भारत सरकार की सेना, नौसेना या वायुसेना के किसी ऑफिसर, सैनिक, नौसैनिक या वायुसैनिकों द्वारा किसी वरिष्ठ ऑफिसर पर, जबकि वह ऑफिसर अपने पद निष्पादन में हो, हमले का दुष्प्रेरण करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा, और जुर्माने से भी, दण्डनीय होगा।

134. ऐसे हमले का दुष्प्रेरण, यदि हमला किया जाए -

जो कोई भारत सरकार की सेना, नौसेना या वायुसेना के ऑफिसर, सैनिक, नौसैनिक, या वायुसैनिकों द्वारा किसी वरिष्ठ ऑफिसर पर, जबकि वह ऑफिसर अपने पद निष्पादन में हो, हमले का दुष्प्रेरण करेगा, यदि ऐसा हमला उस दुष्प्रेरण के परिणास्वरूप किया जाए, तो वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी, दण्डनीय होगा।

135. सैनिक, नौसैनिक या वायुसैनिक द्वारा अभित्यजन का दुष्प्रेरण -

जो कोई भारत सरकार की सेना, नौसेना या वायुसेना के किसी ऑफिसर, सैनिक, नौसैनिक या वायुसैनिक द्वारा अभित्यजन किए जाने का दुष्प्रेरण करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।

136. अभित्याजक को संश्रय देना -

जो कोई सिवाय एतस्मिन् पश्चात् यथा अपवादित के यह जानते हुए या यह विश्वास करने का कारण रखते हुए कि भारत सरकार की सेना, नौसेना या वायुसेना के किसी ऑफिसर, सैनिक, नौसेनिक या वायुसैनिकों ने अभित्यजन किया है, ऐसे ऑफिसर, सैनिक, नौसैनिक या वायुसैनिकों को संश्रय देगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से दण्डित किया जाएगा।

अपवाद - इस उपबंध का विस्तार उस मामले पर नहीं है, जिसमें पत्नी द्वारा अपने पति को संश्रय दिया जाता है।

137. मास्टर की उपेक्षा से किसी वाणिज्यिक जलयान पर छिपा हुआ अभित्याजक -

किसी ऐसे वाणिज्यिक जलयान का, जिस पर भारत सरकार की सेना, नौसेना या वायुसेना का कोई अभित्याजक छिपा हुआ हो, मास्टर या भारसाधक व्यक्ति, यद्यपि वह ऐसे छिपने के संबंध में अनभिज्ञ हो, ऐसी शास्ति से दण्डनीय होगा जो पांच सौ रुपए से अधिक नहीं होगी, यदि उसे ऐसे छिपने का ज्ञान हो सकता था, किन्तु केवल इस कारण नहीं हुआ कि ऐसे मास्टर या भारसाधक व्यक्ति के नाते उसके कर्त्तव्य में कुछ उपेक्षा हुई या उस जलयान पर अनुशासन का कुछ अभाव था।

138. सैनिक, नौसैनिक या वायुसैनिक द्वारा अनधीनता के कार्य का दुष्प्रेरण -

जो कोई ऐसी बात का दुष्प्रेरण करेगा जिसे कि वह भारत सरकार की सेना, नौसेना या वायुसेना के किसी ऑफिसर, सैनिकनौसैनिक या वायुसैनिकों द्वारा अनधीनता का कार्य जानता हो, यदि अनधीनता का ऐसा कार्य उस दुष्प्रेरण के परिणामस्वरूप किया जाए, तो वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि छह मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।

138 क. पूर्वोक्त धाराओं का भारतीय सामुद्रिक सेवा को लागू होना -

[1887 के अधिनियम सं. 14 की धारा 79 द्वारा अन्त: स्थापित तथा संशोधन अधिनियम, 1934 (1934 का 35) की धारा 2 तथा अनुसूची द्वारा निरसित]

139. कुछ अधिनियमों के अध्यधीन व्यक्ति -

कोई व्यक्ति जो आर्मी एक्ट, सेना अधिनियम, 1950 (1950 का 46), नेवल डिसिप्लिन एक्ट, इंडियन नेवी (डिसिप्लिन) एक्ट, 1934 (1934 का 34), एयर फोर्स एक्ट या वायुसेना अधिनियम, 1950 (1950 का 45) के अध्यधीन है, इस अध्याय में परिभाषित अपराधों में से किसी के लिए इस संहिता के अधीन दण्डनीय नहीं है।

140. सैनिक, नौसैनिक या वायुसैनिक द्वारा उपयोग में लाई जाने वाली पोशाक पहनना या टोकन धारण करना -

जो कोई भारत सरकार की सैन्य, नाविक या वायुसेना का सैनिक, नौसैनिक या वायुसैनिक न होते हुए, इस आशय से कि यह विश्वास किया जाए कि वह ऐसा सैनिक, नौसैनिक या वायुसैनिक है, ऐसी कोई पोषाक पहनेगा या ऐसा टोकन धारण करेगा जो ऐसे सैनिक, नौसैनिक या वायुसैनिकों द्वारा उपयोग में लाई जाने वाली पोषाक या टोकन के सदृश हो, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि तीन मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो पांच सौ रुपए तक का हो सकेगा, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।

अध्याय 8: लोक प्रशांति के विरुद्ध अपराधो के विषय में

141. विधिविरुद्ध जमाव -

पांच या अधिक व्यक्तियों का जमाव “विधिविरुद्ध जमाव” कहा जाता है, यदि उन व्यक्तियों का, जिनसे वह जमाव गठित हुआ है, सामान्य उद्देश्य हो -

पहला - केन्द्रीय सरकार को, या किसी राज्य सरकार को, या संसद को या किसी राज्य के विधान मण्डल, को या किसी लोक-सेवक को, जबकि वह ऐसे लोक-सेवक की विधिपूर्ण शक्ति का प्रयोग कर रहा हो, आपराधिक बल द्वारा या आपराधिक बल के प्रदर्शन द्वारा, आतंकित करना, अथवा

दूसरा - किसी विधि के, या किसी वैध आदेशिका के, निष्पादन का प्रतिरोध करना, अथवा

तीसरा - किसी रिष्टि या आपराधिक अतिचार या अन्य अपराध का करना, अथवा 

चौथा - किसी व्यक्ति पर आपराधिक बल द्वारा या आपराधिक बल के प्रदर्शन द्वारा, किसी संपत्ति का कब्जा लेना या अभिप्राप्त करना या किसी व्यक्ति को किसी मार्ग के अधिकार के उपभोग से, या जल का उपभोग करने के अधिकार या अन्य अमूर्त अधिकार से जिसका वह कब्जा रखता हो, या उपभोग करता हो, वंचित करना या किसी अधिकार या अनुमित अधिकार को प्रवर्तित कराना, अथवा

पाँचवा - आपराधिक बल द्वारा या आपराधिक बल के प्रदर्शन द्वारा, किसी व्यक्ति को वह करने के लिए, जिसे करने के लिए वह वैध रूप से आबद्ध न हो या उसका लोप करने के लिए, जिसे करने का वह वैध रूप से हकदार हो, विवश करना।

स्पष्टीकरण - कोई जमाव, जो इकट्ठा होते समय विधिविरुद्ध नहीं था, बाद को विधिविरुद्ध जमाव हो सकेगा।

142. विधिविरुद्ध जमाव का सदस्य होना -

जो कोई उन तथ्यों से परिचित होते हुए, जो किसी जमाव को विधिविरुद्ध जमाव बनाते हैं, उस जमाव में साशय सम्मिलित होता है या उसमें बना रहता है, वह विधिविरुद्ध जमाव का सदस्य है, यह कहा जाता है।

143. दण्ड -

जो कोई विधिविरुद्ध जमाव का सदस्य होगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि छह मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।

144. घातक आयुधों से सज्जित होकर विधिविरुद्ध जमाव में सम्मिलित होना -

जो कोई किसी घातक आयुध से, या किसी ऐसी चीज से, जिससे आक्रमण आयुध के रूप में उपयोग किए जाने पर मृत्यु कारित होनी संभाव्य है, सज्जित होते हुए किसी विधिविरुद्ध जमाव का सदस्य होगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।

145. किसी विधिविरुद्ध जमाव में यह जानते हुए कि उसके बिखर जाने का समादेश दे दिया गया है, सम्मिलित होना या उसमें बने रहना -

जो कोई किसी विधिविरुद्ध जमाव में यह जानते हुए कि ऐसे विधिविरुद्ध जमाव को बिखर जाने का समादेश विधि द्वारा विहित प्रकार से दिया गया है, सम्मिलित होगा, या बना रहेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।

146. बल्वा करना -

जब कभी विधिविरुद्ध जमाव द्वारा या उसके किसी सदस्य द्वारा ऐसे जमाव के सामान्य उद्देश्य को अग्रसर करने में बल या हिंसा का प्रयोग किया जाता है तब ऐसे जमाव का हर सदस्य बल्वा करने के अपराध का दोषी होगा।

147. बल्वा करने के लिए दण्ड -

जो कोई बल्वा करने का दोषी होगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।

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राज्य संशोधन

मध्यप्रदेश एवं छत्तीसगढ़ - न्यायालय की अनुमति से, उस व्यक्ति द्वारा शमनीय जिसके विरुद्ध अपराध कारित करते समय बल या हिंसा प्रयुक्त की गई है, परन्तु यह कि अभियुक्त किसी अन्य अशमनीय अपराध का आरोपी नहीं है।

[देखें म.प्र. अधिनियम सं. 17 सन्‌ 1999 की धारा 3 (21-5-1999 से प्रभावशील) ।]

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148. घातक आयुध से सज्जित होकर बल्वा करना -

जो कोई घातक आयुध से, या किसी ऐसी चीज से जिससे आक्रामक आयुध के रूप में उपयोग किए जाने पर मृत्यु कारित होनी संभाव्य हो, सज्जित होते हुए बल्वा करने का दोषी होगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।

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राज्य संशोधन


मध्यप्रदेश एवं छत्तीसगढ़ - न्यायालय की अनुमति से, उस व्यक्ति द्वारा शमनीय जिसके विरुद्ध अपराध कारित करते समय बल या हिंसा प्रयुक्त की गई है, परन्तु यह कि अभियुक्त किसी अन्य अशमनीय अपराध का आरोपी नहीं है।
[देखें म.प्र. अधिनियम सं. 17 सन्‌ 1999 की धारा 3३ (21-5-1999 से प्रभावशील) |]

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149. विधिविरुद्ध जमाव का हर सदस्य, सामान्य उद्देश्य को अग्रसर करने में किए गए अपराध का दोषी -

यदि विधिविरुद्ध जमाव के किसी सदस्य द्वारा उस जमाव के सामान्य उद्देश्य को अग्रसर करने में अपराध किया जाता है, या कोई ऐसा अपराध किया जाता है, जिसका किया जाना उस जमाव के सदस्य उस उद्देश्य को अग्रसर करने में संभाव्य जानते थे, तो हर व्यक्ति, जो उस अपराध के किए जाने के समय उस जमाव का सदस्य है, उस अपराध का दोषी होगा।

150. विधिविरुद्ध जमाव में सम्मिलित करने के लिए व्यक्तियों का भाड़े पर लेना या भाड़े पर लेने के प्रति मौनानुकूलता -

जो कोई किसी व्यक्ति को किसी विधिविरुद्ध जमाव में सम्मिलित होने या उसका सदस्य बनने के लिए भाड़े पर लेगा या वचनबद्ध या नियोजित करेगा या भाड़े पर लिए जाने का वचनबद्ध या नियोजित करने का संप्रवर्तन करेगा या उसके प्रति मौनानुकूल बना रहेगा, वह ऐसे विधिविरुद्ध जमाव के सदस्य के रूप में, और किसी ऐसे व्यक्ति द्वारा ऐसे विधिविरुद्ध जमाव के सदस्य के नाते ऐसे भाड़े पर लेने, वचनबद्ध या नियोजन के अनुसरण में किए गए किसी भी अपराध के लिए उसी प्रकार दण्डनीय होगा, मानो वह ऐसे विधिविरुद्ध जमाव का सदस्य रहा था या ऐसा अपराध उसने स्वयं किया था। GO toTOP

151. पांच या अधिक व्यक्तियों के जमाव को बिखर जाने का समादेश दिए जाने के पश्चात् उसमें जानते हुए सम्मिलित होना या बने रहना -

जो कोई पांच या अधिक व्यक्तियों के किसी जमाव में, जिससे लोक शांति में विघ्न कारित होना संभाव्य हो, ऐसे जमाव को बिखर जाने का समादेश विधिपूर्वक दे दिए जाने पर, जानते  हुए सम्मिलित होगा या बना रहेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि छह मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।  

स्पष्टीकरण - यदि वह जमाव धारा 141 के अर्थ के अन्तर्गत विधिविरुद्ध जमाव हो, तो अपराधी धारा 145 के अधीन दण्डनीय होगा।

152. लोक-सेवक जब बल्वा इत्यादि को दबा रहा हो, तब उस पर हमला करना या उसे बाधित करना -

जो कोई ऐसे किसी लोक-सेवक पर, जो विधिविरुद्ध जमाव के बिखरने का, या बल्वे या दंगे को दबाने का प्रयास ऐसे लोक-सेवक के नाते अपने कर्तव्य के निर्वहन में कर रहा हो, हमला करेगा या उसको हमले की धमकी देगा या उसके काम में बाधा डालेगा या बाधा डालने का प्रयत्न करेगा या ऐसे लोक-सेवक पर आपराधिक बल का प्रयोग करेगा या करने की धमकी देगा, या करने का प्रयत्न करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।

153. बल्वा कराने के आशय से स्वैरिता से प्रकोपन देना -

यदि बल्वा किया जाए - यदि बल्वा न किया जाए - जो कोई अवैध बात के करने द्वारा किसी व्यक्ति को परिद्वेष से या स्वैरिता से प्रकोपित इस आशय से या यह संभाव्य जानते हुए करेगा कि ऐसे प्रकोपन के पणिामस्वरूप बल्वे का अपराध किया जाएगा;

यदि ऐसे प्रकोपन, के परिणामस्वरूप बल्वे का अपराध किया जाए तो वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि एक वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से या दोनों से, और यदि बल्वे का अपराध न किया जाए, तो वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि छह मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।

153 क. धर्म, मूलवंश, जन्मस्थान, निवास स्थान, भाषा इत्यादि के आधारों पर विभिन्न समूहों के बीच शत्रुता का संप्रवर्तन और सौहार्द बने रहने पर प्रतिकूल प्रभाव डालने वाले कार्य करना -

(1) जो कोई -

(क) बोले गए या लिखे गए शब्दों द्वारा या संकेतों द्वारा या दृश्यरूपणों द्वारा या अन्यथा विभिन्न धार्मिक, मूलवंशीय या भाषाई या प्रादेशिक समूहों, जातियों या समुदायों के बीच असौहार्द अथवा शत्रुता, घृणा या वैमनस्य की भावनाएं, धर्म, मूलवंश, जन्मस्थान, निवास स्थान, भाषा, जाति या समुदाय के आधारों पर या अन्य किसी भी आधार पर संप्रवर्तित करेगा या संप्रवर्तित करने का प्रयत्न करेगा, अथवा

(ख) कोई ऐसा कार्य करेगा, जो विभिन्न धार्मिक, मूलवंशीय, भाषाई या प्रादेशिक समूहों या जातियों या समुदायों के बीच सौहार्द बने रहने पर प्रतिकूल प्रभाव डालने वाला है और जो लोक-प्रशांति में विघ्न डालता है, या जिससे उसमें विघ्न पड़ना संभाव्य हो, अथवा

(ग) कोई ऐसा अभ्यास, आंदोलन, कवायद या अन्य वैसा ही क्रियाकलाप इस आशय से संचालित करेगा कि ऐसे क्रियाकलाप में भाग लेने वाले व्यक्ति किसी धार्मिक, मूलवंशीय, भाषाई या प्रादेशिक समूह या जाति या समुदाय के विरुद्ध आपराधिक बल या हिंसा का प्रयोग करे या प्रयोग करने के लिए प्रशिक्षित किए जाएंगे या यह संभाव्य जानते हुए संचालित करेगा कि ऐसे क्रियाकलाप में भाग लने वाले व्यक्ति किसी धार्मिक, मूलवंशीय, भाषाई या प्रादेशिक समूह या जाति या समुदाय के विरुद्ध आपराधिक बल या हिंसा का प्रयोग करेंगे या प्रयोग करने के लिए प्रशिक्षित किए जाएंगे अथवा ऐसे क्रिया-कलाप में इस आशय से भाग लेगा कि किसी धार्मिक, मूलवंशीय, भाषाई या प्रादेशिक समूह या जाति या समुदाय के विरुद्ध आपराधिक बल या हिंसा का प्रयोग करेंगे या प्रयोग करने के लिए प्रशिक्षित किया जाए, यह संभाव्य जानते हुए भाग लेगा कि ऐसे क्रियाकलाप में भाग लेने वाले व्यक्ति किसी धार्मिक, मूलवंशीय, भाषाई या प्रादेशिक समूह या जाति या समुदाय के विरुद्ध आपराधिक बल या हिंसा का प्रयोग करेंगे या प्रयोग करने के लिए प्रशिक्षित किए जाएंगे और ऐसे क्रिया-कलाप से ऐसी धार्मिक, मूलवंशीय, भाषाई या प्रादेशिक समूह या जाति या समुदाय के सदस्यों के बीच, चाहे किसी भी कारण से भय या संत्रास या असुरक्षा की भावना उत्पन्न होती है या उत्पन्न होनी संभाव्य है,

वह कारावास से जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से,दण्डित किया जाएगा।

(2) पूजा के स्थान आदि में किया गया अपराध - जो कोई उपधारा (1) में विनिर्दिष्ट अपराध किसी पूजा के स्थान में या किसी जमाव में, जो धार्मिक पूजा या धार्मिक कर्म करने में लगा हुआ हो, करेगा, वह कारावास से जो पांच वर्ष तक का हो सकेगा, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी, दण्डनीय होगा।

153 - क क. किसी जुलूस में जानबूझकर आयुध ले जाने या किसी सामूहिक ड्रिल या सामूहिक प्रशिक्षण का आयुध सहित संचालन या आयोजन करना या उसमें भाग लेने के लिये दण्ड -

जो कोई किसी सार्वजनिक स्थान में, दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 (1974 का 2) की धारा 144-क के अधीन जारी की गई किसी लोक सूचना या किए गए किसी आदेश के उल्लंघन में किसी जुलूस में जानबूझकर आयुध ले जाता है या सामूहिक ड्रिल या सामूहिक प्रशिक्षण या आयुध सहित जानबूझकर संचालन, आयोजन करता है और उसमें भाग लेता है तो वह कारावास से, जिसकी अवधि छह मास तक की हो सकेगी और जुमनि से, जो दो हजार रुपए तक का हो सकेगा दण्डित किया जाएगा।

स्पष्टीकरण - “आयुध” से अपराध या बचाव के लिए हथियार के रूप में डिजाइन की गई या अपनाई गई किसी भी प्रकार की कोई वस्तु अभिप्रेत है और इसके अन्तर्गत अग्नि शस्त्र, नुकीली धार वाला हथियार, लाठी, डण्डा और छड़ी भी है ।

153 ख. राष्ट्रीय अखण्डता पर प्रतिकूल प्रभाव डालने वाले लांछन, प्राख्यान -

(1) जो कोई बोले गए या लिखे गए शब्दों द्वारा या संकेतों द्वारा या दृश्यरूपणों द्वारा या अन्यथा -

(क) ऐसा कोई लांछन लगाएगा या प्रकाशित करेगा कि किसी वर्ग के व्यक्ति इस कारण से कि वे किसी धार्मिक, मूलवंशीय, भाषाई या प्रादेशिक समूह या जाति या समुदाय के सदस्य हैं, विधि द्वारा स्थापित भारत के संविधान के प्रति सच्ची श्रद्धा और निष्ठा नहीं रख सकते या भारत की प्रभुता और अखंडता की मर्यादा नहीं बनाए रख सकते, अथवा

(ख) यह प्राख्यान करेगा, परामर्श देगा, सलाह देगा, प्रचार करेगा या प्रकाशित करेगा कि किसी वर्ग के व्यक्तियों को इस कारण से कि वे किसी धार्मिक, मूलवंशीय, भाषाई या प्रादेशिक समूह या जाति या समुदाय के सदस्य हैं, भारत के नागरिक के रूप में उनके अधिकार न दिए जाएं या उन्हें उनसे वंचित किया जाए, अथवा

(ग) किसी वर्ग के व्यक्तियों की बाध्यता के संबंध में इस कारण कि वे किसी धार्मिक, मूलवंशीय, भाषाई या प्रादेशिक समूह या जाति या समुदाय के सदस्य हैं, कोई प्राख्यान करेगा, परामर्श देगा, अभिवाक् करेगा या अपील करेगा अथवा प्रकाशित करेगा और ऐसे प्राख्यान, परामर्श, अभिवाक् या अपील से ऐसे सदस्यों तथा अन्य व्यक्तियों के बीच असामंजस्य, अथवा शत्रुता या घृणा या वैमनस्य की भावनाएं उत्पन्न होती हैं या उत्पन्न होनी संभाव्य हैं, 

वह कारावास से, जो तीन वर्ष तक का हो सकेगा, या जुर्माने से, अथवा दोनों से, दण्डित किया जाएगा।

(2) जो कोई उपधारा (1) में विनिर्दिष्ट कोई अपराध किसी उपासना स्थल में या धार्मिक उपासना अथवा धार्मिक कर्म करने में लगे हुए किसी जमाव में करेगा वह कारावास से, जो पांच वर्ष तक का हो सकेगा, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।

154. उस भूमि का स्वामी या अधिभोगी, जिस पर विधिविरुद्ध जमाव किया गया है -

जब कभी कोई विधिविरुद्ध जमाव या बल्वा हो, तब जिस भूमि पर ऐसा विधिविरुद्ध जमाव हो या ऐसा बल्वा किया जाए, उसका स्वामी या अधिभोगी और ऐसी भूमि में हित रखने वाला या हित रखने का दावा करने वाला व्यक्ति एक हजार रुपए से अनधिक जुर्माने से दण्डनीय होगा, यदि वह या उसका अभिकर्ता या प्रबंधक यह जानते हुए कि ऐसा अपराध किया जा रहा है या किया जा चुका है या इस बात का विश्वास करने का कारण रखते हुए कि ऐसे अपराध का किया जाना संभाव्य है उस बात को अपनी शक्ति-भर शीघ्रतम सूचना निकटतम पुलिस थाने के प्रधान ऑफिसर को न दे या न दें और उस दशा में, जिसमें कि उसे या उन्हें यह विश्वास करने का कारण हो कि यह लगभग किया ही जाने वाला है, अपनी शक्ति-भर सब विधिपूर्ण साधनों का उपयोग उसका निवारण करने के लिए नहीं करता या करते और उसके हो जाने पर अपनी शक्ति भर सब विधिपूर्ण साधनों का उस विधिविरुद्ध जमाव को बिखरने या बल्वे को दबाने के लिए उपयोग नहीं करता या करते।

155. उस व्यक्ति का दायित्व, जिसके फायदे के लिए बल्वा किया जाता है -

जब कभी किसी ऐसे व्यक्ति के फायदे के लिए या उसकी ओर से बल्वा किया जाए, जो किसी भूमि का, जिसके विषय में ऐसा बल्वा हो, स्वामी या अधिभोगी हो या जो ऐसी भूमि में या बल्वे को पैदा करने वाले किसी विवादग्रस्त विषय में कोई हित रखने का दावा करता हो या जो उससे कोई फायदा प्रतिगृहीत कर या पा चुका हो, तब ऐसा व्यक्ति, जुर्माने से दण्डनीय होगा, यदि वह या उसका अभिकर्ता या प्रबंधक इस बात का विश्वास करने का कारण रखते हुए कि ऐसा बल्वा किया जाना संभाव्य था, या कि जिस विधिविरुद्ध जमाव द्वारा ऐसा बल्वा किया गया था, वह जमाव किया जाना संभाव्य था, अपनी शक्तिभर सब विधिपूर्ण साधनों का ऐसे जमाव या बल्वे का किया जाना निवारित करने के लिए और उसे दबाने और बिखरने के लिए उपयोग नहीं करता या करते।

156. उस स्वामी या अधिभोगी के अभिकर्ता का दायित्व, जिसके फायदे के लिए बल्वा किया जाता है -

जब कभी ऐसे व्यक्ति के फायदे के लिए या ऐसे व्यक्ति की ओर से बल्वा किया जाए, जो किसी भूमि का, जिसके विषय में ऐसा बल्वा हो, स्वामी हो या अधिभोगी हो या जो ऐसी भूमि में या बल्वे के पैदा करने वाली किसी विवादग्रस्त विषय में कोई हित रखने का दावा करता हो या जो उससे कोई फायदा प्रतिगृहीत कर या पा चुका हो,

तब उस व्यक्ति का अभिकर्ता या प्रबंधक जुर्माने से दण्डनीय होगा, यदि ऐसा अभिकर्ता या प्रबंधक वह विश्वास करने का कारण रखते हुए कि ऐसे बल्वे का किया जाना संभाव्य था या कि जिस विधिविरुद्ध जमाव द्वारा ऐसा बल्वा किया गया था उसका किया जाना संभाव्य था, अपनी शक्ति-भर सब विधिपूर्ण साधनों का ऐसे बल्वे या जमाव का किया जाना निवारित करने के लिए और उसको दबाने और बिखरने के लिए उपयोग नहीं करता या करते।

157. विधिविरुद्ध जमाव के लिए भाड़े पर लाए गए व्यक्तियों को संश्रय देना -

जो कोई अपने अधिभोग या भारसाधन, या नियंत्रण के अधीन किसी गृह या परिसर में किन्हीं व्यक्तियों को, यह जानते हुए कि वे व्यक्ति विधिविरुद्ध जमाव में सम्मिलित होने या सदस्य बनने के लिए भाड़े पर लाए गए, वचनबद्ध या नियोजित किए गए हैं या भाड़े पर लाए जाने, वचनबद्ध या नियोजित किए जाने वाले हैं, संश्रय देगा, आने देगा या सम्मिलित करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि छह मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।

158. विधिविरुद्ध जमाव या बल्वे में भाग लेने के लिए भाड़े पर जाना -

जो कोई धारा 141 में विनिर्दिष्ट कार्यों में से किसी को करने के लिए या करने में सहायता देने के लिए वचनबद्ध किया या भाड़े पर लिया जाएगा या भाड़े पर लिए जाने या वचनबद्ध किए जाने के लिए अपनी प्रस्थापना करेगा या प्रयत्न करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि छह मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।  

या सशस्त्र चलना - तथा जो कोई पूर्वोक्त प्रकार से वचनबद्ध होने या भाड़े पर लिए जाने पर, किसी घातक आयुध से या ऐसी किसी चीज से, जिससे आक्रामक आयुध के रूप में उपयोग किए जाने पर मृत्यु कारित होनी संभाव्य है, सज्जित होकर चलेगा या सज्जित चलने के लिए वचनबद्ध होगा या अपनी प्रस्थापना करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से दण्डित किया जाएगा।

159. दंगा -

जबकि दो या अधिक व्यक्ति लोकस्थान में लड़कर लोक शांति में विघ्न डालते हैं, तब यह कहा जाता है कि वे दंगा करते हैं।

160. दंगा करने के लिए दण्ड -

जो कोई दंगा करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि एक मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो एक सौ रुपये तक का हो सकेगा, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।

अध्याय 9: लोक-सेवकों द्वारा या उनसे संबंधित अपराधों के विषय में

161 से 165क - भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 (1988 का 49) की धारा 31 द्वारा निरसित |

166. लोक-सेवक, जो किसी व्यक्ति को क्षति कारित करने के आशय से विधि की अवज्ञा करता है -

जो कोई लोक सेवक होते हुए विधि के किसी ऐसे निदेश की जो उस ढंग के बारे में हो जिस ढंग से लोकसेवक के नाते उसे आचरण करना है जानते हुए अवज्ञा इस आशय से या यह संभाव्य जानते हुए करेगा कि ऐसी अवज्ञा से वह किसी व्यक्ति को क्षति कारित करेगा, वह सादा कारावास से, जिसकी अवधि एक वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से दण्डित किया जाएगा।

दृष्टांत

क, जो एक ऑफिसर है, और न्यायालय द्वारा य के पक्ष में दी गई डिक्री की तुष्टि के लिए निष्पादन में संपत्ति लेने के लिए विधि द्वारा निदेशित है, यह ज्ञान रखते हुए कि यह संभाव्य है कि तद्द्वारा वह य को क्षति कारित करेगा, जानते हुए विधि के उस निदेश की अवज्ञा करता है। क ने इस धारा में परिभाषित अपराध किया है।

 

166 क. लोक सेवक, जो विधि के अधीन के निदेश की अवज्ञा करता है -

जो कोई लोक सेवक होते हुए :-

(क) विधि के किसी ऐसे निदेश की, जो उसको किसी अपराध या किसी अन्य मामले में अन्वेषण के प्रयोजन के लिए, किसी व्यक्ति की किसी स्थान पर उपस्थिति की अपेक्षा किए जाने से प्रतिषिद्ध करता है, जानते हुए अवज्ञा करता है; या

(ख) किसी ऐसी रीति को, जिसमें वह ऐसा अन्वेषण करेगा, विनियमित करने वाली विधि के किसी अन्य निदेश की, किसी व्यक्ति पर प्रतिकूल प्रभाव डालने के लिए, जानते हुए अवज्ञा करता है; या

(ग) दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 (1974 का 2) की धारा 154 की उपधारा (1) के अधीन, धारा 326क, धारा 326ख, धारा 354, धारा 354ख, धारा 370, धारा 370क, धारा 376, " धारा 376 कख, धारा 376 ख, धारा 376 ग, धारा 376 घ, धारा 376 घक, धारा 376 घख" [क्रिमिनल लॉ (संशोधन) अधिनियम, 2018, दिनांक – 11 अगस्त 2018 द्वारा प्रतिस्थापित], धारा 376ङ या धारा 509 के अधीन दंडनीय संज्ञेय अपराध के संबंध में उसे दी गई किसी सूचना को लेखबद्ध करने में असफल रहता है,

वह कठोर कारावास से, जिसकी अवधि छह मास से कम की नहीं होगी किन्तु जो दो वर्ष तक की हो सकेगी, दंडित किया। जाएगा और जुर्माने से भी दंडनीय होगा।

166 ख. पीड़ित का उपचार न करने के लिए दंड -

जो कोई ऐसे किसी लोक या प्रायवेट अस्पताल का, चाहे वह केन्द्रीय सरकार, राज्य सरकार, स्थानीय निकाय या किसी अन्य व्यक्ति द्वारा चलाया जा रहा हो, भारसाधक होते हुए दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 (1974 का 2) की धारा 357ग के उपबंधों का उल्लंघन करेगा, वह कारावास से, जिसकी अवधि एक वर्ष तक की हो सकेगी या जुर्माने से या दोनों से, दंडित किया जाएगा।

166 B - Punishment for non-treatment of victim

Whoever, being in charge of a hospital, public or private, whether run by the Central Government, the State Government, local bodies or any other person, contravenes the provisions of section 357 C of the Code of Criminal Procedure, 1973 (2 of 1974), shall be punished with imprisonment for a term which may extend to one year or with fine or with both.

167. लोक-सेवक, जो क्षति कारित करने के आशय से अशुद्ध दस्तावेज रचता है -

जो कोई लोक-सेवक होते हुए और ऐसे लोक-सेवक के नाते किसी दस्तावेज या इलेक्ट्रानिक अभिलेख की रचना या अनुवाद का भार वहन करते हुए उस दस्तावेज या इलेक्ट्रानिक अभिलेख का विनिर्माण, रचना या अनुवाद ऐसे प्रकार से जिसे वह जानता हो या विश्वास करता हो कि अशुद्ध है, इस आशय से या संभाव्य जानते हुए करेगा कि एतद्वारा वह किसी व्यक्ति को क्षति कारित करे, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।

168. लोक-सेवक, जो विधिविरुद्ध रूप से व्यापार में लगता है -

जो कोई लोक-सेवक होते हुए और ऐसे लोक-सेवक के नाते इस बात के लिए वैध रूप से आबद्ध होते हुए कि वह व्यापार में न लगे, व्यापार में लगेगा, वह सादा कारावास से, जिसकी अवधि एक वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।

169. लोक-सेवक जो विधिविरुद्ध रूप से संपत्ति क्रय करता है या उसके लिए बोली लगाता है -

जो कोई लोक-सेवक होते हुए और ऐसे लोक-सेवक के नाते इस बात के लिए वैध रूप से आबद्ध होते हुए कि  वह अमुक संपत्ति को न तो क्रय करे और न उसके लिए बोली लगाए, या तो अपने निज के नाम में या किसी दूसरे के नाम में, अथवा दूसरों के साथ संयुक्त रूप से, या अंशों में, उस संपत्ति को क्रय करेगा, या उसके लिए बोली लगाएगा, वह सादा कारावास से, जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा, और यदि वह संपत्ति क्रय कर ली गई है, तो वह अधिहृत कर ली जाएगी।

170. लोक-सेवक का प्रतिरूपण -

जो कोई किसी विशिष्ट पद को लोक-सेवक के नाते धारण करने का अपदेश यह जानते हुए करेगा कि वह ऐसा पद धारण नहीं करता है या ऐसा पद धारण करने वाले किसी अन्य व्यक्ति का छद्म रूपण करेगा और ऐसे बनावटी रूप में ऐसे पदाभास से कोई कार्य करेगा या करने का प्रयत्न करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।

171. कपटपूर्ण आशय से लोक-सेवक के उपयोग की पोशाक पहनना या टोकन को धारण करना -

जो कोई लोक-सेवकों के किसी खास वर्ग का न होते हुए, इस आशय से कि यह विश्वास किया जाए, या इस ज्ञान से कि संभाव्य है कि यह विश्वास किया जाए कि वह लोक-सेवकों के उस वर्ग का है, लोक-सेवकों के उस वर्ग द्वारा उपयोग में लाई जाने वाली पोशाक के सदृश पोशाक पहनेगा या टोकन के सदृश कोई टोकन धारण करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि तीन मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो दो सौ रुपए तक का हो सकेगा, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।

अध्याय 9-क: निर्वाचन सम्बन्धी अपराधों के विषय में

171 क. "अभ्यर्थी" “निर्वाचन अधिकार' परिभाषित -

इस अध्याय के प्रयोजनों के लिए -

(क) “अभ्यर्थी" से वह व्यक्ति अभिप्रेत है जो किसी निर्वाचन में अभ्यर्थी के रूप में नामनिर्दिष्ट किया गया है;

(ख) “निर्वाचन अधिकार” से किसी निर्वाचन में अभ्यर्थी के रूप में खड़े होने या खड़े न होने या अभ्यर्थना से अपना नाम वापस लेने या मत देने या मत देने से विरत रहने का किसी व्यक्ति का अधिकार अभिप्रेत है।

171 ख. रिश्वत -

(1) जो कोई -

(i) किसी व्यक्ति को इस उद्देश्य से परितोषण देता है कि वह उस व्यक्ति को या किसी अन्य व्यक्ति को किसी निर्वाचन अधिकार का प्रयोग करने के लिए उत्प्रेरित करे या किसी व्यक्ति को इसलिए इनाम दे कि उसने ऐसे अधिकार का प्रयोग किया है: अथवा 

(ii) स्वयं अपने लिए या किसी अन्य व्यक्ति के लिए कोई परितोषण ऐसे किसी अधिकार को प्रयोग में लाने के लिए या किसी अन्य व्यक्ति को ऐसे किसी अधिकार को प्रयोग में लाने के लिए उत्प्रेरित करने या उत्प्रेरित करने का प्रयत्न करने के लिए इनाम के रूप में प्रतिगृहीत करता है, वह रिश्वत का अपराध करता है:

 परन्तु लोक नीति की घोषणा या लोक कार्यवाही का वचन इस धारा के अधीन अपराध न होगा।

(2) जो व्यक्ति परितोषण देने की प्रस्थापना करता है या देने को सहमत होता है या उपाप्त करने की प्रस्थापना या प्रयत्न करता है, यह समझा जाएगा कि वह परितोषण देता है।

(3) जो व्यक्ति परितोषण अभिप्राप्त करता है या प्रतिगृहीत करने को सहमत होता है या अभिप्राप्त करने का प्रयत्न करता है, यह समझा जाएगा कि वह परितोषण प्रतिगृहीत करता है और जो व्यक्ति वह बात करने के लिए जिसे करने का उसका आशय नहीं है, हेतु स्वरूप, या जो बात उसने नहीं की है उसे करने के लिए इनाम के रूप में परितोषण प्रतिगृहीत करता है, यह समझा जाएगा कि उसने परितोषण को इनाम के रूप में प्रतिगृहीत किया है।

171 ग. निर्वाचनों में असम्यक् असर डालना -

(1) जो कोई किसी निर्वाचन अधिकार के निर्बाध प्रयोग में स्वेच्छया हस्तक्षेप करता है या हस्तक्षेप करने का प्रयत्न करता है, वह निर्वाचन में असम्यक् असर डालने का अपराध करता है। 

(2) उपधारा (1) के उपबंधों की व्यापकता पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना जो कोई -

(क) किसी अभ्यर्थी या मतदाता को, या किसी ऐसे व्यक्ति को जिससे अभ्यर्थी या मतदाता हितबद्ध है, किसी प्रकार की क्षति करने की धमकी देता है, अथवा

(ख) किसी अभ्यर्थी या मतदाता को यह विश्वास करने के लिए उत्प्रेरित करता है या उत्प्रेरित करने का प्रयत्न करता है कि वह या कोई ऐसा व्यक्ति, जिससे वह हितबद्ध है, दैवीय अप्रसाद या आध्यात्मिक परिनिन्दा का भाजन हो जाएगा, या बना दिया जाएगा,

यह समझा जाएगा कि वह उपधारा (1) के अर्थ के अन्तर्गत ऐसे अभ्यर्थी या मतदाता के निर्वाचन अधिकार के निर्बाध प्रयोग में हस्तक्षेप करता है।

(3) लोकनीति की घोषणा या लोक कार्यवाही का वचन या किसी वैध अधिकार का प्रयोग मात्र, जो किसी निर्वाचन अधिकार में हस्तक्षेप करने के आशय के बिना है, इस धारा के अर्थ के अन्तर्गत हस्तक्षेप करना नहीं समझा जाएगा।

171 घ. निर्वाचनों में प्रतिरूपण -

जो कोई किसी निर्वाचन में किसी अन्य व्यक्ति के नाम से, चाहे वह जीवित हो या मृत, या किसी कल्पित नाम से, मतपत्र के लिए आवेदन करता या मत देता है, या ऐसे निर्वाचन में एक बार मत दे चुकने के पश्चात् उसी निर्वाचन में अपने नाम के मतपत्र के लिए आवेदन करता है, और जो कोई किसी व्यक्ति द्वारा किसी ऐसे प्रकार से मतदान को दुष्प्रेरित करता है, उपाप्त करता है या उपाप्त करने का प्रयत्न करता है, वह निर्वाचन में प्रतिरूपण का अपराध करता है।

परन्तु यह तब जबकि, इस धारा में का कुछ भी, उस व्यक्ति को लागू नहीं होगा, जिसको तत्समय प्रवृत्त किसी विधि के तहत, किसी मतदाता के लिए, परोक्षी के रूप में, मतदान करने के लिए प्राधिकृत किया गया है, जहां तक, वह ऐसे मतदाता के लिए एक परोक्षी के रूप में मतदान करता है।

171 ङ, रिश्वत के लिए दण्ड -

जो कोई रिश्वत का अपराध करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि एक वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा: परन्तु सत्कार के रूप में रिश्वत केवल जुर्माने से ही दण्डित की जाएगी।

स्पष्टीकरण - “सत्कार” से रिश्वत का वह रूप अभिप्रेत है जो परितोषण,खाद्य, पेय, मनोरंजन या रसद के रूप में है।

171 च. निर्वाचन में असम्यक् असर डालने या प्रतिरूपण के लिए दण्ड -

जो कोई किसी निर्वाचन में असम्यक् असर डालने या प्रतिरूपण का अपराध करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि एक वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से दण्डित किया जाएगा।

171 छ, निर्वाचन के सिलसिले में मिथ्या कथन -

जो कोई निर्वाचन के परिणाम पर प्रभाव डालने के आशय से किसी अभ्यर्थी के वैयक्तिक शील या आचरण के संबंध में तथ्य का कथन तात्पर्यित होने वाला कोई ऐसा कथन करेगा या प्रकाशित करेगा, जो मिथ्या है, और जिसका मिथ्या होना वह जानता या विश्वास करता है अथवा जिसके सत्य होने का वह विश्वास नहीं करता है, वह जुर्माने से दण्डित किया जाएगा।

171 ज. निर्वाचन के सिलसिले में अवैध संदाय -

जो कोई किसी अभ्यर्थी के साधारण या विशेष लिखित प्राधिकार के बिना ऐसे अभ्यर्थी का निर्वाचन अग्रसर करने या निर्वाचन करा देने के लिए कोई सार्वजनिक सभा करने में या किसी विज्ञापन, परिपत्र या प्रकाशन पर या किसी भी अन्य ढंग से व्यय करेगा या करना प्राधिकृत करेगा, वह जुर्माने से, जो पांच सौ रुपए तक का हो सकेगा, दण्डित किया जाएगा:

परन्तु यदि कोई व्यक्ति, जिसने प्राधिकार के बिना कोई ऐसे व्यय किए हों, जो कुल मिलाकर दस रुपए से अधिक न हों, उस तारीख से जिस तारीख को ऐसे व्यय किए गए हों, दस दिन के भीतर उस अभ्यर्थी का लिखित अनुमोदन अभिप्राप्त कर ले, तो यह समझा जाएगा कि उसने ऐसे व्यय उस अभ्यर्थी के प्राधिकार से किए हैं।

171 झ. निर्वाचन लेखा रखने में असफलता -

जो कोई किसी तत्समय प्रवृत्त विधि द्वारा या विधि का रखने वाले किसी नियम द्वारा इसके लिए अपेक्षित होते हुए कि वह निर्वाचन में या निर्वाचन के संबंध में किए गए व्ययों लेखा रखे, ऐसा लेखा रखने में असफल रहेगा, वह जुर्माने से, जो पांच सौ रुपए तक का हो सकेगा, दण्डित किया जाएगा।

अध्याय 10: लोक सेवको के विधिपूर्ण प्राधिकार के अवमान के विषय में

172. समनों की तामील या अन्य कार्यवाही से बचने के लिए फरार हो जाना -

जो कोई किसी ऐसे लोक-सेवक द्वारा निकाले गए समन, सूचना या आदेश की तामील से बचने के लिए फरार हो जाएगा, जो ऐसे लोकसेवक के नाते ऐसे समन, सूचना या आदेश को निकालने के लिए वैध रूप से सक्षम हो, वह सादा कारावास से, जिसकी अवधि एक मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो पांच सौ रुपए तक का हो सकेगा, या दोनों से,

अथवा यदि समन या सूचना या आदेश किसी न्यायालय में स्वयं या अभिकर्ता द्वारा हाजिर होने के लिए, या दस्तावेज अथवा इलेक्ट्रानिक अभिलेख पेश करने के लिए हो, तो वह सादा कारावास से, जिसकी अवधि छह मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो एक हजार रुपए तक का हो सकेगा, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।

173. समन की तामील का या अन्य कार्यवाही का या उसके प्रकाशन का निवारण करना -

जो कोई किसी लोक-सेवक द्वारा जो लोक-सेवक उस नाते कोई समन, सूचना या आदेश निकालने के लिए वैध रूप से सक्षम हो निकाले गए समन, सूचना या आदेश की तामील अपने पर या किसी अन्य व्यक्ति पर होना किसी प्रकार साशय निवारित करेगा,

अथवा किसी ऐसे समन, सूचना या आदेश का किसी स्थान में विधिपूर्वक लगाया जाना साशय निवारित करेगा,

अथवा किसी ऐसे समन, सूचना या आदेश को किसी ऐसे स्थान से, जहां कि वह विधिपूर्वक लगाया हुआ है, साशय हटाएगा,

अथवा किसी ऐसे लोक-सेवक के प्राधिकाराधीन की जाने वाली किसी उद्घोषणा का विधिपूर्वक किया जाना साशय निवारित करेगा, जो ऐसे लोक-सेवक के नाते ऐसी उद्घोषणा का किया जाना निर्दिष्ट करने के लिए वैध रूप से सक्षम हो, वह सादा कारावास से, जिसकी अवधि एक मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो पांच सौ रुपए तक का हो सकेगा, या दोनों से,

अथवा यदि समन, सूचना, आदेश या उद्घोषणा किसी न्यायालय में स्वयं या अभिकर्ता द्वारा हाजिर होने के लिए या दस्तावेज अथवा इलेक्ट्रानिक अभिलेख पेश करने के लिए हो, तो वह सादा कारावास से जिसकी अवधि छह मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो एक हजार रुपए तक का हो सकेगा, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।

174. लोक-सेवक का आदेश न मानकर गैर हाजिर रहना -

जो कोई किसी लोक-सेवक द्वारा निकाले गए उस समन, सूचना, आदेश या उद्घोषणा के पालन में, जिसे ऐसे लोक-सेवक के नाते निकालने के लिए वह वैध रूप से सक्षम हो, किसी निश्चित स्थान और समय पर स्वयं या अभिकर्ता द्वारा हाजिर होने के लिए वैध रूप से आबद्ध होते हुए,

उस स्थान या समय पर हाजिर होने का साशय लोप करेगा, या उस स्थान से, जहां हाजिर होने के लिए वह आबद्ध है, उस समय से पूर्व चला जाएगा, जिस समय चला जाना उसके लिए विधिपूर्ण होता, वह सादा कारावास से, जिसकी अवधि एक मास तक की हो सकेगी या जुर्माने से, जो पांच सौ रुपए तक का हो सकेगा, या दोनों से,

अथवा यदि समन, सूचना, आदेश या उद्घोषणा किसी न्यायालय में स्वयं या किसी अभिकर्ता द्वारा हाजिर होने के लिए है, तो वह सादा कारावास से, जिसकी अवधि छह मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो एक हजार रुपए तक का हो सकेगा, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा। 

दृष्टांत  -

(क) क कलकत्ता उच्च न्यायालय द्वारा निकाले गए समन के पालन में उस न्यायालय के समक्ष उपसंजात होने के लिए वैध रूप से आबद्ध होते हुए, उपसंजात होने में साशय लोप करता है। क ने इस धारा में परिभाषित अपराध किया है।

(ख) क जिला न्यायाधीश द्वारा निकाले गए समन के पालन में उस जिला न्यायाधीश के समक्ष साक्षी के रूप में उपसंजात होने के लिए वैध रूप से आबद्ध होते हुए उपसंजात होने में साशय लोप करता है। क ने इस धारा में परिभाषित अपराध किया है।

174 क.1974 के अधिनियम 2 की धारा 82 के अधीन किसी उद्घोषणा के उत्तर में गैरहाज़िरी -

जो कोई दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 (1974 का 2) की धारा 82 की उपधारा (1) के अधीन प्रकाशित किसी उद्घोषणा की अपेक्षानुसार विनिर्दिष्ट समय पर हाजिर होने में असफल रहता है, तो वह कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी या जुर्माने से या दोनों से दण्डित किया जाएगा और जहाँ उस धारा की उपधारा (4) के अधीन कोई ऐसी घोषणा की गई है जिसमें उसे उद्घोषित अपराधी के रूप में घोषित किया गया है, वहाँ वह कारावास से, जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी दण्डित किया जाएगा और जुर्माने का भी दायी होगा।

175. दस्तावेज या इलेक्ट्रानिक अभिलेख पेश करने के लिए वैध रूप से आबद्ध व्यक्ति का लोक-सेवक को पेश करने का लोप -

जो कोई किसी लोक-सेवक को, ऐसे लोक-सेवक के नाते किसी दस्तावेज या इलेक्ट्रानिक अभिलेख को पेश करने या परिदत्त करने के लिए वैध रूप से आबद्ध होते हुए, उसको इस प्रकार पेश करने या परिदत्त करने का साशय लोप करेगा, वह सादा कारावास से, जिसकी अवधि एक मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो पांच सौ रुपए तक का हो सकेगा, या दोनों से,

अथवा यदि वह दस्तावेज या इलेक्ट्रानिक अभिलेख किसी न्यायालय में पेश या परिदत्त की जानी हो, तो वह सादा कारावास से, जिसकी अवधि छह मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो एक हजार रुपए तक का हो सकेगा, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।

दृष्टांत -

क, जो एक जिला न्यायालय के समक्ष दस्तावेज पेश करने के लिए वैध रूप से आबद्ध है, उसको पेश करने का साशय लोप करता है। क ने इस धारा में परिभाषित अपराध किया है।

176. सूचना या इत्तिला देने के लिए वैध रूप से आबद्ध व्यक्ति द्वारा लोक-सेवक को सूचना या इत्तिला देने का लोप -

जो कोई किसी लोक-सेवक को, ऐसे लोक-सेवक के नाते किसी विषय पर कोई सूचना देने या इत्तिला देने के लिए वैध रूप से आबद्ध होते हुए, विधि द्वारा अपेक्षित प्रकार से और समय पर ऐसी सूचना या इत्तिला देने का साशय लोप करेगा, वह सादा कारावास से, जिसकी अवधि एक मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो पांच सौ रुपए तक का हो सकेगा, या दोनों से; 

अथवा यदि दी जाने के लिए अपेक्षित सूचना या इत्तिला किसी अपराध के किए जाने के विषय में हो, या किसी अपराध के किए जाने का निवारण करने के प्रयोजन से या किसी अपराधी को पकड़ने के लिए अपेक्षित हो, तो वह सादा कारावास से, जिसकी अवधि छह मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो एक हजार रुपए तक का हो सकेगा, या दोनों से;

अथवा यदि दी जाने के लिए अपेक्षित सूचना या इत्तिला दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1898 (1898 का 5) की धारा 565 की उपधारा (1) के अधीन दिए गए आदेश द्वारा अपेक्षित है, तो वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि छह मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो एक हजार रुपए तक का हो सकेगा, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।

177. मिथ्या इत्तिला देना -

जो कोई किसी लोक-सेवक को ऐसे लोक-सेवक के नाते किसी विषय पर इत्तिला देने के लिए वैध रूप से आबद्ध होते हुए उस विषय पर सच्ची इत्तिला के रूप में ऐसी इत्तिला देगा जिसका मिथ्या होना वह जानता है या जिसके मिथ्या होने का विश्वास करने का कारण उसके पास है, वह सादा कारावास से, जिसकी अवधि छह मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो एक हजार रुपए तक का हो सकेगा, या दोनों से,

अथवा यदि वह इत्तिला, जिसे देने के लिए, वह वैध रूप से आबद्ध हो, कोई अपराध किए जाने के विषय में हो, या किसी अपराध के किए जाने का निवारण करने के प्रयोजन से, या किसी अपराधी को पकड़ने के लिए अपेक्षित हो, तो वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।

दृष्टांत -

(क) क, एक भूधारक, यह जानते हुए कि उसकी भू-संपदा की सीमाओं के अन्दर एक हत्या की गई है, उस जिले के मजिस्ट्रेट को जानबूझकर यह मिथ्या इत्तिला देता है कि मृत्यु सांप के काटने के परिणामस्वरूप दुर्घटना से हुई है। क इस धारा में परिभाषित अपराध का दोषी है।

(ख) क, जो ग्राम चौकीदार है, यह जानते हुए कि अनजाने लोगों का एक बड़ा गिरोह य के गृह में, जो पड़ोस के गाँव का निवासी एक धनी व्यापारी है, डकैती करने के लिए उसके गांव से होकर गया और बंगाल संहिता, [1821 के विनियम 3] की धारा 7 के खण्ड 5 के अधीन निकटतम थाने के ऑफिसर को  उपरोक्त घटना की इत्तिला शीघ्र और ठीक समय पर देने के लिए आबद्ध होते हुए पुलिस ऑफिसर को जानबूझकर यह मिथ्या इत्तिला देता है कि संदिग्धशील लोगों का एक गिरोह किसी भिन्न दिशा में स्थित एक दूरस्थ स्थान पर डकैती करने के लिए गांव से होकर गया है। यहां क, इस धारा के दूसरे भाग में परिभाषित अपराध का दोषी है।

स्पष्टीकरण - धारा 176 में और इस धारा में, “अपराध” शब्द के अन्तर्गत भारत से बाहर किसी स्थान पर किया गया कोई ऐसा कार्य आता है, जो यदि भारत में किया जाता, तो निम्नलिखित धारा अर्थात् 302, 304, 382, 392, 393, 394, 395, 396, 397, 398, 399, 402, 435, 436, 449, 450, 457, 458,459 और 460 में से किसी धारा के अधीन दण्डनीय होता और “अपराधी' शब्द के अन्तर्गत कोई भी ऐसा व्यक्ति आता है, जो कोई ऐसा कार्य करने का दोषी अभिकथित हो ।

178. शपथ या प्रतिज्ञान से इन्कार करना जबकि लोक-सेवक द्वारा वह वैसा करने के लिए सम्यक् रूप से अपेक्षित किया जाए -

जो कोई सत्य कथन करने के लिए शपथ या प्रतिज्ञान द्वारा अपने आप को आबद्ध करने से इंकार करेगा, जबकि उससे अपने को इस प्रकार आबद्ध करने की अपेक्षा ऐसे लोक-सेवक द्वारा की जाए जो यह अपेक्षा करने के लिए वैध रूप से सक्षम हो कि वह व्यक्ति इस प्रकार अपने को आबद्ध करे, वह सादा कारावास से, जिसकी अवधि छह मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो एक हजार रुपए तक का हो सकेगा, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।

179. प्रश्न करने के लिए प्राधिकृत लोक-सेवक का उत्तर देने से इंकार करना -

जो कोई किसी लोक-सेवक से किसी विषय पर सत्य कथन करने के लिए वैध रूप से आबद्ध होते हुए, ऐसे लोक-सेवक की वैध शक्तियों के प्रयोग में उस लोक-सेवक द्वारा उस विषय के बारे में उससे पूछे गए किसी प्रश्न का उत्तर देने से इंकार करेगा, वह सादा कारावास से, जिसकी अवधि छह मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो एक हजार रुपए तक का हो सकेगा, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।

180. कथन पर हस्ताक्षर करने से इंकार -

जो कोई अपने द्वारा किए गए किसी कथन पर हस्ताक्षर करने को ऐसे लोक-सेवक द्वारा अपेक्षा किए जाने पर, जो उससे यह अपेक्षा करने के लिए वैध रूप से सक्षम हो कि वह उस कथन पर हस्ताक्षर करे, उस कथन पर हस्ताक्षर करने से इंकार करेगा, वह सादा कारावास से, जिसकी अवधि तीन मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो पांच सौ रुपए तक का हो सकेगा, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।

181. शपथ दिलाने या प्रतिज्ञान कराने के लिए प्राधिकृत लोक-सेवक के, या व्यक्ति के समक्ष शपथ या प्रतिज्ञान पर मिथ्या कथन -

जो कोई किसी लोक-सेवक या किसी अन्य व्यक्ति से, जो ऐसे शपथ दिलाने या प्रतिज्ञान देने के लिए विधि द्वारा प्राधिकृत हो, किसी विषय पर सत्य कथन करने के लिए शपथ या प्रतिज्ञान द्वारा वैध रूप से आबद्ध होते हुए ऐसे लोक-सेवक या यथापूर्वोक्त अन्य व्यक्ति से उस विषय के संबंध में कोई ऐसा कथन करेगा, जो मिथ्या है, और जिसके मिथ्या होने का या तो उसे ज्ञान है, या विश्वास है या जिसके सत्य होने का उसे विश्वास नहीं है, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा, और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।

182. इस आशय से मिथ्या इत्तिला देना कि लोक-सेवक अपनी विधिपूर्ण शक्ति का उपयोग दूसरे व्यक्ति को क्षति करने के लिए करे -

जो कोई किसी लोक-सेवक को कोई ऐसी इत्तिला, जिसके मिथ्या होने का उसे ज्ञान या विश्वास है, इस आशय से देगा कि वह उस लोक-सेवक को प्रेरित करे या यह संभाव्य जानते हुए देगा कि वह उसको एतद्द्वारा प्रेरित करेगा कि वह लोक-सेवक -

(क) कोई ऐसी बात करे या करने का लोप करे जिसे वह लोक-सेवक, यदि उसे उस संबंध में, जिसके बारे में ऐसी इत्तिला दी गई है, तथ्यों की सही स्थिति का पता होता तो न करता या करने का लोप न करता, अथवा

(ख) ऐसे लोक-सेवक की विधिपूर्ण शक्ति का उपयोग करे जिस उपयोग से किसी व्यक्ति को क्षति या क्षोभ हो, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि छह मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो एक हजार रुपए तक का हो सकेगा, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।

 दृष्टांत -

(क) क एक मजिस्ट्रेट को यह इत्तिला देता है कि य एक पुलिस ऑफिसर, जो ऐसे मजिस्ट्रेट का अधीनस्थ है, कर्तव्य पालन में उपेक्षा या अवचार का दोषी है, यह जानते हुए देता है कि ऐसी इत्तिला मिथ्या है, और यह संभाव्य है कि उस इत्तिला से वह मजिस्ट्रेट य को पदच्युत कर देगा क ने इस धारा में परिभाषित अपराध किया है।

(ख) क एक लोक-सेवक को यह मिथ्या इत्तिला देता है कि य के पास गुप्त स्थान में विनिषिद्ध नमक है। वह इत्तिला यह जानते हुए देता है कि ऐसी इत्तिला मिथ्या है, और यह जानते हुए देता है कि यह संभाव्य है कि उस इत्तिला के परिणामस्वरूप य के परिसर की तलाशी ली जाएगी, जिससे य को क्षोभ होगा। क ने इस धारा में परिभाषित अपराध किया है 

(ग) एक पुलिसजन को क यह मिथ्या इत्तिला देता है कि एक विशिष्ट ग्राम के पास उस पर हमला किया गया है और उसे लूट लिया गया है। वह अपने पर हमलावर के रूप में किसी व्यक्ति का नाम नहीं लेता।

किन्तु वह जानता है कि यह संभाव्य है कि इस इत्तिला के परिणामस्वरूप पुलिस उस ग्राम में जाँच करेगी और तलाशियाँ लेगी, जिससे ग्रामवासियों या उनमें से कुछ को क्षोभ होगा। क ने इस धारा में परिभाषित अपराध किया है।

183. लोक-सेवक के विधिपूर्ण प्राधिकार द्वारा संपत्ति लिए जाने का प्रतिरोध -

जो कोई किसी लोक-सेवक के विधिपूर्ण प्राधिकार द्वारा किसी संपत्ति के ले लिए जाने का प्रतिरोध यह जानते हुए या यह विश्वास करने का कारण रखते हुए करेगा कि वह ऐसा लोक-सेवक है, वह दोनों में से किसी भाँति के कारावास से, जिसकी अवधि छह मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो एक हजार रुपये तक का हो सकेगा, या दोनों से दंडित किया जाएगा।

184. लोक-सेवक के प्राधिकार द्वारा विक्रय के लिए प्रस्थापित की गई सम्पत्ति के विक्रय में बाधा उपस्थित करना -

जो कोई ऐसी किसी सम्पत्ति के विक्रय में, जो ऐसे लोक-सेवक के नाते किसी लोकसेवक के विधिपूर्ण प्राधिकार द्वारा विक्रय के लिये प्रस्थापित की गई हो, साशय बाधा डालेगा, वह दोनों में से किसी भाँति के कारावास से, जिसकी अवधि एक मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो पाँच सौ रुपये तक का हो सकेगा, या दोनों से दण्डित, किया जाएगा।

185. लोक सेवक के प्राधिकार द्वारा विक्रय के लिए प्रस्थापित की गई सम्पत्ति का अवैध क्रय या उसके लिए अवैध बोली लगाना -

जो कोई सम्पत्ति के किसी ऐसे विक्रय में, जो लोक-सेवक के नाते लोकसेवक के विधिपूर्ण प्राधिकार द्वारा हो रहा हो, किसी ऐसे व्यक्ति के निमित्त चाहे वह व्यक्ति वह स्वयं हो, या कोई अन्य हो, किसी संपत्ति का क्रय करेगा या किसी संपत्ति के लिए बोली लगाएगा, जिसके बारे में वह जानता हो कि वह व्यक्ति उस विक्रय में उस सम्पत्ति के क्रय करने के बारे में किसी विधिक असमर्थता के अधीन है या ऐसी सम्पत्ति के लिए यह आशय रखकर बोली लगाएगा कि ऐसी बोली लगाने से जिन बाध्यताओं के अधीन वह अपने आप को डालता है उन्हें उसे पूरा नहीं करना है, वह दोनों में से किसी भाँति के कारावास से, जिसकी अवधि एक मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो दो सौ रुपये तक का हो सकेगा, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।

186. लोक-सेवक के लोक-कृत्यों के निर्वहन में बाधा डालना -

जो कोई किसी लोक-सेवक के लोक कृत्यों के निर्वहन में स्वेच्छया बाधा डालेगा, वह दोनों में से किसी भाँति के कारावास से, जिसकी अवधि तीन मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो पाँच सौ रुपये तक का हो सकेगा, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।

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राज्य संशोधन

मध्यप्रदेश एवं छत्तीसगढ़ - धारा 186 के तहत अपराध संज्ञेय है | [देखें अधिसूचना क्रमांक 33205- एफ. क्र. 6-59-74-t-XX1 दिनांक 19-11-1975। म.प्र. राजपत्र, भाग 1, दिनांक 12-3-1976 पृष्ठ 473 पर प्रकाशित।]

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187. लोक-सेवक की सहायता करने का लोप, जबकि सहायता देने के लिए विधि द्वारा आबद्ध हो -

जो कोई किसी लोक-सेवक को, उसके लोक कर्तव्य के निष्पादन में सहायता देने या पहुँचाने के लिए विधि द्वारा आबद्ध होते हुए, ऐसी सहायता देने का साशय लोप करेगा, वह सादा कारावास से, जिसकी अवधि एक मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो दो सौ रुपये तक का हो सकेगा, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा;

और यदि ऐसी सहायता की मांग उससे ऐसे लोक-सेवक द्वारा, जो ऐसी मांग करने के लिए वैध रूप से सक्षम हो, न्यायालय द्वारा वैध रूप से निकाली गई किसी आदेशिका के निष्पादन के, या अपराध के किए जाने का निवारण करने के, या बल्वे या दंगे को दबाने के, या ऐसे व्यक्ति को, जिस पर अपराध का आरोप है या जो अपराध का या विधिपूर्ण अभिरक्षा से निकल भागने का दोषी है, पकड़ने के प्रयोजनों से की जाए, तो वह सादा कारावास से जिसकी अवधि छह मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो पाँच सौ रुपये तक का हो सकेगा, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।

188. लोक-सेवक द्वारा सम्यक् रूप से प्रख्यापित आदेश की अवज्ञा -

जो कोई यह जानते हुए कि वह ऐसे लोक-सेवक द्वारा प्रख्यापित किसी आदेश से, जो ऐसे आदेश को प्रख्यापित करने के लिए विधिपूर्वक सशक्त है, कोई कार्य करने से विरत रहने के लिए या अपने कब्जे में की, या अपने प्रबन्धाधीन, किसी सम्पत्ति के बारे में कोई विशेष व्यवस्था करने के लिए निर्दिष्ट किया गया है, ऐसे निदेश की अवज्ञा करेगा,

यदि ऐसी अवज्ञा विधिपूर्वक नियोजित किन्हीं व्यक्तियों को बाधा, क्षोभ या क्षति, अथवा बाधा, क्षोभ या क्षति की जोखिम,कारित करे, या कारित करने की प्रवृत्ति रखती हो, तो वह सादा कारावास से, जिसकी अवधि एक मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो दो सौ रुपये तक का हो सकेगा, या दोनों से,दण्डित किया जाएगा,

और यदि ऐसी अवज्ञा मानव जीवन, स्वास्थ्य, या क्षेम को संकट कारित करे, या कारित करने की प्रवृत्ति रखती हो, या बल्वा या दंगा कारित करती हो, या कारित करने की प्रवृत्ति रखती हो, तो वह दोनों में से किसी भाँति के कारावास से, जिसके अवधि छह मास तक की हो सकेगी या जुर्माने से, जो एक हजार रुपये तक का हो सकेगा, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।

स्पष्टीकरण - यह आवश्यक नहीं है कि अपराधी का आशय अपहानी उत्पन्न करने का हो या उसके ध्यान में यह हो कि उसकी अवज्ञा करने से अपहानी होना संभाव्य है। यह पर्याप्त है कि जिस आदेश की वह अवज्ञा करता है उस आदेश का उसे ज्ञान है, और यह भी ज्ञान है कि उसके अवज्ञा करने से अपहानी उत्पन्न होती या होनी संभाव्य है।

दृष्टांत -

एक आदेश, जिसमें यह निदेश है कि अमुक धार्मिक जुलूस अमुक सड़क से होकर न निकले, ऐसे लोक-सेवक द्वारा प्रख्यापित किया जाता है, जो ऐसे आदेश प्रख्यापित करने के लिए विधिपूर्वक सशक्त है। क जानते हुए उस आदेश की अवज्ञा करता है, और तद्वारा बल्वे का संकट कारित करता है। क ने इस धारा में परिभाषित अपराध किया है।

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राज्य संशोधन

मध्यप्रदेश एवं छत्तीसगढ़ - धारा 188 के तहत अपराध अजमानतीय है। [देखें अधिसूचना क्रमांक 33207-एफ. क्र. 6-59-74-बी- XXI दिनांक 19-11-1975, म.प्र. राजपत्र, भाग 1, दिनांक 12-3-1976 पृष्ठ 473 पर प्रकाशित ।]

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189. लोक-सेवक को क्षति करने की धमकी -

जो कोई किसी लोक-सेवक को या ऐसे किसी व्यक्ति को जिससे उस लोक-सेवक के हितबद्ध होने का उसे विश्वास हो, इस प्रयोजन से क्षति की कोई धमकी देगा कि उस लोक-सेवक को उत्प्रेरित किया जाए कि वह ऐसे लोक-सेवक के कृत्यों के प्रयोग से संसक्त कोई कार्य करे, या करने से प्रविरत रहे, या करने में विलम्ब करे, वह दोनों में से किसी भाँति के कारावास से, जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।

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राज्य संशोधन

मध्यप्रदेश एवं छत्तीसगढ़ - धारा 189 के तहत अपराध संज्ञेय है। [देखें अधिसूचना क्रमांक 33205-एफ. क्र. 6-59-74-B-XXI दिनांक 19-11-1975. म.प्र. राजपत्र, भाग 1, दिनांक 12-3- 1976 पृष्ठ 473 पर प्रकाशित] |

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190. लोक-सेवक से संरक्षा के लिए आवेदन करने से विरत रहने के लिए किसी व्यक्ति को उत्प्रेरित करने के लिए क्षति की धमकी -

जो कोई किसी व्यक्ति को इस प्रयोजन से क्षति की कोई धमकी देगा  कि वह उस व्यक्ति को उत्प्रेरित करे कि वह किसी क्षति से संरक्षा के लिए कोई वैध आवेदन किसी ऐसे लोक-सेवक से करने से विरत रहे या प्रतिविरत रहे जो ऐसे लोक-सेवक के नाते ऐसी संरक्षा करने या कराने के लिए वैध रूप से सशक्त हो, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि एक वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।

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राज्य संशोधन

मध्यप्रदेश एवं छत्तीसगढ़ - धारा 190 के तहत अपराध संज्ञेय है। [देखें अधिसूचना क्रमांक 33205-एफ. क्र. 6-59-74-B-XXI दिनांक 19-11-1975। म.प्र. राजपत्र, भाग 1, दिनांक 12-3-1976 पृष्ठ 473 पर प्रकाशित ।]

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अध्याय 11: मिथ्या साक्ष्य और लोक न्याय के विरुद्ध अपराधो के विषय में 

191. मिथ्या साक्ष्य देना -

जो कोई शपथ द्वारा या विधि के किसी अभिव्यक्त उपबंध द्वारा सत्य कथन करने के लिए वैध रूप से आबद्ध होते हुए, या किसी विषय पर घोषणा करने के लिए विधि द्वारा आबद्ध होते हुए, ऐसा कोई कथन करेगा, जो मिथ्या है, और या तो जिसके मिथ्या होने का उसे ज्ञान या विश्वास है, या जिसके सत्य होने का उसे विश्वास नहीं है, वह मिथ्या साक्ष्य देता है, यह कहा जाता है। 

स्पष्टीकरण 1- कोई कथन चाहे वह मौखिक हो, या अन्यथा किया गया हो, इस धारा के अर्थ के अन्तर्गत आता है।

स्पष्टीकरण 2 - अनुप्रमाणित करने वाले व्यक्ति के अपने विश्वास के बारे में मिथ्या कथन इस धारा के अर्थ के अन्तर्गत आता है और कोई व्यक्ति यह कहने से कि उसे उस बात का विश्वास है, जिस बात का उसे विश्वास नहीं है तथा यह कहने से कि वह उस बात को जानता है जिस बात को वह नहीं जानता, मिथ्या साक्ष्य देने का दोषी हो सकेगा।

दृष्टांत -

(क) क एक न्यायसंगत दावे के समर्थन में, जो य के विरुद्ध ख के एक हजार रुपए के लिए है, विचारण के समय शपथ पर मिथ्या कथन करता है कि उसने य को ख के दावे का न्यायसंगत होना स्वीकार करते हुए सुना था। क ने मिथ्या साक्ष्य दिया है।

(ख) क सत्य कथन करने के लिए शपथ द्वारा आबद्ध होते हुए कथन करता है कि वह अमुक हस्ताक्षर के संबंध में यह विश्वास करता है कि वह य का हस्तलेख है, जबकि वह उसके य का हस्तलेख होने का विश्वास नहीं करता है। यहां क वह कथन करता है, जिसका मिथ्या होना वह जानता है, और इसलिए मिथ्या साक्ष्य देता है।

(ग) य के हस्तलेख के साधारण स्वरूप को जानते हुए क यह कथन करता है कि अमुक हस्ताक्षर के संबंध में उसका यह विश्वास है कि वह य का हस्तलेख है; क उसके ऐसा होने का विश्वास सद्भावपूर्वक करता है। यहां, क का कथन केवल अपने विश्वास के संबंध में है, और उसके विश्वास के संबंध में सत्य है, और इसलिए यद्यपि वह हस्ताक्षर य का हस्तलेख न भी हो, क ने मिथ्या साक्ष्य नहीं दिया है।

(घ) क शपथ द्वारा सत्य कथन करने के लिए आबद्ध होते हुए यह कथन करता है कि वह यह जानता है कि ये एक विशिष्ट दिन एक विशिष्ट स्थान में था, जबकि वह उस विषय में कुछ भी नहीं जानता। क मिथ्या साक्ष्य देता है, चाहे बतलाए हुए दिन य उस स्थान पर रहा हो या नहीं।

(ङ) क एक दुभाषिया या अनुवादक किसी कथन या दस्तावेज के, जिसका यथार्थ भाषान्तरण या अनुवाद करने के लिए वह शपथ द्वारा आबद्ध है, ऐसे भाषांतरण या अनुवाद को, जो यथार्थ भाषान्तरण या अनुवाद नहीं है और जिसके यथार्थ होने का वह विश्वास नहीं करता, यथार्थ भाषांतरण या अनुवाद के रूप में देता या प्रमाणित करता है। क ने मिथ्या साक्ष्य दिया है।

192. मिथ्या साक्ष्य गढ़ना -

जो कोई इस आशय से किसी परिस्थिति को अस्तित्व में लाता है, या किसी पुस्तक या अभिलेख में या इलेक्ट्रानिक अभिलेख में कोई मिथ्या, प्रविष्टि करता है, या मिथ्या कथन अन्तर्विष्ट करने वाली कोई दस्तावेज या इलेक्ट्रानिक अभिलेख रचता है कि ऐसी परिस्थिति, मिथ्या प्रविष्टि या मिथ्या कथन न्यायिक कार्यवाही में, या ऐसी किसी कार्यवाही में, जो लोक-सेवक के समक्ष उसके नाते या मध्यस्थ के समक्ष विधि द्वारा की जाती है, साक्ष्य में दर्शित हो और कि इस प्रकार साक्ष्य में दर्शित होने पर ऐसी परिस्थिति, मिथ्या प्रविष्टि या मिथ्या कथन के कारण कोई व्यक्ति, जिसे ऐसी कार्यवाही में साक्ष्य के आधार पर राय कायम करनी है, ऐसी कार्यवाही के परिणाम के लिए तात्विक किसी बात के संबंध में गलत राय बना, वह मिथ्या साक्ष्य गढ़ता है, यह कहा जाता है।

दृष्टांत -

(क) क एक बक्स में, जो य का है, इस आशय से आभूषण रखता है कि वे उस बक्स में पाए जाए और इस परिस्थिति से य चोरी के लिए दोषसिद्धि ठहराया जाए ने मिथ्या साक्ष्य गढ़ा है।

(ख) क अपनी दुकान की बही में एक मिथ्या प्रविष्टि इस प्रयोजन से करता है कि वह न्यायालय में सम्पोषक साक्ष्य के रूप में काम में लाई जाए क ने मिथ्या साक्ष्य गढ़ा है।

(ग) य को एक आपराधिक षड़यंत्र के लिए दोषसिद्ध ठहराया जाने के आशय से क एक पत्र य के हस्तलेख की अनुकृति करके लिखता है, जिससे यह तात्पर्यित है कि य ने उसे ऐसे आपराधिक षड़यंत्र के सह अपराधी को संबोधित किया है और उस पत्र को ऐसे स्थान पर रखा देता है जिसके संबंध में वह यह जानता है कि पुलिस ऑफिसर संभाव्यतः उस स्थान की तलाशी लेंगे क ने मिथ्या साक्ष्य गढ़ा है।

193. मिथ्या साक्ष्य के लिए दण्ड -

जो कोई साशय किसी न्यायिक कार्यवाही के किसी प्रक्रम में मिथ्या साक्ष्य देगा या किसी न्यायिक कार्यवाही के किसी प्रक्रम में उपयोग में लाए जाने के प्रयोजन से, मिथ्या साक्ष्य गढ़ेगा वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा, और जुर्माने से भी दण्डनीय होगाऔर जो कोई किसी अन्य मामले में साशय मिथ्या देगा या गढ़ेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा, और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।

स्पष्टीकरण 1 - सेना न्यायालय  के समक्ष विचारणीय न्यायिक कार्यवाही है।

स्पष्टीकरण 2 - न्यायालय के समक्ष कार्यवाही प्रारंभ होने के पूर्व जो विधि द्वारा निर्दिष्ट अन्वेषण होता है, वह न्यायिक कार्यवाही का एक प्रक्रम है, चाहे वह अन्वेषण किसी न्यायालय के सामने न भी हो।

दृष्टांत -

यह अभिनिश्चय करने के प्रयोजन से कि क्या य को विचारण के लिए सुपुर्द किया जाना चाहिए, मजिस्ट्रेट के समक्ष जांच में क शपथ पर कथन करता है, जिसका वह मिथ्या होना जानता है। यह जांच न्यायिक कार्यवाही का एक प्रक्रम है, इसलिए क ने मिथ्या साक्ष्य दिया है। 

स्पष्टीकरण 3 - न्यायालय द्वारा विधि के अनुसार निर्दिष्ट और न्यायालय के प्राधिकार के अधीन संचालित अन्वेषण न्यायिक कार्यवाही का एक प्रक्रम है, चाहे वह अन्वेषण किसी न्यायालय के सामने न भी हो।

दृष्टांत -

संबंधित स्थान पर जाकर भूमि की सीमाओं को अभिनिश्चित करने के लिए न्यायालय द्वारा प्रतिनियुक्त ऑफिसर के समक्ष जांच में क शपथ पर कथन करता है जिसका मिथ्या होना वह जानता है। यह जांच न्यायिक कार्यवाही का एक प्रक्रम है, इसलिए क ने मिथ्या साक्ष्य दिया है।

194. मृत्यु से दण्डनीय अपराध के लिए दोषसिद्ध कराने के आशय से मिथ्या साक्ष्य देना या गढ़ना -

जो कोई भारत में तत्समय प्रवृत्त विधि के द्वारा मृत्यु से दण्डनीय अपराध के लिए किसी व्यक्ति को दोषसिद्ध कराने के आशय से या सम्भवतः तद्द्वारा दोषसिद्ध कराएगा, यह जानते हुए मिथ्या साक्ष्य देगा या गढ़ेगा वह आजीवन कारावास से, या कठिन कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा, और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा; 

यदि निर्दोष व्यक्ति एतद्द्वारा दोषसिद्ध किया जाए और उसे फांसी दी जाए - और यदि किसी निर्दोष व्यक्ति को ऐसे मिथ्या साक्ष्य के परिणामस्वरूप दोषसिद्ध किया जाए, और उसे फांसी दे दी जाए, तो उस व्यक्ति को, जो ऐसा मिथ्या साक्ष्य देगा, या तो मृत्युदण्ड या एतस्मिन् पूर्व वर्णित दण्ड दिया जाएगा।

195. आजीवन कारावास या कारावास से दण्डनीय अपराध के लिए दोषसिद्ध कराने के आशय से मिथ्या साक्ष्य देना या गढ़ना -

जो कोई इस आशय से या यह संभाव्य जानते हुए कि एतद्द्वारा वह किसी व्यक्ति को ऐसे अपराध के लिए, जो भारत में तत्समय प्रवृत्त किसी विधि द्वारा मृत्यु से दण्डनीय न हो किन्तु आजीवन कारावास या सात वर्ष या उससे अधिक की अवधि के कारावास से दण्डनीय हो, दोषसिद्ध कराए, मिथ्या साक्ष्य देगा या गढ़ेगा, वह वैसे ही दण्डित किया जाएगा जैसे वह व्यक्ति दण्डनीय होता जो उस अपराध के लिए दोषसिद्ध होता।

दृष्टांत -

क न्यायालय के समक्ष इस आशय से मिथ्या साक्ष्य देता है कि एतद्द्वारा य डकैती के लिए दोषसिद्ध किया जाए। डकैती का दण्ड जुर्माना सहित या रहित, आजीवन कारावास या ऐसा कठिन कारावास है, जो दस वर्ष तक की अवधि का हो सकता है। क इसलिए जुर्माने सहित या रहित आजीवन कारावास या कारावास से दण्डनीय है।

195 क. किसी व्यक्ति को मिथ्या साक्ष्य देने के लिए धमकाना -

जो कोई, किसी दूसरे व्यक्ति को, उसके शरीर, ख्याति या संपत्ति को अथवा ऐसे व्यक्ति के शरीर या ख्याति को, जिसमें वह व्यक्ति हितबद्ध है, यह कारित करने के आशय से कोई क्षति करने की धमकी देता है, कि वह व्यक्ति मिथ्या साक्ष्य दे तो वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी या जुर्माने से या दोनों से दंडित किया जाएगाऔर

यदि कोई निर्दोष व्यक्ति ऐसे मिथ्या साक्ष्य के परिणामस्वरूप मृत्यु से या सात वर्ष से अधिक के कारावास से दोषसिद्ध और दंडादिष्ट किया जाता है तो ऐसा व्यक्ति, जो धमकी देता है, उसी दंड से दंडित किया जाएगा और उसी रीति में और उसी सीमा तक दंडादिष्ट किया जाएगा जैसे निर्दोष व्यक्ति दंडित और दंडादिष्ट किया गया है।

196. उस साक्ष्य को काम में लाना जिसका मिथ्या होना ज्ञात है -

जो कोई किसी साक्ष्य को, जिसका मिथ्या होना या गढ़ा होना वह जानता है, सच्चे या असली साक्ष्य के रूप में भ्रष्टतापूर्वक उपयोग में लाएगा, या उपयोग में लाने का प्रयत्न करेगा, वह ऐसे दण्डित किया जाएगा मानो उसने मिथ्या साक्ष्य दिया हो या गढ़ा हो।

197. मिथ्या प्रमाण पत्र जारी करना या हस्ताक्षरित करना -

जो कोई ऐसा प्रमाण पत्र, जिसका दिया जाना या हस्ताक्षरित किया जाना विधि द्वारा अपेक्षित हो, या जो किसी ऐसे तथ्य से संबंधित हो जिसका वैसा प्रमाण-पत्र विधि द्वारा साक्ष्य में ग्राह्य हो, यह जानते हुए या विश्वास करते हुए कि वह किसी तात्विक बात के बारे में मिथ्या है, वैसा प्रमाण-पत्र जारी करेगा या हस्ताक्षरित करेगा, वह उसी प्रकार दण्डित किया जाएगा, मानो उसने मिथ्या साक्ष्य दिया हो।

198. प्रमाण पत्र जिसका मिथ्या होना ज्ञात है सच्चे के रूप में काम में लाना -

जो कोई किसी ऐसे प्रमाण पत्र को यह जानते हुए कि वह किसी तात्विक बात के संबंध में मिथ्या है, सच्चे प्रमाण पत्र के रूप में भ्रष्टतापूर्वक उपयोग में लाएगा या उपयोग में लाने का प्रयत्न करेगा, वह ऐसे दण्डित किया जाएगा, मानो उसने मिथ्या साक्ष्य दिया हो।

199. ऐसी घोषणा में, जो साक्ष्य के रूप में विधि द्वारा ली जा सके, किया गया मिथ्या कथन -

जो कोई अपने द्वारा की गई या हस्ताक्षरित किसी घोषणा में, जिसको किसी तथ्य के साक्ष्य के रूप में लेने के लिए कोई न्यायालय, या कोई लोक-सेवक या अन्य व्यक्ति विधि द्वारा आबद्ध या प्राधिकृत हो कोई ऐसा कथन करेगा, जो किसी ऐसी बात के संबंध में, जो उस उद्देश्य के लिए तात्विक हो जिसके लिए वह घोषणा की जाए या उपयोग में लाई जाए, मिथ्या है, और जिसके मिथ्या होने का उसे ज्ञान या विश्वास है, या जिसके सत्य होने का उसे विश्वास नहीं है, वह उसी प्रकार दण्डित किया जाएगा, मानो उसने मिथ्या साक्ष्य दिया हो।

200. ऐसी घोषणा का मिथ्या होना जानते हुए सच्ची के रूप में काम में लाना –

जो कोई किसी ऐसी घोषणा को, यह जानते हुए कि वह किसी तात्विक बात के संबंध में मिथ्या है, भ्रष्टतापूर्वक सच्ची के रूप में उपयोग में लाएगा, या उपयोग में लाने का प्रयत्न करेगा, वह उसी प्रकार दण्डित किया जाएगा, मानो उसने मिथ्या साक्ष्य दिया हो। GO toTOP

स्पष्टीकरण - कोई घोषणा, जो केवल किसी अप्ररूपिता के आधार पर अग्राह्य है, धारा 199 और धारा 200 के अर्थ के अन्तर्गत घोषणा है।

201. अपराध के साक्ष्य का विलोपन, या अपराधी को प्रतिच्छादित करने के लिए मिथ्या इत्तिला देना -

जो कोई यह जानते हुए, या यह विश्वास करने का कारण रखते हुए कि कोई अपराध किया गया है, उस अपराध के किए जाने के किसी साक्ष्य का विलोप इस आशय से कारित करेगा कि अपराधी को वैध दण्ड से प्रतिच्छादित करे या उस आशय से उस अपराध से संबंधित कोई ऐसी इत्तिला देगा, जिसके मिथ्या होने का उसे ज्ञान या विश्वास है।

यदि अपराध मृत्यु से दण्डनीय हो - यदि वह अपराध जिसके किए जाने का उसे ज्ञान या विश्वास है, मृत्यु से दण्डनीय हो, तो वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा;

यदि आजीवन कारावास से दण्डनीय हो - और यदि वह अपराध आजीवन कारावास से, या ऐसे कारावास से, जो दस वर्ष तक का हो सकेगा, दण्डनीय हो, तो वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा; 

यदि दस वर्ष से कम के कारावास से दण्डनीय हो - और यदि वह अपराध ऐसे कारावास से उतनी अवधि के लिए दण्डनीय हो, जो दस वर्ष तक की न हो, तो वह उस अपराध के लिए उपबंधित भांति के कारावास से उतनी अवधि के लिए, जो उस अपराध के लिए उपबंधित कारावास की दीर्घतम अवधि की एक-चौथाई तक हो सकेगी या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।

दृष्टांत -

क यह जानते हुए कि ख ने य की हत्या की है ख को दण्ड से प्रतिच्छादित करने के आशय से मृत शरीर को छिपाने में ख की सहायता करता है। क सात वर्ष के लिए दोनों में से किसी भांति के कारावास से, और जुर्माने से भी दण्डनीय है।

202. इत्तिला देने के लिए आबद्ध व्यक्ति द्वारा अपराध की इत्तिला देने का साशय लोप -

जो कोई यह जानते हुए या यह विश्वास करने का कारण रखते हुए कि कोई अपराध किया गया है, उस अपराध के बारे में कोई इत्तिला जिसे देने के लिए वह वैध रूप से आबद्ध हो, देने का साशय लोप करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि छह मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा। 

203. किए गए अपराध के विषय में मिथ्या इत्तिला देना -

जो कोई यह जानते हुए, या यह विश्वास करने का कारण रखते हुए, कि कोई अपराध किया गया है उस अपराध के बारे में कोई ऐसी इत्तिला देगा, जिसके मिथ्या होने का उसे ज्ञान या विश्वास हो, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से या दोनों से, दण्डित या जाएगा। 

स्पष्टीकरण - धारा 201 और 202 में और इस धारा में “अपराध' शब्द के अन्तर्गत भारत के बाहर किसी स्थान पर किया गया कोई भी ऐसा कार्य आता है, जो यदि भारत में किया जाता तो निम्नलिखित धारा अर्थात् 302, 304, 382, 392, 393, 394, 395, 396, 397, 398, 399, 402, 435, 436, 449, 450, 457, 458,459 तथा 460 में से किसी भी धारा के अधीन दण्डनीय होता । 

204. साक्ष्य के रूप में किसी दस्तावेज या इलेक्ट्रानिक अभिलेख का पेश किया जाना निवारित करने के लिए उसको नष्ट करना -

जो कोई किसी ऐसे दस्तावेज या इलेक्ट्रानिक अभिलेखों को छिपाएगा या नष्ट करेगा जिसे किसी न्यायालय में या ऐसी कार्यवाही में, जो किसी लोक-सेवक के समक्ष उसकी वैसी हैसियत में विधिपूर्वक की गई है, साक्ष्य के रूप में पेश करने के लिए उसे विधिपूर्वक विवश किया जा सके, या पूर्वोक्त न्यायालय या लोक-सेवक के समक्ष साक्ष्य के रूप में पेश किए जाने या उपयोग में लाए जाने से निवारित करने के आशय से, या उस प्रयोजन के लिए उस दस्तावेज या इलेक्ट्रानिक अभिलेख, को पेश करने को उसे विधिपूर्वक समनित या अपेक्षित किए जाने के पश्चात् ऐसी संपूर्ण दस्तावेज या इलेक्ट्रानिक अभिलेख को, या उसके किसी भाग को मिटाएगा, या ऐसा बनाएगा, जो पढ़ा न जा सके, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।

205. वाद या अभियोजन में किसी कार्य या कार्यवाही के प्रयोजन से मिथ्या प्रतिरूपण -

जो कोई किसी दूसरे का मिथ्या प्रतिरूपण करेगा और ऐसे धरे हुए रूप में किसी वाद या आपराधिक अभियोजन में कोई स्वीकृति या कथन करेगा, या दावे की संस्वीकृति करेगा, या कोई आदेशिका निकलवाएगा या जमानतदार या प्रतिभू बनेगा, या कोई भी अन्य कार्य करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के करावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।

206. संपत्ति को समपहरण किए जाने में या निष्पादन में अभिगृहीत किए जाने से निवारित करने के लिए उसे कपटपूर्वक हटाना या छिपाना -

जो कोई किसी संपत्ति को, या उसमें के किसी हित को इस आशय से कपटपूर्वक हटाएगा, छिपाएगा या किसी व्यक्ति को अन्तरित या परिदत्त करेगा, कि तदुद्वारा वह उस संपत्ति या उसमें के किसी हित का ऐसे दण्डादेश के अधीन जो न्यायालय या किसी अन्य सक्षम प्राधिकारी द्वारा सुनाया जा चुका है या जिसके बारे में वह जानता है कि न्यायालय या अन्य सक्षम प्राधिकारी द्वारा उसका सुनाया जाना संभाव्य है, समपहरण के रूप में या जुर्माने के चुकाने के लिए लिया जाना या ऐसी डिक्री या आदेश के निष्पादन में, जो सिविल वाद  में न्यायालय द्वारा दिया गया हो या जिसके बारे में वह जानता है कि सिविल वाद में न्यायालय द्वारा उसका सुनाया जाना संभाव्य है, लिया जाना निवारित करे, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।

207. संपत्ति पर उसके समपहरण किए जाने में या निष्पादन में अभिगृहीत किए जाने से निवारित करने के लिए कपटपूर्वक दावा -

जो कोई किसी संपत्ति को, या उसमें के किसी हित को, यह जानते हुए कि ऐसी संपत्ति या हित पर उसका कोई अधिकार या अधिकारपूर्ण दावा नहीं है, कपटपूर्वक प्रतिगृहीत करेगा, प्राप्त करेगा, या उस पर दावा करेगा अथवा किसी संपत्ति या उसमें किसी हित पर किसी अधिकार के बारे में इस आशय से प्रवंचना करेगा कि तद्द्वारा वह उस संपत्ति या उसमें के हित का ऐसे दण्डादेश के अधीन, जो न्यायालय या किसी अन्य सक्षम प्राधिकारी द्वारा सुनाया जा चुका है या, जिसके बारे में वह जानता है कि न्यायालय या किसी अन्य सक्षम प्राधिकारी द्वारा उसका सुनाया जाना संभाव्य है, समपहरण के रूप में या जुर्माने के चुकाने के लिये लिया जाना, या ऐसी डिक्री या आदेश के निष्पादन में, जो सिविल वाद में न्यायालय द्वारा दिया गया हो, या जिसके बारे में वह जानता है कि सिविल वाद में न्यायालय द्वारा उसका दिया जाना संभाव्य है, लिया जाना निवारित करे, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।

208. ऐसी राशि के लिए जो शोध्य न हो कपटपूर्वक डिक्री होने देना सहन करना -

जो कोई किसी व्यक्ति के बाद में ऐसी राशि के लिए, जो ऐसे व्यक्ति को शोध्य न हो या शोध्य राशि से अधिक हो, या किसी ऐसी संपत्ति या संपत्ति में के हित के लिए, जिसका ऐसा व्यक्ति हकदार न हो, अपने विरुद्ध कोई डिक्री या आदेश कपटपूर्वक पारित करवाएगा, या पारित किया जाना सहन करेगा अथवा किसी डिक्री या आदेश को उसके तुष्ट कर दिए जाने के पश्चात् या किसी ऐसी बात के लिए, जिसके विषय में उस डिक्री या आदेश की तुष्टि कर दी गई हो, अपने विरुद्ध कपटपूर्वक निष्पादित करवाएगा या किया जाना सहन करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।

दृष्टांत -

य के विरुद्ध एक वाद क संस्थित करता है। य यह संभाव्य जानते हुए कि क उसके विरुद्ध डिक्री अभिप्राप्त कर लेगा, ख के वाद में, जिसका उसके विरुद्ध कोई न्यायसंगत दावा नहीं है, अधिक रकम के लिए अपने विरुद्ध निर्णय किया जाना इसलिए कपटपूर्वक सहन करता है कि ख स्वयं अपने लिए या य के फायदे के लिए य की संपत्ति के किसी ऐसे विक्रय के आगमों का अंश ग्रहण करे, जो क की डिक्री के अधीन किया जाए। य ने इस धारा के अधीन अपराध किया है।

209. बेईमानी से न्यायालय में मिथ्या दावा करना -

जो कोई कपटपूर्वक या बेईमानी से या किसी व्यक्ति को क्षति या क्षोभ कारित करने के आशय से न्यायालय में कोई ऐसा दावा करेगा, जिसका मिथ्या होना वह जानता हो, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा, और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।

210. ऐसी राशि के लिए जो शोध्य नहीं है कपटपूर्वक डिक्री अभिप्राप्त करना -

जो कोई किसी व्यक्ति के विरुद्ध ऐसी राशि के लिए, जो शोध्य न हो, या जो शोध्य राशि से अधिक हो, या किसी संपत्ति या संपत्ति में के हित के लिए, जिसका वह हकदार न हो, डिक्री या आदेश कपटपूर्वक अभिप्राप्त कर लेगा या किसी डिक्री या आदेश को, उसके तुष्ट कर दिए जाने के पश्चात् या ऐसी बात के लिए, जिसके विषय में उस डिक्री या आदेश की तुष्टि कर दी गई हो, किसी व्यक्ति के विरुद्ध कपटपूर्वक निष्पादित करवाएगा या अपने नाम में कपटपूर्वक ऐसा कोई कार्य किया जाना सहन करेगा या किए जाने की अनुज्ञा देगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।

211. क्षति करने के आशय से अपराध का मिथ्या आरोप -

जो कोई किसी व्यक्ति को यह जानते हुए कि उस व्यक्ति के विरुद्ध ऐसी कार्यवाही या आरोप के लिए कोई न्यायसंगत या विधिपूर्ण आधार नहीं है क्षति कारित करने के आशय से उस व्यक्ति के विरुद्ध कोई दाण्डिक कार्यवाही संस्थित करेगा या करवाएगा या उस व्यक्ति पर मिथ्या आरोप लगाएगा कि उसने अपराध किया है वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा; तथा यदि ऐसा दाण्डिक कार्यवाही मृत्यु, आजीवन कारावास या सात वर्ष या उससे अधिक के कारावास से दण्डनीय अपराध के मिथ्या आरोप पर संस्थित की जाए, तो वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।

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राज्य संशोधन

छत्तीसगढ़ - धारा 211 में निम्मलिखित परन्तुक अंत:स्थापित किया जाए, अर्थात्‌ :-

परन्तु यह कि, यदि ऐसी दांडिक कार्यवाही धारा 354, धारा 354क, धारा 354ख, धारा 354ग, धारा 354घ, धारा 3545, धारा 376ख, धारा 376ग, धारा 376च, धारा 509, धारा 509क या धारा 509ख से दंडनीय अपराध के मिथ्या आरोप पर संस्थित की जाए, तो दोनों में से किसी भांति के कारावास से जो तीन वर्ष से कम का नहीं होगा परन्तु जो पांच वर्ष तक का हो सकेगा और जुमनि से भी दंडनीय होगा।''

देखे दण्ड विधि (छ.ग. संशोधन) अधिनियम, 2013 (क्र. 25 सन्‌ 2015), धारा 2 (दिनांक 21-7-2015 से प्रभावशील) । छ.ग. राजपत्र (असाधारण) दिनांक 21-7-2015 पृष्ठ 777-778(9) पर प्रकाशित ।]

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212. अपराधी को संश्रय देना -

जबकि कोई अपराध किया जा चुका हो, तब जो कोई किसी ऐसे व्यक्ति को, जिसके बारे में वह जानता हो या विश्वास करने का कारण रखता हो कि वह अपराधी है, वैध दण्ड से प्रतिच्छादित करने के आशय से संश्रय देगा या छिपाएगा; 

यदि अपराध मृत्यु से दण्डनीय हो - यदि वह अपराध मृत्यु से दण्डनीय हो तो वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि पांच वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा; |

यदि अपराध आजीवन कारावास से या कारावास से दण्डनीय हो - और यदि वह अपराध आजीवन कारावास से, या दस वर्ष तक के कारावास से, दण्डनीय हो, तो वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा; 

और यदि वह अपराध एक वर्ष तक, न कि दस वर्ष तक के कारावास से दण्डनीय हो, तो वह उसे अपराध के लिए उपबंधित भांति के कारावास से, जिसकी अवधि उस अपराध के लिए उपबंधित कारावास की दीर्घतम अवधि की एक चौथाई तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा। इस धारा में “अपराध' के अन्तर्गत भारत से बाहर किसी स्थान पर किया गया ऐसा कार्य आता है, जो यदि भारत में किया जाता तो निम्नलिखित धारा अर्थात्, 302, 304, 382, 392, 393, 394, 395, 396, 397, 398, 399, 402, 435, 436,449, 450, 457,458,459 और 460 में से किसी धारा के अधीन दण्डनीय होता और हर एक ऐसा कार्य इस धारा के प्रयोजनों के लिए ऐसे दण्डनीय समझा जाएगा, मानो अभियुक्त व्यक्ति उसे भारत में करने का दोषी था।

अपवाद - इस उपबंध का विस्तार किसी ऐसे मामले पर नहीं है जिसमें अपराधी को संश्रय देना या छिपाना उसके पति या पत्नी द्वारा हो।

दृष्टांत -

क यह जानते हुए कि ख ने डकैती की है, ख को वैध दण्ड से प्रतिच्छादित करने के लिए जानते हुए छिपा लेता है। यहां ख आजीवन कारावास से दण्डनीय है, क तीन वर्ष से अनधिक अवधि के लिए दोनों में से किसी भांति के कारावास से दण्डनीय है और जुर्माने से भी दण्डनीय है।

213. अपराधी को दण्ड से प्रतिच्छादित करने के लिए उपहार आदि लेना -

जो कोई अपने या किसी अन्य व्यक्ति के लिए कोई परितोषण या अपने या किसी अन्य व्यक्ति के लिए किसी संपत्ति का प्रत्यास्थापन, किसी अपराध के छिपाने के लिए या किसी व्यक्ति को किसी अपराध के लिए वैध दण्ड से प्रतिच्छादित करने के लिए, या किसी व्यक्ति के विरुद्ध वैध दण्ड दिलाने के प्रयोजन से उसके विरुद्ध की जाने वाली कार्यवाही न करने के लिए, प्रतिफल प्रतिगृहीत करेगा या अभिप्राप्त करने का प्रयत्न करेगा या प्रतिगृहीत करने के लिए करार करेगा,

यदि अपराध मृत्यु से दण्डनीय हो - यदि वह अपराध मृत्यु से दण्डनीय हो, तो वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा, और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा; 

यदि आजीवन कारावास या कारावास से दण्डनीय हो - तथा यदि वह अपराध आजीवन कारावास या दस वर्ष तक के कारावास से दण्डनीय हो तो वह दोनों में से किसी भांति कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा, और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा;

तथा यदि वह अपराध दस वर्ष से कम तक के कारावास से दण्डनीय हो, तो वह उस अपराध के लिए उपबंधित भांति के कारावास से इतनी अवधि के लिए, जो उस अपराध के लिए उपबंधित कारावास की दीर्घतम अवधि की एक चौथाई-तक की हो सकेगी या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।

214. अपराधी के प्रतिच्छादन के प्रतिफलस्वरूप उपहार की प्रस्थापना या संपत्ति का प्रत्यावर्तन -

जो कोई किसी व्यक्ति को कोई अपराध उस व्यक्ति द्वारा छिपाए जाने के लिए या उस व्यक्ति द्वारा किसी व्यक्ति को किसी अपराध के लिए वैध दण्ड से प्रतिच्छादित किए जाने के लिए या उस व्यक्ति द्वारा किसी व्यक्ति को वैध दण्ड दिलाने के प्रयोजन से उसके विरुद्ध की जाने वाली कार्यवाही न की जाने के लिए प्रतिफलस्वरूप कोई परितोषण देगा या दिलाएगा या देने या दिलाने की प्रस्थापना या करार करेगा, या कोई संपत्ति प्रत्यावर्तित करेगा या कराएगा।

यदि अपराध मृत्यु से दण्डनीय हो - यदि वह अपराध मृत्यु से दण्डनीय हो, तो वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा, और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।

यदि आजीवन कारावास या कारावास से दण्डनीय हो - तथा यदि वह अपराध आजीवन कारावास से या दस वर्ष तक के कारावास से दण्डनीय हो, तो वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा, और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा;

तथा यदि वह अपराध दस वर्ष से कम के कारावास से दण्डनीय हो, तो वह उस अपराध के लिए उपबंधित भांति के कारावास से इतनी अवधि के लिए, जो उस अपराध के लिए उपबंधित कारावास की दीर्घतम अवधि की एक चौथाई तक की हो सकेगी या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।

अपवाद - धारा 213 और धारा 214 के उपबंधों का विस्तार किसी ऐसे मामले पर नहीं है, जिसमें कि अपराध का शमन विधिपूर्वक किया जा सकता है।

215. चोरी की संपत्ति इत्यादि के वापस लेने में सहायता करने के लिए उपहार लेना -

जो कोई किसी व्यक्ति की किसी ऐसी जंगम संपत्ति के वापस करा लेने में, जिससे इस संहिता के अधीन दण्डनीय किसी अपराध द्वारा वह व्यक्ति वंचित कर दिया गया हो, सहायता करने के बहाने या सहायता करने की बाबत कोई परितोषण लेगा या लेने का करार करेगा या लेने को सहमत होगा, वह, जब तक कि अपनी शक्ति में के सब साधनों को अपराधी को पकड़वाने के लिए और अपराध के लिए दोषसिद्ध कराने के लिए उपयोग में न लाए, दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से दण्डित किया जाएगा।

216. ऐसे अपराधी को संश्रय देना, जो अभिरक्षा से निकल भागा है या जिसको पकड़ने का आदेश दिया जा चुका है -

जब किसी अपराध के लिए दोषसिद्ध या आरोपित व्यक्ति उस अपराध के लिए वैध अभिरक्षा में होते हुए ऐसी अभिरक्षा से निकल भागे; 

अथवा जब कभी कोई लोक-सेवक ऐसे लोक-सेवक की विधिपूर्ण शक्तियों का प्रयोग करते हुए किसी अपराध के लिए किसी व्यक्ति को पकड़ने का आदेश दे, तब जो कोई ऐसे निकल भागने को या पकड़े जाने के आदेश को जानते हुए, उस व्यक्ति को पकड़ा जाना निवारित करने के आशय से उसे संश्रय देगा या छिपाएगा, वह निम्नलिखित प्रकार से दण्डित किया जाएगा, अर्थात् -

यदि अपराध मृत्यु से दण्डनीय हो - यदि वह अपराध, जिसके लिए वह व्यक्ति अभिरक्षा में था या पकड़े जाने के लिए आदेशित है, मृत्यु से दण्डनीय हो, तो वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा, और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा; 

यदि आजीवन कारावास या कारावास से दण्डनीय हो - यदि वह अपराध आजीवन कारावास से या दस वर्ष तक के कारावास से दण्डनीय हो, तो वह जुर्माने सहित या रहित दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा;

तथा यदि वह अपराध ऐसे कारावास से दण्डनीय हो, जो एक वर्ष तक का, न कि दस वर्ष तक का हो सकता है, तो वह उस अपराध के लिए उपबंधित भांति के कारावास से जिसकी अवधि उस अपराध के लिए उपबंधित कारावास की दीर्घतम अवधि की एक चौथाई तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से दण्डित किया जाएगा।

इस धारा में अपराध के अन्तर्गत कोई भी ऐसा कार्य या लोप भी आता है, जिसका कोई व्यक्ति भारत से बाहर दोषी होना अभिकथित हो, जो यदि वह भारत में उसका दोषी होता, तो अपराध के रूप में दण्डनीय होता और  जिसके लिए वह प्रत्यर्पण से संबंधित किसी विधि के अधीन  या अन्यथा भारत में पकड़े जाने या अभिरक्षा में निरुद्ध किए जाने के दायित्व के अधीन हो, और हर ऐसा कार्य या लोप इस धारा के प्रयोजनों के लिए ऐसे दण्डनीय समझा जाएगा, मानो अभियुक्त व्यक्ति भारत में उसका दोषी हुआ था।

अपवाद - इस उपबंध का विस्तार ऐसे मामले पर नहीं है, जिसमें संश्रय देना या छिपाना पकड़े जाने वाले व्यक्ति के पति या पत्नी द्वारा हो।

216 क. लुटेरों या डाकुओं को संश्रय देने के लिए शास्ति -

जो कोई यह जानते हुए या विश्वास करने का कारण रखते हुए कि कोई व्यक्ति लूट या डकैती हाल ही में करने वाले हैं या हाल ही में लूट या डकैती कर चुके हैं, उनको या उनमें से किसी को, ऐसी लूट या डकैती का किया जाना सुकर बनाने के, या उनको या उनमें से किसी को दण्ड से प्रतिच्छादित करने के आशय से संश्रय देगा, वह कठिन कारावास से, जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।

स्पष्टीकरण - इस धारा के प्रयोजनों के लिए यह तत्वहीन है कि लूट या डकैती भारत में करनी आशयित है या की जा चुकी है, या भारत से बाहर। 

अपवाद - इस उपबंध का विस्तार, ऐसे मामले पर नहीं है, जिसमें संश्रय देना या छिपाना अपराधी के पति या पत्नी द्वारा हो.

216 ख. धारा 212 और धारा 216क में “संश्रय” की परिभाषा -

भारतीय दण्ड संहिता (संशोधन) अधिनियम, 1942 (1942 का 8) की धारा 3 द्वारा निरसित

217. लोक-सेवक द्वारा किसी व्यक्ति को दण्ड से या किसी संपत्ति को समपहरण से बचाने के आशय से विधि के निदेश की अवज्ञा -

जो कोई लोक-सेवक होते हुए विधि के ऐसे किसी निदेश की, जो उस संबंध में हो कि उससे ऐसे लोक-सेवक के नाते किस ढंग का आचरण करना चाहिए, जानते हुए अवज्ञा किसी व्यक्ति को वैध दण्ड से बचाने के आशय से या संभाव्यतः तद्द्वारा बचाएगा यह जानते हुए अथवा उतने दण्ड की अपेक्षा, जिससे वह दण्डनीय है, तद्द्वारा कम दण्ड दिलवाएगा यह संभाव्य जानते हुए अथवा किसी संपत्ति को ऐसे समपहरण या किसी भार से, जिसके लिए वह संपत्ति विधि के द्वारा दायित्व के अधीन है बचाने के आशय से या संभाव्यतः तद्द्वारा बचाएगा यह जानते हुए करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।

218. किसी व्यक्ति को दण्ड से या किसी संपत्ति को समपहरण से बचाने के आशय से लोकसेवक द्वारा अशुद्ध अभिलेख या लेख की रचना -

जो कोई लोक-सेवक होते हुए और ऐसे लोक-सेवक के नाते कोई अभिलेख या अन्य लेख तैयार करने का भार रखते हुए, उस अभिलेख या लेख की इस प्रकार से रचना, जिसे वह जानता है कि अशुद्ध है लोक को या किसी व्यक्ति को हानि या क्षति कारित करने के आशय से या संभाव्यतः तद्द्वारा  कारित करेगा यह जानते हुए अथवा किसी व्यक्ति को वैध दण्ड से बचाने के आशय से या संभाव्यतः तद्द्वारा बचाएगा यह जानते हुए अथवा किसी संपत्ति के ऐसे समपहरण या अन्य भार से, जिसके दायित्व के अधीन वह संपत्ति विधि के अनुसार है, बचाने के आशय से या संभाव्यतः तद्द्वारा बचाएगा यह जानते हुए करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से दण्डित किया जाएगा।

219. न्यायिक कार्यवाही में विधि के प्रतिकूल रिपोर्ट आदि का लोक-सेवक द्वारा भ्रष्टतापूर्वक किया जाना -

जो कोई लोक-सेवक होते हुए, न्यायिक कार्यवाही के किसी प्रक्रम में कोई रिपोर्ट, आदेश, अधिमत या विनिश्चय जिसका विधि के प्रतिकूल होना वह जानता हो, भ्रष्टतापूर्वक या विद्वेषपूर्वक देगा, या सुनाएगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से दण्डित किया जाएगा।

220. प्राधिकार वाले व्यक्ति द्वारा जो यह जानता है कि वह विधि के प्रतिकूल कार्य कर रहा है विचारण के लिए या परिरोध करने के लिए सुपुर्दगी -

जो कोई किसी ऐसे पद पर होते हुए, जिससे व्यक्तियों को विचारण या परिरोध के लिए सुपुर्दगी करने का, या व्यक्तियों को परिरोध में रखने का उसे वैध प्राधिकार हो किसी व्यक्ति को उस प्राधिकार के प्रयोग में यह जानते हुए भ्रष्टतापूर्वक या विद्वेषपूर्वक विचारण या परिरोध के लिए सुपुर्द करेगा या परिरोध में रखेगा कि ऐसा करने में वह विधि के प्रतिकूल कार्य कर रहा है, वह दोनों में से किसी के भांति के कारावास से, जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी. या जुर्माने से, या दोनों से दण्डित किया जाएगा।

221. पकड़ने के लिए आबद्ध लोक-सेवक द्वारा पकड़ने का साशय लोप -

जो कोई ऐसा लोकसेवक होते हुए, जो किसी अपराध के लिए आरोपित या पकड़े जाने के दायित्व के अधीन किसी व्यक्ति को पकड़ने या परिरोध में रखने के लिए लोक-सेवक के नाते वैधरूप से आबद्ध है, ऐसे व्यक्ति को पकड़ने का साशय लोप करेगा या ऐसे परिरोध में से ऐसे व्यक्ति का निकल भागना साशय सहन करेगा या ऐसे व्यक्ति के निकल भागने में या निकल भागने के लिए प्रयत्न करने में साशय मदद करेगा, वह निम्नलिखित रूप से दण्डित किया जाएगा, अर्थात् :-

यदि परिरुद्ध व्यक्ति या जो व्यक्ति पकड़ा जाना चाहिए था वह मृत्यु से दण्डनीय अपराध के लिए आरोपित या पकड़े जाने के दायित्व के अधीन हो, तो वह जुर्माने सहित या रहित दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी, अथवा यदि परिरुद्ध व्यक्ति या जो व्यक्ति पकड़ा जाना चाहिए था वह आजीवन कारावास या दस वर्ष तक की अवधि के कारावास से दण्डनीय अपराध के लिए आरोपित या पकड़े जाने के दायित्व के अधीन हो, तो वह जुर्माने सहित या रहित दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी, अथवा

यदि परिरुद्ध व्यक्ति या जो पकड़ा जाना चाहिए था वह दस वर्ष से कम की अवधि के लिए कारावास से दण्डनीय अपराध के लिए आरोपित या पकड़े जाने के दायित्व के अधीन हो, तो वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से।

222. दण्डादेश के अधीन या विधिपूर्वक सुपुर्द किए गए व्यक्ति को पकड़ने के लिए आबद्ध लोक-सेवक द्वारा पकड़ने का साशय लोप -

जो कोई ऐसा लोक-सेवक होते हुए, जो किसी अपराध के लिए न्यायालय के दण्डादेश के अधीन या अभिरक्षा में रखे जाने के लिए विधिपूर्वक सुपुर्द किए गए किसी व्यक्ति को पकड़ने या परिरोध में रखने के लिए ऐसे लोक-सेवक के नाते वैध रूप से आबद्ध है, ऐसे व्यक्ति को पकड़ने का साशय लोप करेगा, या ऐसे परिरोध में से साशय ऐसे व्यक्ति का निकल भागना सहन करेगा या ऐसे व्यक्ति के निकल भागने में या निकल भागने के लिए प्रयत्न करने में साशय मदद करेगा, वह निम्नलिखित रूप से दण्डित किया जाएगा, अर्थात् :-

यदि परिरुद्ध व्यक्ति या जो व्यक्ति पकड़ा जाना चाहिए था, वह मृत्यु दण्डादेश के अधीन हो, तो वह जुर्माने सहित या रहित आजीवन कारावास से, या दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि चौदह वर्ष तक की हो सकेगी; अथवा 

यदि परिरुद्ध व्यक्ति या जो व्यक्ति पकड़ा जाना चाहिए था वह न्यायालय के दण्डादेश से, या ऐसे दण्डादेश से लघुकरण के आधार पर आजीवन कारावास या दस वर्ष तक की या उससे अधिक की अवधि के लिए कारावास के अध्यधीन हो, तो वह जुर्माने सहित या रहित, दोनों में से किसी भांति के कारावास से जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी, अथवा  

यदि परिरुद्ध व्यक्ति या जो व्यक्ति पकड़ा जाना चाहिए था वह न्यायालय के दण्डादेश से दस वर्ष से कम की अवधि के लिए कारावास के अध्यधीन हो या यदि वह व्यक्ति अभिरक्षा में रखे जाने के लिए विधिपूर्वक सुपुर्द किया गया हो, तो वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से।

223. लोक-सेवक द्वारा उपेक्षा से परिरोध या अभिरक्षा में से निकल भागना सहन करना -

जो कोई ऐसा लोक-सेवक होते हुए, जो अपराध के लिए आरोपित या दोषसिद्ध या अभिरक्षा में रखे जाने के लिए विधिपूर्वक सुपुर्द किए गए किसी व्यक्ति को परिरोध में रखने के लिए ऐसे लोक-सेवक के नाते वैध रूप से आबद्ध हो, ऐसे व्यक्ति का परिरोध में से निकल भागना उपेक्षा से सहन करेगा, वह सादा कारावास से, जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से दण्डित किया जाएगा।

224. किसी व्यक्ति द्वारा विधि के अनुसार अपने पकड़े जाने में प्रतिरोध या बाधा -

जो कोई किसी ऐसे अपराध के लिए, जिसका उस पर आरोप हो, या जिसके लिए वह दोषसिद्ध किया गया हो, विधि के अनुसार अपने पकड़े जाने में साशय प्रतिरोध करेगा, या अवैध बाधा डालेगा, या किसी अभिरक्षा से, जिसमें वह किसी ऐसे अपराध के लिए विधिपूर्वक निरुद्ध हो, निकल भागेगा, या निकल भागने का प्रयत्न करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से दण्डित किया जाएगा।

स्पष्टीकरण - इस धारा में उपबंधित दण्ड उस दण्ड के अतिरिक्त है जिससे वह व्यक्ति, जिसे पकड़ा जाना हो, या अभिरक्षा में निरुद्ध रखा जाना हो, उस अपराध के लिए दण्डनीय था, जिसका उस पर आरोप लगाया गया था या जिसके लिए वह दोषसिद्ध किया गया था।

225. किसी अन्य व्यक्ति के विधि के अनुसार पकड़े जाने में प्रतिरोध या बाधा -

जो कोई किसी अपराध के लिए किसी दूसरे व्यक्ति के विधि के अनुसार पकड़े जाने में साशय प्रतिरोध करेगा या अवैध बाधा डालेगा, या किसी दूसरे व्यक्ति को किसी ऐसी अभिरक्षा से, जिसमें वह व्यक्ति किसी अपराध के लिए विधिपूर्वक निरुद्ध हो, साशय छुड़ाएगा या छुड़ाने का प्रयत्न करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी या जुर्माने से, या दोनों से दण्डित किया जाएगा;

अथवा यदि उस व्यक्ति पर, जिसे पकड़ा जाना, हो या जो छुड़ाया गया हो, या जिसके छुड़ाने का प्रयत्न किया गया हो, आजीवन कारावास, से या दस वर्ष तक की अवधि के कारावास से, दण्डनीय अपराध का आरोप हो या वह उसके लिए पकड़े जाने के दायित्व के अधीन हो, तो वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा;

अथवा यदि उस व्यक्ति पर, जिसे पकड़ा जाना हो या जो छुड़ाया गया हो, या जिसके छुड़ाने का प्रयत्न किया गया हो, मृत्यु दण्ड से दण्डनीय अपराध का आरोप हो या वह उसके लिए पकड़े जाने के दायित्व के अधीन हो तो, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।

अथवा यदि वह व्यक्ति जिसे पकड़ा जाना हो या जो छुड़ाया गया हो, या जिसके छुड़ाने का प्रयत्न किया गया हो, किसी न्यायालय के दण्डादेश के अधीन, या वह ऐसे दण्डादेश के लघुकरण के आधार पर आजीवन कारावास या दस वर्ष या उससे अधिक अवधि के कारावास से दण्डनीय हो, तो वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।

अथवा यदि वह व्यक्ति, जिसे पकड़ा जाना हो, या जो छुड़ाया गया हो या जिसके छुड़ाने का प्रयत्न किया गया हो, मृत्यु दण्डादेश के अधीन हो, तो वह आजीवन कारावास से, या दोनों में से किसी भांति के कारावास से, इतनी अवधि के लिए जो दस वर्ष से अनधिक है, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।

225 क, उन दशाओं में जिनके लिए अन्यथा उपबंध नहीं है लोक-सेवक द्वारा पकड़ने का लोप या निकल भागना सहन करना -

जो कोई ऐसा लोक-सेवक होते हुए जो किसी व्यक्ति को पकड़ने या परिरोध में रखने के लिए लोक-सेवक के नाते वैध रूप से आबद्ध हो उस व्यक्ति को किसी ऐसी दशा में, जिसके लिए धारा 221, धारा 222 या धारा 223 अथवा किसी अन्य तत्समय प्रवृत्त विधि में कोई उपबंध नहीं है, पकड़ने का लोप करेगा या परिरोध में से निकल भागना सहन करेगा -

(क) यदि वह ऐसा साशय करेगा, तो वह दोनों में से, किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, तथा

(ख) यदि वह ऐसा उपेक्षापूर्वक करेगा तो वह सादा कारावास से, जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।

225 ख. अन्यथा अनुपबंधित दशाओं में विधिपूर्वक पकड़ने में प्रतिरोध या बाधा या निकल भागना या छुड़ाना -

जो कोई स्वयं अपने या किसी अन्य व्यक्ति के विधिपूर्वक पकड़े जाने में साशय कोई प्रतिरोध करेगा या अवैध बाधा डालेगा या किसी अभिरक्षा में से, जिसमें वह विधिपूर्वक निरुद्ध हो, निकल भागेगा या निकल भागने का प्रयत्न करेगा या किसी अन्य व्यक्ति को ऐसी अभिरक्षा में से, जिसमें वह व्यक्ति विधिपूर्वक निरुद्ध हो, छुड़ाएगा या छुड़ाने का प्रयत्न करेगा, वह किसी ऐसी दशा में, जिसके लिए धारा 224 या धारा 225 या किसी अन्य तत्समय प्रवृत्त विधि में उपबंध नहीं है, दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि छह मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।

226. निर्वासन से विधिविरुद्ध वापसी -

दण्ड प्रक्रिया संहिता (संशोधन) अधिनियम, 1955 (1955 का 26) की धारा 117 और अनुसूची द्वारा (1 जनवरी, 1956) से निरसित ।

227. दण्ड के परिहार की शर्त का अतिक्रमण -

जो कोई दण्ड का सशर्त परिहार प्रतिगृहीत कर लेने पर किसी शर्त का जिस पर ऐसा परिहार दिया गया था, जानते हुए अतिक्रमण करेगा, यदि वह उस दण्ड का, जिसके लिए वह मूलतः दण्डादिष्ट किया गया था, कोई भाग पहले ही न भोग चुका हो, तो वह दण्ड से और यदि वह उस दण्ड का कोई भाग भोग चुका हो, तो वह उस दण्ड के उतने भाग से, जितने को वह पहले ही न भोग चुका हो, दण्डित किया जाएगा।

228. न्यायिक कार्यवाही में बैठे हुए, लोक-सेवक का साशय अपमान या उसके कार्य में विघ्न -

जो कोई किसी लोक-सेवक का उस समय, जबकि ऐसा लोक-सेवक न्यायिक कार्यवाही के किसी प्रक्रम में बैठा हुआ हो, साशय कोई अपमान करेगा या उसके कार्य में कोई विघ्न डालेगा, वह सादा कारावास से, जिसकी अवधि छह मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो एक हजार रुपए तक का हो सकेगा, या दोनों से दण्डित किया जाएगा।

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राज्य संशोधन

मध्यप्रदेश एवं छत्तीसगढ़ - धारा 228 के तहत अपराध संज्ञेय है। [देखें अधिसूचना क्रमांक 3320 5-एफ. क्र. 6-59-74-B-XXI दिनांक 19-11-1975। म.प्र. राजपत्र, भाग 1, दिनांक 12-3-1976 पृष्ठ 473 पर प्रकाशित]

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228 क, कतिपय अपराधों आदि से पीड़ित व्यक्ति की पहचान का प्रकटीकरण -

(1) जो कोई किसी नाम या अन्य बात को, जिससे किसी ऐसे व्यक्ति की (जिसे धारा में इसके पश्चात् पीड़ित व्यक्ति कहा गया है) पहचान हो सकती है, जिसके विरुद्ध धारा 376, " धारा 376क, धारा 376 कख, धारा 376 ख, धारा 376 ग, धारा 376 घ, धारा 376 घक, धारा 376 घख" [क्रिमिनल लॉ (संशोधन) अधिनियम, 2018, दिनांक – 11 अगस्त 2018 द्वारा प्रतिस्थापित] या धारा 376ङ के अधीन किसी अपराध का किया जाना अभिकथित है या किया गया पाया गया है, मुद्रित या प्रकाशित करेगा वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दो वर्ष की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।

(2) उपधारा (1) की किसी भी बात का विस्तार किसी नाम या अन्य बात के मुद्रण या प्रकाशन पर, यदि उससे पीड़ित व्यक्ति की पहचान हो सकती है, तब नहीं होता है जब ऐसा मुद्रण या प्रकाशन -

(क) पुलिस थाने के भारसाधक अधिकारी के या ऐसे अपराध का अन्वेषण करने वाले पुलिस अधिकारी के, जो ऐसे अन्वेषण के प्रयोजन के लिए सद्भावपूर्वक कार्य करता है, द्वारा या उसके लिखित आदेश के अधीन किया जाता है; या

(ख) पीड़ित व्यक्ति द्वारा या उसके लिखित प्राधिकार से किया जाता है; या

(ग) जहां पीड़ित व्यक्ति की मृत्यु हो चुकी है अथवा वह अवयस्क या विकृतचित्त है वहां, पीड़ित व्यक्ति के निकट संबंधी द्वारा या उसके लिखित प्राधिकार से किया जाता है:

परन्तु निकट संबंधी द्वारा कोई ऐसा प्राधिकार किसी मान्यता प्राप्त कल्याण संस्था या संगठन के अध्यक्ष या सचिव से, चाहे उसका जो भी नाम हो, भिन्न किसी अन्य व्यक्ति को नहीं दिया जाएगा। 

स्पष्टीकरण - इस उपधारा के प्रयोजनों के लिए, मान्यता प्राप्त कल्याण संस्था या संगठन से केन्द्रीय या राज्य सरकार द्वारा इस उपधारा के प्रयोजनों के लिए मान्यता प्राप्त कोई समाज कल्याण संस्था या संगठन अभिप्रेत है।

(3) जो कोई उपधारा (1) में निर्दिष्ट किसी अपराध की बाबत किसी न्यायालय के समक्ष किसी कार्यवाही के संबंध में कोई बात, उस न्यायालय की पूर्व अनुज्ञा के बिना मुद्रित या प्रकाशित करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।

स्पष्टीकरण - किसी उच्च न्यायालय या उच्चतम न्यायालय के निर्णय का मुद्रण या प्रकाशन इस धारा के अर्थ में अपराध की कोटि में नहीं आता है।

229. जूरी सदस्य या असेसर का प्रतिरूपण -

जो कोई किसी मामले में प्रतिरूपण द्वारा या अन्यथा अपने को यह जानते हुए जूरी सदस्य या असेसर के रूप में तालिकांकित, पेनलित या गृहीतशपथ साशय कराएगा या होने देगा जानते हुए सहन करेगा कि वह इस प्रकार तालिकांकित, पेनलित या गृहीतशपथ होने का विधि द्वारा हकदार नहीं है या यह जानते हुए कि वह इस प्रकार तालिकांकित, पेनलित या गृहीतशपथ विधि के प्रतिकूल हुआ है ऐसे जूरी में या ऐसे असेसर के रूप में स्वेच्छया सेवा करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।

229 क. जमानत या बंध पत्र पर छोड़े गए व्यक्ति द्वारा न्यायालय में हाजिर होने में असफलता -

जो कोई, किसी अपराध से आरोपित किए जाने पर और जमानत पर या अपने बन्धपत्र पर छोड़ दिए जाने पर जमानत या बन्धपत्र के निबन्धनों के अनुसार न्यायालय में पर्याप्त कारणों के बिना हाजिर होने में (वह साबित करने का भार उस पर होगा) असफल रहेगा वह दोनों में से किसी भाँति के कारावास से, जिसकी अवधि एक वर्ष तक की हो सकेगी या जुर्माने से, या दोनों से दण्डित किया जाएगा।

स्पष्टीकरण - इस धारा के अधीन दण्ड -

(क) उस दण्ड के अतिरिक्त है, जिसके लिए अपराधी उस अपराध के लिए जिसके लिए उसे आरोपित किया गया है, दोषसिद्धि पर दायी होगा; और

(ख) न्यायालय की बन्धपत्र के समपहरण का आदेश करने की शक्ति पर प्रतिकूल प्रभाव डालने वाला नहीं है।

अध्याय 12

सिक्को और सरकारी स्टाम्पो से सम्बंधित अपराधो के विषय में

230. 'सिक्का' की परिभाषा -

सिक्का, तत्समय धन के रूप में उपयोग में लाई जा रही और इस प्रकार उपयोग में लाए जाने के लिए किसी राज्य या संपूर्ण प्रभुत्वसंपन्न शक्ति के प्राधिकार द्वारा, स्टांपित और प्रचालित धातु है।

भारतीय सिक्का - भारतीय सिक्का धन के रूप में उपयोग में लाए जाने के लिए भारत सरकार के प्राधिकार द्वारा स्टांपित और प्रचालित धातु है; और इस प्रकार स्टांपित और प्रचालित धातु इस अध्याय के प्रयोजनों के लिए भारतीय सिक्का बनी रहेगी, यद्यपि धन के रूप में उसका उपयोग में लाया जाना बंद हो गया हो।

दृष्टांत -

(क) कौड़ियाँ सिक्के नहीं हैं।

(ख) अस्टांपित तांबे के टुकड़े, यद्यपि धन के रूप में उपयोग में लाए जाते हैं सिक्के नहीं हैं। 

(ग) पदक सिक्के नहीं हैं, क्योंकि वे धन के रूप में उपयोग में लाए जाने के लिए आशयित नहीं हैं। 

(घ) जिस सिक्के का नाम कंपनी रुपया है, वह भारतीय सिक्का है।

(ङ) “फरुखाबाद रुपया” जो धन के रूप में भारत सरकार के प्राधिकार के अधीन पहले कभी उपयोग में लाया जाता था, भारतीय सिक्का है, यद्यपि वह अब इस प्रकार उपयोग में नहीं लाया जाता है।

231. सिक्के का कूटकरण -

जो कोई सिक्के का कूटकरण करेगा या जानते हुए सिक्के के कूटकरण की प्रक्रिया के किसी भाग को करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।

स्पष्टीकरण - जो व्यक्ति असली सिक्के को किसी भिन्न सिक्के के जैसा दिखलाई देने वाला इस आशय से बनाता है कि प्रवंचना की जाए या यह संभाव्य जानते हुए बनाता है कि एतद्द्वारा प्रवंचना की जाएगी, वह यह अपराध करता है।

232. भारतीय सिक्के का कूटकरण -

जो कोई भारतीय सिक्के का कूटकरण करेगा या जानते हुए भारतीय सिक्के के कूटकरण की प्रक्रिया के किसी भाग को करेगा, वह आजीवन कारावास से, या दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।

233. सिक्के के कूटकरण के लिए उपकरण बनाना या बेचना -

जो कोई किसी डाई या उपकरण को सिक्के के कूटकरण के लिए उपयोग में लाए जाने के प्रयोजन, से या यह जानते हुए या यह विश्वास करने का कारण रखते हुए कि वह सिक्के के कूटकरण में उपयोग में लाए जाने के लिए आशयित है, बनाएगा या सुधारेगा या बनाने या सुधारने की प्रक्रिया के किसी भाग को करेगा, अथवा खरीदेगा, बेचेगा या व्ययनित करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।

234. भारतीय सिक्के के कूटकरण के लिए उपकरण बनाना या बेचना -

जो कोई किसी डाई या उपकरण को भारतीय सिक्के के कूटकरण के लिए उपयोग में लाए जाने के प्रयोजन से, या यह जानते हुए या यह विश्वास करने का कारण रखते हुए कि वह भारतीय सिक्के के कूटकरण में उपयोग में लाए जाने के लिए आशयित है, बनाएगा या सुधारेगा, या बनाने या सुधारने की प्रक्रिया के किसी भाग को करेगा अथवा खरीदेगा, बेचेगा या व्ययनित करेगा वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।

235. सिक्के के कूटकरण के लिए उपकरण या सामग्री उपयोग में लाने के प्रयोजन से उसे कब्जे में रखना -

जो कोई किसी उपकरण या सामग्री को सिक्के के कूटकरण में उपयोग में लाए जाने के प्रयोजन से या यह जानते हुए या यह विश्वास करने का कारण रखते हुए कि वह उस प्रयोजन के लिए उपयोग में लाए जाने के लिए आशयित है, अपने कब्जे में रखेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा;

यदि भारतीय सिक्का हो - और यदि कूटकरण किया जाने वाला सिक्का भारतीय सिक्का हो, तो वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।

236. भारत से बाहर सिक्के के कूटकरण का भारत में दुष्प्रेरण -

जो कोई भारत में होते हुए भारत से बाहर सिक्के के कूटकरण का दुष्प्रेरण करेगा, वह ऐसे दण्डित किया जाएगा, मानो उसने ऐसे सिक्के के कूटकरण का दुष्प्रेरण भारत में किया हो।

237. कूटकृत सिक्के का आयात या निर्यात -

जो कोई किसी कूटकृत सिक्के का यह जानते हुए या विश्वास करने का कारण रखते हुए कि वह कूटकृत है, भारत में आयात करेगा या भारत से निर्यात करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।

238. भारतीय सिक्के की कूटकृतियों का आयात या निर्यात -

जो कोई किसी कूटकृत सिक्के को, यह जानते हुए या विश्वास करने का कारण रखते हुए कि वह भारतीय सिक्के की कूटकृति है, भारत में आयात करेगा या भारत से निर्यात करेगा, वह आजीवन कारावास से, या दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा

239. सिक्के का परिदान जिसका कूटकृत होना कब्जे में आने के समय ज्ञात था -

जो कोई अपने पास कोई ऐसा कूटकृत सिक्का होते हुए जिसे वह उस समय, जब वह उसके कब्जे में आया था, जानता था कि वह कूटकृत है, कपटपूर्वक, या इस आशय से कि कपट किया जाए, उसे किसी व्यक्ति को परिदत्त करेगा या किसी व्यक्ति को उसे लेने के लिए उत्प्रेरित करने का प्रयत्न करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि पांच वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।

240. उस भारतीय सिक्के का परिदान जिसका कूटकृत होना कब्जे में आने के समय ज्ञात था -

जो कोई अपने पास कोई ऐसा कूटकृत सिक्का होते हुए, जो भारतीय सिक्के की कूटकृति हो और जिसे वह उस समय, जब वह उसके कब्जे में आया था, जानता था कि वह भारतीय सिक्के की कुटकृति है, कपटपूर्वक, या इस आशय से कि कपट किया जाए, उसे किसी व्यक्ति को परिदत्त करेगा या किसी व्यक्ति को उसे लेने के लिए उत्प्रेरित करने का प्रयत्न करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।

241. किसी सिक्के का असली सिक्के के रूप में परिदान, जिसका परिदान करने वाला उस समय जब वह उसके कब्जे में पहली बार आया था, कूटकृत होना नहीं जानता था -

जो कोई किसी दूसरे व्यक्ति को कोई ऐसा कूटकृत सिक्का, जिसका कूटकृत होना वह जानता हो, किन्तु जिसका वह उस समय, जब उसने उसे अपने कब्जे में लिया, कूटकृत होना नहीं जानता था, असली सिक्के के रूप में परिदान करेगा या किसी दूसरे व्यक्ति को उसे असली सिक्के के रूप में लेने के लिए उत्प्रेरित करने का प्रयत्न करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी, या इतने जुर्माने से, जो कूटकृत सिक्के के मूल्य के दस गुने तक का हो सकेगा, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।

दृष्टांत -

क, एक सिक्काकार, अपने सह-अपराधी ख को कूटकृत कंपनी के रुपये चलाने के लिए परिदत्त करता है। ख उन रुपयों को सिक्का चलाने वाले एक दूसरे व्यक्ति ग को बेच देता है, जो उन्हें कूटकृत जानते हुए खरीदता है। ग उन रुपयों को घ को, जो उनको कूटकृत न जानते हुए प्राप्त करता है, माल के बदले दे देता है। घ को रुपए प्राप्त होने के पश्चात् यह पता चलता है कि वे रुपए कूटकृत हैं, और वह उनको इस प्रकार चलाता है, मानो वे असली हों। यहां घ केवल इस धारा के अधीन दण्डनीय है, किन्तु ख और ग, यथास्थिति, धारा 239 या 240 के अधीन दण्डनीय है।

242. कूटकृत सिक्के पर ऐसे व्यक्ति का कब्जा जो उस समय उसका कूटकृत होना जानता था, जब वह उसके कब्जे में आया था -

जो कोई ऐसे कूटकृत सिक्के को, जिसे वह उस समय, जब वह सिक्का उसके कब्जे में आया था, जानता था कि वह कूटकृत है, कपटपूर्वक या इस आशय से कि कपट किया जाए, कब्जे में रखेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।

243. भारतीय सिक्के पर ऐसे व्यक्ति का कब्जा जो उसका कूटकृत होना उस समय जानता था जब वह उसके कब्जे में आया था -

जो कोई ऐसे कूटकृत सिक्के को, जो भारतीय सिक्के की कूटकृति है और जिसे वह उस समय, जब वह सिक्का उसके कब्जे में आया था, जानता था कि वह भारतीय सिक्के की कूटकृति है, कपटपूर्वक या इस आशय से कि कपट किया जाए, कब्जे में रखेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।

244. टकसाल में नियोजित व्यक्ति द्वारा सिक्के का उस वजन का या मिश्रण से भिन्न कारित किया जाना जो विधि द्वारा नियत है -

जो कोई भारत में विधिपूर्वक स्थापित किसी टकसाल में से नियोजित होते हुए इस आशय से कोई कार्य करेगा, या उस कार्य का लोप करेगा, जिसे करने के लिए वह वैध रूप से आबद्ध हो, कि उस टकसाल से प्रचालित कोई सिक्का विधि द्वारा नियत वजन या मिश्रण से भिन्न वजन या मिश्रण का कारित हो, वह  दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।

245. टकसाल से सिक्का बनाने का उपकरण विधिविरुद्ध रूप से लेना -

जो कोई भारत में विधिपूर्वक स्थापित किसी टकसाल में से सिक्का बनाने के किसी औजार या उपकरण को विधिपूर्ण प्राधिकार के बिना बाहर निकाल लाएगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।

246. कपटपूर्वक या बेईमानी से सिक्के का वजन कम करना या मिश्रण परिवर्तित करना -

जो कोई कपटपूर्वक या बेईमानी से किसी सिक्के पर कोई ऐसी क्रिया करेगा, जिससे उस सिक्के का वजन कम हो जाए, या उसका मिश्रण परिवर्तित हो जाए, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा। 

स्पष्टीकरण - वह व्यक्ति, जो सिक्के के किसी भाग को खुरच कर निकाल देता है, और उस गढ्ढे में कोई अन्य वस्तु भर देता है, उस सिक्के का मिश्रण परिवर्तित करता है।

247. कपटपूर्वक या बेईमानी से भारतीय सिक्के का वजन कम करना या मिश्रण परिवर्तित करना -

जो कोई कपटपूर्वक या बेईमानी से किसी भारतीय सिक्के पर कोई ऐसी क्रिया करेगा जिससे उस सिक्के का वजन कम हो जाए या उसका मिश्रण परिवर्तित हो जाए, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।

248. इस आशय से किसी सिक्के का रूप परिवर्तित करना कि वह भिन्न प्रकार के सिक्के के रूप में चल जाए -

जो कोई किसी सिक्के पर इस आशय से कि वह सिक्का भिन्न प्रकार के सिक्के के रूप में चल जाए, कोई ऐसी क्रिया करेगा, जिससे उस सिक्के का रूप परिवर्तित हो जाए, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।

249. इस आशय से भारतीय सिक्के का रूप परिवर्तित करना कि वह भिन्न प्रकार के सिक्के के रूप में चल जाए -

जो कोई किसी भारतीय सिक्के पर इस आशय से कि वह सिक्का भिन्न प्रकार के सिक्के के रूप में चल जाए, कोई ऐसी क्रिया करेगा जिससे उस सिक्के का रूप परिवर्तित हो जाए, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।

250. ऐसे सिक्के का परिदान जो इस ज्ञान के साथ कब्जे में आया हो कि उसे परिवर्तित किया गया है -

जो कोई किसी ऐसे सिक्के को कब्जे में रखते हुए, जिसके बारे में धारा 246 या 248 में परिभाषित अपराध किया गया हो, और जिसके बारे में उस समय, जब यह सिक्का उसके कब्जे में आया था, वह यह जानता था कि ऐसा अपराध उसके बारे में किया गया है, कपटपूर्वक या इस आशय से कि कपट किया जाए, किसी अन्य व्यक्ति को वह सिक्का परिदत्त करेगा, या किसी अन्य व्यक्ति को उसे लेने के लिए उत्प्रेरित करने का प्रयत्न करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि पांच वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा। GO toTOP

251. भारतीय सिक्के का परिदान जो इस ज्ञान के साथ कब्जे में आया हो कि उसे परिवर्तित किया गया है -

जो कोई किसी ऐसे सिक्के को कब्जे में रखते हुए, जिसके बारे में धारा 247 या 249 में परिभाषित अपराध किया गया हो, और जिसके बारे में उस समय, जब वह सिक्का उसके कब्जे में आया था, वह यह जानता था कि ऐसा अपराध उसके बारे में किया गया है, कपटपूर्वक, या इस आशय से कि कपट किया जाए, किसी अन्य व्यक्ति को वह सिक्का परिदत्त करेगा या किसी अन्य व्यक्ति को उसे लेने के लिए उत्प्रेरित करने का प्रयत्न करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।

252. ऐसे व्यक्ति द्वारा सिक्के पर कब्जा जो उसका परिवर्तित होना उस समय जानता था जब वह उसके कब्जे में आया -

जो कोई कपटपूर्वक, या इस आशय से कि कपट किया जाए, ऐसे सिक्के को कब्जे में रखेगा, जिसके बारे में धारा 246 या 248 में से किसी में परिभाषित अपराध किया गया हो और जो उस समय, जब वह सिक्का उसके कब्जे में आया था, यह जानता था कि उस सिक्के के बारे में ऐसा अपराध किया गया है, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।

253. ऐसे व्यक्ति द्वारा भारतीय सिक्के पर कब्जा जो उसका परिवर्तित होना उस समय जानता था जब वह उसके कब्जे में आया -

जो कोई कपटपूर्वक, या इस आशय से कि कपट किया जाए, ऐसे सिक्के को कब्जे में रखेगा, जिसके बारे में धारा 247 या 249 में से किसी में परिभाषित अपराध किया गया हो और जो उस समय, जब वह सिक्का उसके कब्जे में आया था, यह जानता था कि उस सिक्के के बारे में ऐसा अपराध किया गया है, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि पांच वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा। 

254. सिक्के का असली सिक्के के रूप में परिदान जिसका परिदान करने वाला उस समय जब वह उसके कब्जे में पहली बार आया था, परिवर्तित होना नहीं जानता था -

जो कोई किसी दूसरे व्यक्ति को कोई सिक्का, जिसके बारे में वह जानता हो कि कोई ऐसी क्रिया, जैसी धारा 246, 247,248, या 249 में वर्णित  है, की जा चुकी है, किन्तु जिसके बारे में वह उस समय, जब उसने उसे अपने कब्जे में लिया था, यह न जानता था कि उस पर ऐसी क्रिया कर दी गई है, असली के रूप में, या जिस प्रकार का वह है उससे भिन्न प्रकार के सिक्के के रूप में, परिदत्त करेगा या असली के रूप में, या जिस प्रकार का वह है उससे भिन्न प्रकार के सिक्के के रूप में, किसी व्यक्ति को उसे लेने के लिए उत्प्रेरित करने का प्रयत्न करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी, या इतने जुर्माने से, जो उस सिक्के की कीमत के दस गुने तक का हो सकेगा जिसके बदले में परिवर्तित सिक्का चलाया गया हो या चलाने का प्रयत्न किया गया हो, दण्डित किया जाएगा।

255. सरकारी स्टाम्प का कूटकरण -

जो कोई सरकार द्वारा राजस्व के प्रयोजन के लिए प्रचालित किसी स्टाम्प का कूटकरण करेगा या जानते हुए उसके कूटकरण की प्रक्रिया के किसी भाग को करेगा, वह आजीवन कारावास से, या दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।

स्पष्टीकरण - वह व्यक्ति इस अपराध को करता है, जो एक अभिधान के किसी असली स्टाम्प को भिन्न अभिधान के असली स्टाम्प के समान दिखाई देने वाला बना कर कूटकरण करता है।

256. सरकारी स्टाम्प के कूटकरण के लिए उपकरण या सामग्री कब्जे में रखना -

जो कोई सरकार के द्वारा राजस्व के प्रयोजन के लिए प्रचालित किसी स्टाम्प के कूटकरण के लिए उपयोग में लाए जाने के प्रयोजन से, या यह जानते हुए या यह विश्वास करने का कारण रखते हुए कि वह ऐसे कूटकरण के लिए उपयोग में लाए जाने के लिए आशयित है, कोई उपकरण या सामग्री अपने कब्जे में रखेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।

257. सरकारी स्टाम्प के कूटकरण के लिए उपकरण बनाना या बेचना -

जो कोई, सरकार द्वारा राजस्व के प्रयोजन के लिए प्रचालित किसी स्टाम्प के कूटकरण के लिए उपयोग में लाए जाने के प्रयोजन से, या यह जानते हुए या विश्वास करने का कारण रखते हुए कि वह ऐसे कूटकरण के लिए उपयोग में लाए जाने के लिए आशयित है, कोई उपकरण बनाएगा या बनाने की प्रक्रिया के किसी भाग को करेगा या ऐसे किसी उपकरण को खरीदेगा, या बेचेगा, या व्यनित करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।

258, कूटकृत सरकारी स्टाम्प का विक्रय -

जो कोई किसी स्टाम्प को यह जानते हुए या यह विश्वास करने को कारण रखते हुए बेचेगा या बेचने की प्रस्थापना करेगा कि वह सरकार द्वारा राजस्व के प्रयोजन के लिए प्रचालित किसी स्टाम्प की कूटकृति है, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।

259. सरकारी कूटकृत स्टाम्प को कब्जे में रखना -

जो कोई असली स्टाम्प के रूप में उपयोग में लाने के या व्ययन करने के आशय से, या इसलिए कि वह असली स्टाम्प के रूप में उपयोग में लाया जा सके, किसी ऐसे स्टाम्प को अपने कब्जे में रखेगा, जिसे वह जानता है कि वह सरकार द्वारा राजस्व के प्रयोजन के लिए प्रचालित स्टाम्प की कूटकृति है वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।

260. किसी सरकारी स्टाम्प को, कूटकृत जानते हुए उसे असली स्टाम्प के रूप में उपयोग में लाना -

जो कोई किसी ऐसे स्टाम्प को, जिसे वह जानता है कि वह सरकार द्वारा राजस्व के प्रयोजन के लिए प्रचालित स्टाम्प की कूटकृति है, असली स्टाम्प के रूप में उपयोग में लाएगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।

261. इस आशय से कि सरकार को हानि कारित हो, उस पदार्थ पर से जिस पर सरकारी स्टाम्प लगा हुआ है, लेख मिटाना या दस्तावेज से वह स्टाम्प हटाना जो उसके लिए उपयोग में लाया गया है -

जो कोई कपट पूर्वक, या इस आशय से कि सरकार को हानि कारित कि जाए, किसी पदार्थ पर से, जिस पर सरकार द्वारा राजस्व के प्रयोजन के लिए प्रचालित कोई स्टाम्प लगा हुआ हो, किसी लेख या दस्तावेज को, जिसके लिए ऐसा स्टाम्प उपयोग में लाया गया हो, हटाएगा या मिटाएगा या किसी लेख या दस्तावेज पर से उस लेख या दस्तावेज के लिए उपयोग में लाया गया स्टाम्प इसलिए हटाएगा कि ऐसा स्टाम्प किसी भिन्न लेख या दस्तावेज के लिए उपयोग में लाया जाए, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से दण्डित किया जाएगा।

262. ऐसे सरकारी स्टाम्प का उपयोग जिसके बारे में ज्ञात है कि उसका पहले उपयोग हो चुका है -

जो कोई कपट पूर्वक या इस आशय से कि सरकार को हानि कारित की जाए, सरकार द्वारा राजस्व के प्रयोजन के लिए प्रचालित किसी स्टाम्प को, जिसके बारे में वह जानता है कि वह स्टाम्प उससे पहले उपयोग में लाया जा चुका है, किसी प्रयोजन के लिए उपयोग में लाएगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।

263. स्टाम्प के उपयोग किए जा चुकने के द्योतक चिन्ह का छीलकर मिटाना -

जो कोई कपटपूर्वक, या इस आशय से कि सरकार को हानि कारित की जाए, सरकार द्वारा राजस्व के प्रयोजन के लिए प्रचालित स्टाम्प पर से उस चिन्ह को छीलकर मिटाएगा या हटाएगा, जो ऐसे स्टाम्प पर यह द्योतन करने के प्रयोजन से कि वह उपयोग में लाया जा चुका है, लगा हुआ या छापित हो या ऐसे किसी स्टाम्प को, जिस पर से ऐसा चिन्ह मिटाया या हटाया गया हो, जानते हुए अपने कब्जे में रखेगा या बेचेगा या व्ययनित करेगा, या ऐसे किसी स्टाम्प को, जो वह जानता है कि उपयोग में लाया जा चुका है, बेचेगा या व्ययनित करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से दण्डित किया जाएगा।

263 क, बनावटी स्टांपों का प्रतिषेध -

(1) जो कोई किसी बनावटी स्टाम्प को -

(क) बनाएगा, जानते हुए चलाएगा, उसका व्यौहार करेगा या उसका विक्रय करेगा या उसे डाक संबंधी किसी प्रयोजन के लिए जानते हुए उपयोग में लाएगा, अथवा

(ख) किसी विधिपूर्ण प्रतिहेतु के बिना अपने कब्जे में रखेगा, अथवा 

(ग) बनाने की किसी डाई, पट्टी, उपकरण या सामग्रियों को बनाएगा, या किसी विधिपूर्ण प्रतिहेतु के बिना अपने कब्जे में रखेगा, वह जुर्माने से, जो दो सौ रुपए तक का हो सकेगा, दण्डित किया जाएगा।  

(2) कोई ऐसा स्टाम्प, कोई बनावटी स्टाम्प, बनाने की डाई, पट्टी, उपकरण या सामग्रियां, जो किसी व्यक्ति के कब्जे में हों, अभिगृहीत की जा सकेंगी, और अभिगृहीत की जाए तो समपहृत कर ली जाएंगी।

(3) इस धारा में “बनावटी स्टाम्प” से ऐसा कोई स्टाम्प अभिप्रेत है, जिससे यह मिथ्या रूप से तात्पर्यत हो कि सरकार ने डाक महसूल की दर से द्योतन के प्रयोजन से उसे प्रचालित किया है या जो सरकार द्वारा उस प्रयोजन से प्रचालित किसी स्टाम्प की, कागज पर या अन्यथा, अनुलिपि, अनुकृति या समरूपण हो।

(4) इस धारा में और धारा 255 से लेकर धारा 263 तक में भी, जिनमें ये दोनों धाराएं भी समाविष्ट हैं, सरकार शब्द के अन्तर्गत, जब भी वह डाक महसूल की दर के द्योतन के प्रयोजन से प्रचालित किए गए किसी स्टाम्प के संसर्ग या निर्देशन में उपयोग किया गया है, धारा 17 में किसी बात के होते हुए भी, वह या वे व्यक्ति समझे जाएंगे जो भारत के किसी भाग में और हर मजेस्टी की डोमिनियनों के किसी भाग में, या किसी विदेश में भी, कार्यपालिका सरकार का प्रशासन चलाने के लिए विधि द्वारा प्राधिकृत हों।

अध्याय 13: बाटो और मापों से सम्बंधित अपराधों के विषय में

264. तोलने के लिए खोटे उपकरणों का कपटपूर्वक उपयोग -

जो कोई तोलने के लिए ऐसे किसी उपकरण का, जिसका खोटा होना वह जानता है, कपटपूर्वक उपयोग करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि एक वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।

265. खोटे बाट या माप का कपटपूर्वक उपयोग -

जो कोई किसी खोटे बाट का या लंबाई या धारिता के किसी खोटे माप का कपटपूर्वक उपयोग करेगा, या किसी बाट का, या लंबाई या धारिता के किसी माप का या उससे भिन्न बाट या माप के रूप में कपटपूर्वक उपयोग करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि एक वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।

266. खोटे बाट या माप को कब्जे में रखना -

जो कोई तोलने के ऐसे किसी उपकरण या बाट को, या लंबाई या धारिता के किसी माप को, जिसका खोटा होना वह जानता है, इस आशय से कब्जे में रखेगा कि उसे कपटपूर्वक उपयोग में लाया जाए वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि एक वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।

267. खोटे बाट या माप का बनाना या बेचना -

जो कोई तोलने के ऐसे किसी उपकरण या बाट को या लंबाई या धारिता के ऐसे किसी माप को, जिसका खोटा होना वह जानता है, इसलिए कि उसका खरे की तरह उपयोग किया जाए, या यह संभाव्य जानते हुए कि उसका खरे की तरह उपयोग किया जाए, बनाएगा, बेचेगा या व्ययनित करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि एक वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।

अध्याय 14: लोक स्वास्थ्य, क्षेम, सुविधा, शिष्टता और सदाचार पर प्रभाव डालने वाले अपराधों के विषय में 

268. लोक न्यूसेंस -

वह व्यक्ति लोक न्यूसेंस का दोषी है, जो कोई ऐसा कार्य करता है, या किसी ऐसे अवैध लोप का दोषी है, जिससे लोक को या जनसाधारण को जो आसपास में रहते हों या आसपास की संपत्ति पर अधिभोग रखते हों, कोई सामान्य क्षति, संकट या क्षोभ कारित हो या जिसमें उन व्यक्तियों का जिन्हें किसी लोक अधिकार को उपयोग में लाने का मौका पड़े, क्षति, बाधा, संकट या क्षोभ कारित होना अवश्यंभावी हो।

कोई सामान्य न्यूसेंस इस आधार पर माफी योग्य नहीं है, कि उससे कुछ सुविधा या भलाई कारित होती है।

269. उपेक्षापूर्ण कार्य जिससे जीवन के लिए संकटपूर्ण रोग का संक्रम फैलना संभाव्य हो -

जो कोई विधि विरुद्ध रूप से या उपेक्षा से ऐसा कार्य करेगा, जिससे कि, और जिससे वह जानता या विश्वास करने का कारण रखता हो कि, जीवन के लिए संकटपूर्ण किसी रोग का संक्रम फैलना संभाव्य है, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि छह मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।

270. परिद्वेषपूर्ण कार्य जिससे जीवन के लिए संकटपूर्ण रोग का संक्रम फैलना संभाव्य हो -

जो कोई परिद्वेष से ऐसा कोई कार्य करेगा जिससे कि, और जिससे वह जानता या विश्वास करने का कारण रखता हो, कि जीवन के लिए संकटपूर्ण किसी रोग का संक्रम फैलना संभाव्य है, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों में से, दण्डित किया जाएगा।

271. करन्तीन के नियम की अवज्ञा -

जो कोई किसी जलयान को करंतीन की स्थिति में रखे जाने के, या करंतीन की स्थिति वाले जलयानों का किनारे से या अन्य जलयानों से समागम विनियमित करने के, या ऐसे स्थानों के, जहां कोई संक्रामक रोग फैल रहा हो और अन्य स्थानों के बीच समागम विनियमित करने के लिए सरकार द्वारा बनाए गए और प्रख्यापित किसी नियम को जानते हुए, अवज्ञा करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि छह मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।

272. विक्रय के लिए आशयित खाद्य या पेय का अपमिश्रण -

जो कोई किसी खाने या पीने की वस्तु को इस आशय से कि वह ऐसी वस्तु के खाद्य या पेय के रूप में बेचे या यह संभाव्य जानते हुए कि वह खाद्य या पेय के रूप में बेची जाएगी, ऐसे अपमिश्रित करेगा कि ऐसी वस्तु खाद्य या पेय के रूप में अपायकर बन जाए, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि छह मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो एक हजार रुपए तक का हो सकेगा, या दोनों से दण्डित किया जाएगा।

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राज्य संशोधन

उत्तरप्रदेश - धाराओं 272, 273, 274, 275 एवं 276 में शब्दों “वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से जिसकी अवधि 6 माह तक की हो सकेगी या जुर्माने से जो एक हजार रुपए तक का हो सकेगा या दोनों से दण्डित किया जाएगा” के स्थान पर अग्रलिखित प्रतिस्थापित किया जाएगा, अर्थात्‌ :-

“आजीवन कारावास से दण्डित किया जाएगा और जुर्माने के भी दायित्वाधीन होगा:

परन्तु यह कि पर्याप्त कारणों से जिनका उल्लेख निर्णय में किया जाएगा, न्यायालय ऐसे कारावास का दण्डादेश अधिरोपित कर सकेगा, जो कि आजीवन कारावास से कम हो।”

देखें उत्तरप्रदेश अधिनियम संख्यांक 47 सन्‌ 1975 की धारा 3 (दिनांक 15-9-1975 से प्रभावशील)

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273. अपायकर खाद्य या पेय का विक्रय -

जो कोई किसी ऐसी वस्तु को, जो अपायकर कर दी गई हो, या हो गई हो, या खाने-पीने के लिए अनुपयुक्त दशा में हो, यह जानते हुए या यह विश्वास करने का कारण रखते हुए कि वह खाद्य या पेय के रूप में अपायकर है, खाद्य या पेय के रूप में बेचेगा, या बेचने की प्रस्थापना करेगा या बेचने के लिए अभिदर्शित करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि छह मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो एक हजार रुपए तक का हो सकेगा, या दोनों में से, दण्डित किया जाएगा।

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राज्य संशोधन

उत्तरप्रदेश - देखे धारा 272 के अधीन |

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274. औषधियों का अपमिश्रण -

जो कोई किसी औषधि या भेषजीय निर्मिति में अपमिश्रण इस आशय से कि या यह संभाव्य जानते हुए कि वह किसी औषधीय प्रयोजन के लिए ऐसे बेची जाएगी या उपयोग की जाएगी, मानो उसमें ऐसा अपमिश्रण न हुआ हो, ऐसे प्रकार से करेगा कि उस औषधि या भेषजीय निर्मिति की प्रभावकारिता कम हो जाएक्रिया बदल जाए या वह अपायकर हो जाए, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि छह मास तक की हो सकेगी,

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राज्य संशोधन

उत्तरप्रदेश - देखे धारा 272 के अधीन |

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275. अपमिश्रित औषधियों का विक्रय -

जो कोई यह जानते हुए कि किसी औषधि या भेषजीय निर्मिति में इस प्रकार से अपमिश्रण किया गया है कि उसकी प्रभावकारिता कम हो गई या उसकी क्रिया बदल गई है, या वह अपायकर बन गई है, उसे बेचेगा या बेचने की प्रस्थापना करेगा, या बेचने के लिए अभिदर्शित करेगा, या किसी औषधालय से औषधीय प्रयोजनों के लिए उसे अनपोमिश्रित के तौर पर देगा या उसका अपमिश्रित होना न जानने वाले व्यक्ति द्वारा औषधीय प्रयोजनों के लिए उसका उपयोग कारित करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि छह मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो एक हजार रुपए तक का हो सकेगा, या दोनों में से, दण्डित किया जाएगा।

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राज्य संशोधन

उत्तरप्रदेश - देखे धारा 272 के अधीन |

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276. औषधि का भिन्न औषधि या निर्मिति के तौर पर विक्रय -

जो कोई किसी औषधि या भेषजीय निर्मिति को, भिन्न औषधि या भेषजीय निर्मिति की तौर पर जानते हुए बेचेगा या बेचने की प्रस्थापना करेगा या बेचने के लिए अभिदर्शित करेगा या औषधीय प्रयोजनों के लिए औषधालय से देगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि छः मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो एक हजार रुपए तक का हो सकेगा, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।

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राज्य संशोधन

उत्तरप्रदेश - देखे धारा 272 के अधीन |

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277. लोक जल स्त्रोत या जलाशय का जल कलुषित करना -

जो कोई लोक जल-स्त्रोत या जलाशय के जल को स्वेच्छया इस प्रकार भ्रष्ट या कलुषित करेगा कि वह उस प्रयोजन के लिए, जिसके लिए वह मामूली तौर पर उपयोग में आता हो, कम उपयोगी हो जाए, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि तीन मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो पांच सौ रुपए तक का हो सकेगा, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।

278. वायुमण्डल को स्वास्थ्य के लिए अपायकर बनाना -

जो कोई किसी स्थान के वायुमंडल को स्वेच्छया इस प्रकार दूषित करेगा कि वह जनसाधारण के स्वास्थ्य के लिए जो पड़ोस में निवास या कारबार करते हों, या लोक मार्ग से आते जाते हों, अपायकर बन जाए, वह जुर्माने से, जो पांच सौ रुपए तक का हो सकेगा, दण्डित किया जायेगा

279. लोक मार्ग पर उतावलेपन से वाहन चलाना या हांकना -

जो कोई किसी लोक मार्ग पर ऐसे उतावलेपन या उपेक्षा से कोई वाहन चलाएगा या सवार होकर हांकेगा जिससे मानव जीवन संकटापन्न हो जाए, या  किसी अन्य व्यक्ति को उपहति या क्षति कारित होना संभाव्य हो, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि छह मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो एक हजार रुपए तक का हो सकेगा, या दोनों से दण्डित किया जाएगा।

280. जलयान का उतावलेपन से चलाना -

जो कोई किसी जलयान को ऐसे उतावलेपन या उपेक्षा से चलाएगा जिससे मानव जीवन संकटापन्न हो जाए या किसी अन्य व्यक्ति को उपहति या क्षति कारित हो या होना संभाव्य हो, वह दोनों में से किसी भाँति के कारावास से, जिसकी अवधि छह मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो एक हजार रुपये तक का हो सकेगा, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।

281. भ्रामक, प्रकाश चिन्ह या बोये का प्रदर्शन -

जो कोई किसी भ्रामक प्रकाश चिन्ह या बोये का प्रदर्शन इस आशय से, या यह संभाव्य जानते हुए करेगा, कि ऐसा प्रदर्शन किसी नौपरिवाहक को मार्ग भ्रष्ट कर देगा, वह दोनों में से किसी भाँति के कारावास से, जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से दण्डित किया जा सकेगा।

282. अक्षेमकर या अति लदे हुए जलयान में भाड़े के लिए जलमार्ग से किसी व्यक्ति का प्रवहण -

जो कोई किसी व्यक्ति को किसी जलयान में जल मार्ग से, जानते हुए या उपेक्षापूर्वक भाड़े पर तब प्रवहण करेगा, या कराएगा जब वह जलयान ऐसी दशा में हो या इतना लदा हुआ हो जिससे उस व्यक्ति का जीवन संकटापन्न हो सकता हो, वह दोनों में से किसी भाँति के कारावास से ,जिसकी अवधि छह मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो एक हजार रुपये तक का हो सकेगा, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।

283. लोक मार्ग या नौपरिवहन पथ में संकट या बाधा -

जो कोई किसी कार्य को कर के या अपने कब्जे में की, या अपने भार साधन के अधीन किसी, संपत्ति की व्यवस्था करने का लोप करने द्वारा किसी लोक मार्ग या नौपरिवहन के लोक पथ में किसी व्यक्ति को संकट, बाधा या क्षति कारित करेगा, वह जुर्माने से, जो दो सौ रुपए तक का हो सकेगा, दण्डित किया जाएगा।

284. विषैले पदार्थ के संबंध में उपेक्षापूर्ण आचरण -

जो कोई किसी विषैले पदार्थ से कोई कार्य ऐसे उतावलेपन या उपेक्षा से करेगा, जिससे मानव जीवन संकटापन्न हो जाए, या जिससे किसी व्यक्ति को, उपहति या क्षति कारित होना संभाव्य होया अपने कब्जे में के किसी विषैले पदार्थ की ऐसी व्यवस्था करने का, जो ऐसे विषैले पदार्थ से मानव जीवन को किसी अधिसंभाव्य संकट से बचाने के लिए पर्याप्त हो, जानते हुए, या उपेक्षापूर्वक लोप करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि छह मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो एक हजार रुपए तक का हो सकेगा, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।

285. अग्नि या ज्वलनशील पदार्थ के संबंध में उपेक्षापूर्ण आचरण -

जो कोई अग्नि या किसी ज्वलनशील पदार्थ से कोई कार्य ऐसे उतावलेपन या उपेक्षा से करेगा, जिससे मानव जीवन संकटापन्न हो जाए, या जिससे किसी अन्य व्यक्ति को उपहति या क्षति कारित होना संभाव्य हो अथवा अपने कब्जे में की अग्नि या किसी ज्वलनशील पदार्थ की ऐसी व्यवस्था करने का, जो ऐसी अग्नि या ज्वलनशील पदार्थ से मानव जीवन को किसी अधिसंभाव्य संकट से बचाने के लिए पर्याप्त हो, जानते हुए या उपेक्षापूर्वक लोप करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि छह मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो एक हजार रुपए तक का हो सकेगा, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।

286. विस्फोटक पदार्थ के बारे में उपेक्षापूर्ण आचरण -

जो कोई किसी विस्फोटक पदार्थ से, कोई कार्य ऐसे उतावलेपन या उपेक्षा से करेगा, जिससे मानव जीवन संकटापन्न हो जाए, या जिससे किसी अन्य व्यक्ति को उपहति या क्षति कारित होना संभाव्य होअथवा अपने कब्जे में के किसी विस्फोटक पदार्थ की ऐसे व्यवस्था करने का जैसी ऐसे पदार्थ से मानव जीवन को अधिसंभाव्य संकट से बचाने के लिए पर्याप्त हो, जानते हुए या उपेक्षापूर्वक लोप करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि छह मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो एक हजार रुपए तक का हो सकेगा, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।

287. मशीनरी के संबंध में उपेक्षापूर्ण आचरण -

जो कोई किसी मशीनरी से कोई कार्य ऐसे उतावलेपन या उपेक्षा से करेगा, जिससे मानव जीवन संकटापन्न हो जाए या जिससे किसी अन्य व्यक्ति को उपहति या क्षति कारित होना संभाव्य होअथवा अपने कब्जे में की या अपनी देखरेख के अधीन की किसी मशीनरी की ऐसी व्यवस्था करने का जो, ऐसी मशीनरी से मानव जीवन को किसी अधिसंभाव्य संकट से बचाने के लिए पर्याप्त हो, जानते हुए या उपेक्षापूर्वक लोप करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि छह मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो एक हजार रुपए तक का हो सकेगा, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।

288. किसी निर्माण को गिराने या उसकी मरम्मत करने के संबंध में उपेक्षापूर्ण आचरण -

जो कोई किसी निर्माण को गिराने या उसकी मरम्मत करने में उस निर्माण की ऐसी व्यवस्था करने का, जो उस निर्माण के या उसके किसी भाग के गिरने से मानव जीवन को किसी अधिसंभाव्य संकट से बचाने के लिए पर्याप्त हो, जानते हुए या उपेक्षापूर्वक लोप करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि छह मास तक की हो सकेगी. या जुर्माने से, जो एक हजार रुपए तक का हो सकेगा, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।

289. जीवजन्तु के संबंध में उपेक्षापूर्ण आचरण -

जो कोई अपने कब्जे में के किसी जीवजन्तु के संबंध में ऐसी व्यवस्था करने का, जो ऐसे जीव जंतु से मानव जीवन को किसी अधिसंभाव्य संकट या घोर उपहति के किसी अधिसंभाव्य संकट से बचाने के लिए पर्याप्त हो, जानते हुए या उपेक्षापूर्वक लोप करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि छह मांस तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो एक हजार रुपए तक का हो सकेगा, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।

290. अन्यथा अनुपबंधित मामलों में लोक न्यूसेंस के लिए दण्ड -

जो कोई किसी ऐसे मामले में लोक न्यूसेंस करेगा जो इस संहिता द्वारा अन्यथा दण्डनीय नहीं है, वह जुर्माने से, जो दो सौ रुपए तक का हो सकेगा, दण्डित किया जाएगा।

291. न्यूसेंस बंद करने के व्यादेश के पश्चात उसका चालू रखना -

जो कोई किसी लोक सेवक द्वारा, जिसको किसी न्यूसेंस की पुनरावृत्ति न करने या उसे चालू न रखने के लिए व्यादेश प्रचालित करने का प्राधिकार हो, ऐसे व्यादिष्ट किए जाने पर, किसी लोक न्यूसेंस की पुनरावृत्ति करेगा, या उसे चालू रखेगा, वह सादा कारावास से, जिसकी अवधि छह मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।

292. अश्लील पुस्तकों आदि का विक्रय आदि -

(1) उपधारा (2) के प्रयोजनार्थ किसी पुस्तक, पुस्तिका, कागज, लेख, रेखाचित्र, रंग चित्र, रूपण, आकृति या अन्य वस्तु को अश्लील समझा जाएगा यदि वह कामोद्दीपक है या कामुक व्यक्तियों के लिए रूचिकर है, या उसका या (जहां उसमें दो या अधिक सुभिन्न मदें समाविष्ट हैं वहां) उसकी किसी मद का प्रभाव, समग्ररूप से विचार करने पर, ऐसा है जो उन व्यक्तियों को दुराचारी तथा भ्रष्ट बनाए जिनके द्वारा उसमें अन्तर्विष्ट या सन्निविष्ट विषय का पढ़ा जाना, देखा जाना या सुना जाना सभी सुसंगत परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए संभाव्य है।

(2) जो कोई -

(क) किसी अश्लील पुस्तक, पुस्तिका, कागज, रेखाचित्र, रंगचित्र, रूपण, या आकृति या किसी भी अन्य अश्लील वस्तु को चाहे वह कुछ भी हो, बेचेगा, भाड़े पर देगा, वितरित करेगा, लोक प्रदर्शित करेगा, या उसको किसी भी प्रकार परिचालित करेगा, या उसे विक्रय, भाड़े, वितरण, लोक प्रदर्शन या परिचालन के प्रयोजनों के लिए रचेगा, उत्पादित करेगा, या अपने कब्जे में रखेगा, अथवा

(ख) किसी अश्लील वस्तु का आयात या निर्यात या प्रवहण पूर्वोक्त प्रयोजनों में से किसी प्रयोजन के लिए करेगा या यह जानते हुए, या यह विश्वास करने का कारण रखते हुए करेगा कि ऐसी वस्तु बेची, भाड़े पर दी, वितरित या लोक प्रदर्शित, या किसी प्रकार से परिचालित की जाएगी, अथवा

(ग) किसी ऐसे कारबार में भाग लेगा या उससे लाभ प्राप्त करेगा, जिस कारबार में वह यह जानता है या यह विश्वास करने का कारण रखता है, कि कोई ऐसी अश्लील वस्तुएं पूर्वोक्त प्रयोजनों में से किसी प्रयोजन के लिए रची जाती, उत्पादित की जाती, क्रय की जाती, रखी जाती, आयात की जाती, निर्यात की जाती, प्रवहण की जाती, लोक प्रदर्शित की जाती या किसी भी प्रकार से परिचालित की जाती है, अथवा

(घ) यह विज्ञापित करेगा या किन्हीं साधनों द्वारा चाहे वे कुछ भी हों यह ज्ञात कराएगा कि कोई व्यक्ति किसी ऐसे कार्य में, जो इस धारा के अधीन अपराध है, लगा हुआ है, या लगने के लिए तैयार है, या यह कि कोई ऐसी अश्लील वस्तु किसी व्यक्ति से या किसी व्यक्ति के द्वारा प्राप्त की जा सकती है, अथवा

(ङ) किसी ऐसे कार्य को जो इस धारा के अधीन अपराध है, करने की प्रस्थापना करेगा या करने का प्रयत्न करेगा,

प्रथम दोषसिद्धि पर दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी, और जुर्माने से, जो दो हजार रुपए तक का हो सकेगा, तथा द्वितीय या पश्चातवर्ती दोषसिद्धि की दशा में दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि पांच वर्ष तक की हो सकेगी, और जुर्माने से भी जो पांच हजार रुपए तक का हो सकेगा दण्डित किया जाएगा।

अपवाद - इस धारा का विस्तार निम्नलिखित पर न होगा -

(क) कोई ऐसी पुस्तक, पुस्तिका, कागज, लेख, रेखाचित्र, रंगचित्र, रूपण या आकृति - 

(i) जिसका प्रकाशन लोकहित में होने के कारण इस आधार पर न्यायोचित साबित हो गया है कि ऐसी पुस्तक, पुस्तिका, कागज, लेख, रेखाचित्र, रंगचित्र, रूपण या आकृति विज्ञान, साहित्य, कला या विद्या या सर्वजन संबंधी अन्य उद्देश्यों के हित में है, अथवा

(ii) जो सद्भावपूर्वक धार्मिक प्रयोजनों के लिए रखी या उपयोग में लाई जाती है;

(ख) कोई ऐसा रूपण जो - 

(i) प्राचीन संस्मारक तथा पुरातत्वीय स्थल और अवशेष अधिनियम, 1958 (1958 का 24) के अर्थ में प्राचीन संस्मारक पर या उसमें, अथवा

(ii) किसी मंदिर पर या उसमें या मूर्तियों के प्रवहण के उपयोग में लाए जाने वाले या किसी धार्मिक प्रयोजन के लिए रखे या उपयोग में लाए जाने वाले किसी रथ पर, तक्षित, उत्कीर्ण, रंगचित्रित या अन्यथा रूपित हों।

293. तरुण व्यक्ति को अश्लील वस्तुओं का विक्रय आदि -

जो कोई बीस वर्ष से कम आयु के किसी व्यक्ति को कोई ऐसी अश्लील वस्तु, जो अंतिम पूर्वगामी धारा में निर्दिष्ट है, बेचेगा, भाड़े पर देगा, वितरण करेगा, प्रदर्शित करेगा या परिचालित करेगा या ऐसा करने की प्रस्थापना या प्रयत्न करेगा, प्रथम दोषसिद्धि पर दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी, और जुर्माने से, जो दो हजार रुपए तक का हो सकेगा, तथा द्वितीय या पश्चात्वर्ती दोषसिद्धि की दशा में दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी और जुर्माने से भी, जो पांच हजार रुपए तक का हो सकेगा, दण्डित किया जाएगा।

294. अश्लील कार्य और गाने --

जो कोई - 

(क) किसी लोक स्थान में कोई अश्लील कार्य करेगा, अथवा

(ख) किसी लोक स्थान में या उसके समीप कोई अश्लील गाने, पवांड़े या शब्द गाएगा, सुनाएगा या उच्चारित करेगा, जिससे दूसरों को क्षोभ होता हो, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि तीन मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।

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राज्य संशोधन

मध्यप्रदेश एवं छत्तीसगढ़ - न्यायालय की अनुमति से, उस व्यक्ति द्वारा शमनीय जिसके विरुद्ध अश्लील कृत्य किये गये हैं या अश्लील शब्द प्रयुक्त हुए हैं।

[देखें म.प्र. अधिनियम सं. 17 सन्‌ 1999 की धारा 3 (21-5- 1999 से प्रभावशील) ।]

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294 क. लाटरी कार्यालय रखना -

जो कोई ऐसी लाटरी, जो न तो राज्य लाटरी हो और न तत्संबंधित राज्य सरकार द्वारा प्राधिकृत लाटरी होनिकालने के प्रयोजन के लिए कोई कार्यालय या स्थान रखे दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि छह मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से या दोनों से, दण्डित किया जाएगा;

तथा जो कोई ऐसी लाटरी में किसी टिकट, लाट, संख्यांक या आकृति को निकालने से संबंधित या लागू होने वाली किसी घटना या परिस्थिति पर किसी व्यक्ति के फायदे के लिए किसी राशि को देने की, या किसी माल के परिदान की, या किसी बात को करने की, या किसी बात से प्रविरत रहने की कोई प्रस्थापना प्रकाशित करेगा, वह जुर्माने से, जो एक हजार रुपए तक का हो सकेगा, दण्डित किया जाएगा।

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राज्य संशोधन

उत्तरप्रदेश - धारा 294क विलोपित |

[देखें उत्तरप्रदेश अधिनियम संख्यांक 24 सन्‌ 1995 की धारा 11]

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अध्याय 15: धर्म से सम्बंधित अपराधों के विषय में

295. किसी वर्ग के धर्म का अपमान करने के आशय से उपासना के स्थान को क्षति करना या अपवित्र करना -

जो कोई किसी उपासना के स्थान को या व्यक्तियों के किसी वर्ग द्वारा पवित्र मानी गई किसी वस्तु को नष्ट, नुकसान ग्रस्त या अपवित्र इस आशय से करेगा कि किसी वर्ग के धर्म का तद्द्वारा अपमान किया जाए, या यह संभाव्य जानते हुए करेगा कि व्यक्तियों का कोई वर्ग ऐसे नाश, नुकसान या अपवित्र किए जाने को अपने धर्म के प्रति अपमान समझेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।

295 क, विमर्शित और विद्वेषपूर्ण कार्य जो किसी वर्ग के धर्म या धार्मिक विश्वासों का अपमान करके उसकी धार्मिक भावनाओं को आहत करने के आशय से किए गए हों -

जो कोई भारत के नागरिकों के किसी वर्ग की धार्मिक भावनाओं को आहत करने के विमर्शित और विद्वेषपूर्ण आशय से उस वर्ग  के धर्म या धार्मिक विश्वासों का अपमान, उच्चारित या लिखित शब्दों द्वारा या संकेतों द्वारा या दृश्यरूपणों द्वारा या अन्यथा करेगा या करने का प्रयत्न करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।

296. धार्मिक जमाव में विघ्न करना -

जो कोई धार्मिक उपासना या धार्मिक संस्कारों में वैध रूप से लगे हुए किसी जमाव में स्वेच्छया विघ्न कारित करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि एक वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।

297. कब्रिस्तानों आदि में अतिचार करना -

जो कोई किसी उपासना स्थान में, या किसी कब्रिस्तान पर या अन्त्येष्टि क्रियाओं के लिए या मृतकों के अवशेषों के लिए निक्षेप स्थान के रूप में पृथक रखे गए किसी स्थान में अतिचार या किसी मानव शव की अवहेलना या अन्त्येष्टि संस्कारों के लिए एकत्रित किन्हीं व्यक्तियों को विघ्न कारितइस आशय से करेगा कि किसी व्यक्ति की भावनाओं को ठेस पहुंचाए या किसी व्यक्ति के धर्म का अपमान करे, या यह संभाव्य जानते हुए करेगा कि तद्द्वारा किसी व्यक्ति की भावनाओं को ठेस पहुंचेगी, या किसी व्यक्ति के धर्म का अपमान होगावह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि एक वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।

298. धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने के विमर्शित आशय से शब्द उच्चारित करना आदि -

जो कोई किसी व्यक्ति की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने के विमर्शित आशय से उसकी श्रवणगोचरता में कोई शब्द उच्चारित करेगा या कोई ध्वनि करेगा या उसकी दृष्टिगोचरता में कोई अंगविक्षेप करेगा, या कोई वस्तु रखेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से जिसकी अवधि एक वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।

अध्याय 16: मानव शरीर पर प्रभाव डालने वाले अपराधों विषय में

जीवन के लिए संकटकारी अपराधों के विषय में

299. आपराधिक मानव वध -

जो कोई मृत्यु कारित करने के आशय से, या ऐसी शारीरिक क्षति कारित करने के आशय से जिससे मृत्यु कारित हो जाना संभाव्य हो, या यह ज्ञान रखते हुए कि यह संभाव्य है कि वह उस कार्य से मृत्यु कारित कर दे, कोई कार्य करके मृत्यु कारित कर देता है, वह आपराधिक मानव वध का अपराध करता है।

दृष्टांत -

(क) क एक गड्डे पर लकड़ियां और घास इस आशय से बिछाता है कि तद्द्वारा मृत्यु कारित करे या यह ज्ञान रखते हुए बिछाता है कि संभाव्य है कि तद्द्वारा मृत्यु कारित हो। य यह विश्वास करते हुए कि वह भूमि सुदृढ़ है उस पर चलता है, उसमें गिर पड़ता है और मारा जाता है। क ने आपराधिक मानव वध का अपराध किया है।

(ख) क यह जानता है कि य एक झाड़ी के पीछे है। ख यह नहीं जानता। य की मृत्यु करने के आशय से या यह जानते हुए कि उससे य की मृत्यु कारित होना संभाव्य है, ख को उस झाड़ी पर गोली चलाने के लिए क उत्प्रेरित करता है। ख गोली चलाता है और य को मार डालता है। यहां, यह हो सकता है कि ख किसी भी अपराध का दोषी न हो, किन्तु क ने आपराधिक मानव वध का अपराध किया है।

(ग) क एक मुर्गे को मार डालने और उसे चुरा लेने के आशय से उस पर गोली चलाकर ख को, जो एक झाड़ी के पीछे है, मार डालता है, किन्तु क यह नहीं जानता था कि ख वहां है। यहां यद्यपि क विधिविरुद्ध कार्य कर रहा थातथापि वह आपराधिक मानव वध का दोषी नहीं है क्योंकि उसका आशय ख को मार डालने का, या कोई ऐसा कार्य करके, जिससे मृत्यु कारित करना वह संभाव्य जानता हो, मृत्यु कारित करने का नहीं था।

स्पष्टीकरण 1 - वह व्यक्ति, जो किसी दूसरे व्यक्ति को, जो किसी विकार, रोग या अंगशैथिल्य से ग्रस्त है, शारीरिक क्षति कारित करता है और तद्द्वारा उस दूसरे व्यक्ति की मृत्यु त्वरित कर देता है, उसकी मृत्यु कारित करता है, यह समझा जाएगा।

स्पष्टीकरण 2 - जहां कि शारीरिक क्षति से मृत्यु कारित की गई हो, वहां जिस व्यक्ति ने, ऐसी शारीरिक क्षति कारित की हो, उसने वह मृत्यु कारित की है, यह समझा जाएगा, यद्यपि उचित उपचार और कौशल पूर्ण चिकित्सा करने से वह मृत्यु रोकी जा सकती थी।

स्पष्टीकरण 3 - मां के गर्भ में स्थित किसी शिशु की मृत्यु कारित करना मानव वध नहीं है। किन्तु किसी जीवित शिशु की मृत्यु कारित करना आपराधिक मानव वध की कोटि में आ सकेगा, यदि उस शिशु का कोई भाग बाहर निकल आया हो, यद्यपि उस शिशु ने श्वास न ली हो या वह पूर्णतः उत्पन्न न हुआ हो।

300. हत्या -

एतस्मिन् पश्चात् अपवादित दशाओं को छोड़कर आपराधिक मानव वध हत्या है, यदि वह कार्य, जिसके द्वारा मृत्यु कारित की गई हो, मृत्यु कारित करने के आशय से किया गया हो, अथवा

दूसरा - यदि वह ऐसी शारीरिक क्षति कारित करने के आशय से किया गया हो जिससे अपराधी जानता हो कि उस व्यक्ति की मृत्यु कारित करना संभाव्य है, जिसको वह अपहानि कारित की गई है, अथवा

तीसरा - यदि वह किसी व्यक्ति को शारीरिक क्षति कारित करने के आशय से किया गया हो और वह शारीरिक क्षति, जिसके कारित करने का आशय हो, प्रकृति के मामूली अनुक्रम में मृत्यु कारित करने के लिए पर्याप्त हो, अथवा

चौथा- यदि कार्य करने वाला व्यक्ति यह जानता हो कि वह कार्य इतना आसन्नसंकट है कि पूरी अधि संभाव्यता है कि वह मृत्यु कारित कर ही देगा या ऐसी शारीरिक क्षति कारित कर ही देगा जिससे मृत्यु कारित होना संभाव्य है, और वह मृत्यु कारित करने या पूर्वोक्त रूप की क्षति कारित करने की जोखिम उठाने के लिए किसी प्रतिहेतु के बिना ऐसा कार्य करे।

दृष्टांत -

(क) य को मार डालने के आशय से क उस पर गोली चलाता है, परिणामस्वरूप य मर जाता है। क हत्या करता है।

(ख) क यह जानते हुए कि य ऐसे रोग से ग्रस्त है कि संभाव्य है कि एक प्रहार उसकी मृत्यु कारित कर दे, शारीरिक क्षति कारित करने के आशय से उस पर आघात करता है। य उस प्रहार के परिणामस्वरूप मर जाता है। क हत्या का दोषी है, यद्यपि वह प्रहार किसी अच्छे स्वस्थ व्यक्ति की मृत्यु करने के लिए प्रकृति के मामूली अनुक्रम में पर्याप्त न होता किन्तु यदि क, यह न जानते हुए कि य किसी रोग से ग्रस्त है, उस पर ऐसा प्रहार करता है, जिससे कोई अच्छा स्वस्थ व्यक्ति प्रकृति के मामूली अनुक्रम में न मरता, तो यहां, क यद्यपि शारीरिक क्षति कारित करने का उसका आशय हो, हत्या का दोषी नहीं है, यदि उसका आशय मृत्यु कारित करने का या ऐसी शारीरिक क्षति कारित करने का नहीं था, जिससे प्रकृति के मामूली अनुक्रम में मृत्यु कारित हो जाए।

(ग) य को तलवार या लाठी से ऐसा घाव क साशय करता है, जो प्रकृति के मामूली अनुक्रम में किसी मनुष्य की मृत्यु कारित करने के लिए पर्याप्त है। परिणामस्वरूप य की मृत्यु कारित हो जाती है, यहां क हत्या का दोषी है, यद्यपि उसका आशय य की मृत्यु कारित करने का न रहा हो।

(घ) क किसी प्रतिहेतु के बिना व्यक्तियों के एक समूह पर भरी हुई तोप चलाता है और उनमें से एक का वध कर देता है। क हत्या का दोषी है, यद्यपि किसी विशिष्ट व्यक्ति की मृत्यु कारित करने की उसकी पूर्वचिन्तित परिकल्पना न रही हो।

अपवाद 1 -

आपराधिक मानव वध कब हत्या नहीं है - आपराधिक मानव वध हत्या नहीं है, यदि अपराधी उस समय जबकि वह गंभीर और अचानक प्रकोपन से आत्म-संयम की शक्ति से वंचित हो, उस व्यक्ति की जिसने कि वह प्रकोपन दिया था, मृत्युकारित करे या किसी अन्य व्यक्ति की मृत्यु भूल या दुर्घटनावश कारित करे ऊपर का अपवाद निम्नलिखित परन्तुकों के अध्यधीन है -

पहला - यह कि वह प्रकोपन किसी व्यक्ति का वध करने या अपहानि करने के लिए अपराधी द्वारा प्रतिहेतु के रूप में ईप्सित न हो या स्वेच्छया प्रकोपित न हो।

दुसरा - यह कि वह प्रकोपन किसी ऐसी बात द्वारा न दिया गया हो जो विधि के पालन में या लोक सेवक द्वारा ऐसे लोक सेवक की शक्तियों के विधिपूर्ण प्रयोग में, की गई हो।

तीसरा - यह कि वह प्रकोपन किसी ऐसी बात द्वारा न दिया गया हो, जो प्राइवेट प्रतिरक्षा के अधिकार के विधिपूर्ण प्रयोग में की गई हो।

स्पष्टीकरण - प्रकोपन इतना गंभीर और अचानक था या नहीं कि अपराध को हत्या की कोटि में जाने से बचा दे, यह तथ्य का प्रश्न है।

दृष्टांत -

(क) य द्वारा किए गए प्रकोपन के कारण प्रदीप्त आवेश के असर में म का, जो य का शिशु है, क साशय वध करता है। यह हत्या है, क्योंकि प्रकोपन उस शिशु द्वारा नहीं दिया गया था और उस शिशु की मृत्यु उस प्रकोपन से किए गए कार्य को करने में दुर्घटना या दुर्भाग्य से नहीं हुई है।

(ख) क को म गंभीर और अचानक प्रकोपन देता है। क इस प्रकोपन से म पर पिस्तौल चलाता है, जिसमें न तो उसका आशय य का, जो समीप ही है किन्तु दृष्टि से बाहर है, वध करने का है, और न वह यह जानता है कि संभाव्य है कि वह य का वध कर दे। क, य का वध करता है। यहां क ने हत्या नहीं की है, किन्तु केवल आपराधिक मानव वध किया है।

(ग) य द्वारा जो, एक बेलिफ है, क विधिपूर्वक गिरफ्तार किया जाता है। उस गिरफ्तारी के कारण क को अचानक और तीव्र आवेश आ जाता है और वह य का वध कर देता है। यह हत्या है, क्योंकि प्रकोपन ऐसी बात द्वारा दिया गया था, जो एक लोक सेवक द्वारा उसकी शक्ति के प्रयोग में की गई थी।  

(घ) य के समक्ष, जो एक मजिस्ट्रेट है, साक्षी के रूप में क उपसंजात होता है। य यह कहता है कि वह क के अभिसाक्ष्य के एक शब्द पर भी विश्वास नहीं करता और यह कि क ने शपथभंग किया है। क को इन शब्दों से अचानक आवेश आ जाता है और वह य का वध कर देता है। यह हत्या है।

(ङ) य की नाक खींचने का प्रयत्न क करता है। य प्राइवेट प्रतिरक्षा के अधिकार के प्रयोग में ऐसा करने से रोकने के लिए क को पकड़ लेता है। परिणामस्वरूप क को अचानक और तीव्र आवेश आ जाता है और वह य का वध कर देता है। यह हत्या है, क्योंकि प्रकोपन ऐसी बात द्वारा दिया गया था जो प्राइवेट प्रतिरक्षा के अधिकार के प्रयोग में की गई थी।

(च) ख पर य आघात करता है। ख को इस प्रकोपन से तीव्र क्रोध आ जाता है। क, जो निकट ही खड़ा हुआ है, ख के क्रोध का लाभ उठाने और उससे य का वध कराने के आशय से उसके हाथ में एक छुरी उस प्रयोजन के लिए दे देता है। ख उस छुरी से य का वध कर देता है। यहां ख ने चाहे केवल आपराधिक मानव वध ही किया हो, किन्तु क हत्या का दोषी है।

अपवाद 2 - आपराधिक मानव वध हत्या नहीं है, यदि अपराधी, शरीर या संपत्ति की प्राइवेट प्रतिरक्षा के अधिकार को सद्भावपूर्वक प्रयोग में लाते हुए विधि द्वारा उसे दी गई शक्ति का अतिक्रमण कर दे, और पूर्वचिन्तन बिना और ऐसी प्रतिरक्षा के प्रयोजन से जितनी अपहानि करना आवश्यक हो उससे अधिक अपहानि करने के किसी आशय के बिना उस व्यक्ति की मृत्यु कारित कर दे जिसके विरुद्ध वह प्रतिरक्षा का ऐसा अधिकार प्रयोग में ला रहा हो क को चाबुक मारने का प्रयत्न य करता है, किन्तु इस प्रकार नहीं कि क को घोर उपहति कारित हो। क एक पिस्तौल निकाल लेता है। य हमले को चालू रखता है। क सद्भावपूर्वक यह विश्वास करते हुए कि वह अपने को चाबुक लगाए जाने से किसी अन्य साधन द्वारा नहीं बचा सकता है, गोली से य का वध कर देता है। क ने हत्या नहीं की है, किन्तु केवल आपराधिक मानव वध किया है।

अपवाद 3 - आपराधिक मानव वध हत्या नहीं है, यदि अपराधी ऐसा लोक सेवक होते हुए, या ऐसे लोक सेवक को मदद देते हुए, जो लोक न्याय की अग्रसरता में कार्य कर रहा है, उसे विधि द्वारा दी गई शक्ति से आगे बढ़ जाए, और कोई ऐसा कार्य करके जिसे वह विधिपूर्ण और ऐसे लोक सेवक के नाते उसके कर्त्तव्य के सम्यक निर्वहन के लिए आवश्यक होने का सद्भावपूर्वक विश्वास करता है, और उस व्यक्ति के प्रति, जिसकी कि मृत्युकारित की गई है, वैमनस्य के बिना मृत्यु कारित करे।

अपवाद 4 - आपराधिक मानव वध हत्या नहीं है, यदि वह मानव वध अचानक झगड़ा जनित आवेश की तीव्रता में हुई अचानक लड़ाई में पूर्वचिन्तन बिना और अपराधी द्वारा अनुचित लाभ उठाए बिना या क्रूरतापूर्ण या अप्रायिक रीति से कार्य किए बिना किया गया हो।

स्पष्टीकरण - ऐसी दशाओं में यह तत्वहीन है कि कौन पक्ष प्रकोपन देता है या पहला हमला करता है।

अपवाद 5 - आपराधिक मानव वध हत्या नहीं है, यदि वह व्यक्ति जिसकी मृत्यु कारित की जाए, अठारह वर्ष से अधिक आयु का होते हुए, अपनी सम्मति से मृत्यु होना सहन करे, या मृत्यु की जोखिम उठाए।

दृष्टांत -

य को, जो अठारह वर्ष से कम आयु का है, उकसाकर क उससे स्वेच्छया आत्महत्या करवाता है। यहां कम उम्र होने के कारण य अपनी मृत्यु के लिए सम्मति देने में असमर्थ था, इसलिए क ने हत्या का दुष्प्रेरण किया है। GO toTOP

301. जिस व्यक्ति की मृत्यु कारित करने का आशय था उससे भिन्न व्यक्ति की मृत्यु करके आपराधिक मानव वध -

यदि कोई व्यक्ति कोई ऐसी बात करने द्वारा, जिससे उसका आशय मृत्यु कारित करना होया जिससे वह जानता हो कि मृत्यु कारित होना संभाव्य है, किसी व्यक्ति की मृत्यु कारित करके, जिसकी मृत्यु कारित करने का न तो उसका आशय हो और न वह यह संभाव्य जानता हो कि वह उसकी मृत्यु कारित करेगा, आपराधिक मानव वध करे, तो अपराधी द्वारा किया गया आपराधिक मानव वध उस भांति का होगा जिस भांति का वह होता, यदि वह उस व्यक्ति की मृत्यु कारित करता जिसकी मृत्यु कारित करना उसके द्वारा आशयित था या वह जानता था कि उस द्वारा उसकी मृत्यु कारित होना संभाव्य है।

302. हत्या के लिए दण्ड -

जो कोई हत्या करेगा, वह मृत्यु या आजीवन कारावास से दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।

303. आजीवन सिद्धदोष द्वारा हत्या के लिए दण्ड -

जो कोई आजीवन कारावास के दण्डादेश के अधीन होते हुए हत्या करेगा, वह मृत्यु से दण्डित किया जाएगा।

304. हत्या की कोटि में न आने वाले आपराधिक मानव वध के लिए दण्ड -

जो कोई ऐसा आपराधिक मानव वध करेगा, जो हत्या की कोटि में नहीं आता है, यदि वह कार्य जिसके द्वारा मृत्यु कारित की गई है, मृत्यु या ऐसी शारीरिक क्षति, जिससे मृत्यु होना संभाव्य है, कारित करने के आशय से किया जाए, तो वह आजीवन कारावास से, या दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा;

अथवा यदि वह कार्य इस ज्ञान के साथ कि उससे मृत्यु कारित करना संभाव्य है, किन्तु मृत्यु या ऐसी शारीरिक क्षति, जिससे मृत्यु कारित करना संभाव्य है, कारित करने के किसी आशय के बिना किया जाए, तो वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।

304 क. उपेक्षा द्वारा मृत्यु कारित करना -

जो कोई उतावलेपन के या उपेक्षापूर्ण किसी ऐसे कार्य से किसी व्यक्ति की मृत्यु कारित करेगा, जो आपराधिक मानव वध की कोटि में नहीं आता, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।

304 ख. दहेज मृत्यु -

(1) जहां किसी स्त्री की मृत्यु किसी दाह या शारीरिक क्षति द्वारा कारित की जाती है या उसके विवाह के सात वर्ष के भीतर सामान्य परिस्थितियों से अन्यथा हो जाती है और यह दर्शित किया जाता है कि उसकी मृत्यु के कुछ पूर्व उसके पति ने या उसके पति के नातेदार ने, दहेज की किसी मांग के लिए, या उसके संबंध में, उसके साथ क्रूरता की थी, या उसे तंग किया था वहां ऐसी मृत्यु को “दहेज मृत्यु” कहा जाएगा, और ऐसा पति या नातेदार उसकी मृत्यु कारित करने वाला समझा जायेगा।

स्पष्टीकरण - इस उपधारा के प्रयोजनों के लिए "दहेज का वही अर्थ है जो दहेज प्रतिषेध अधिनियम, 1961 (1961 का 28) की धारा 2 में है।

(2) जो कोई दहेज मृत्यु कारित करेगा वह कारावास से, जिसकी अवधि सात वर्ष से कम की नहीं होगी किन्तु जो आजीवन कारावास तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा।

305. शिशु या उन्मत्त व्यक्ति की आत्महत्या का दुष्प्रेरण -

यदि कोई अठारह वर्ष से कम आयु का व्यक्ति, कोई उन्मत्त व्यक्ति, कोई विपर्यस्त चित्त व्यक्ति, कोई जड़ व्यक्ति, या कोई व्यक्ति, जो मत्तता की अवस्था में है, आत्महत्या कर ले तो जो कोई ऐसी आत्महत्या के किए जाने का दुष्प्रेरण करेगा, वह मृत्यु या आजीवन कारावास या कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष से अधिक की न हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।

306. आत्महत्या का दुष्प्रेरण -

यदि कोई व्यक्ति आत्महत्या करे, तो जो कोई ऐसी आत्महत्या का दुष्प्रेरण करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।

307. हत्या करने का प्रयत्न -

जो कोई किसी कार्य को ऐसे आशय या ज्ञान से और ऐसी परिस्थितियों में करेगा कि यदि वह उस कार्य द्वारा मृत्यु कारित कर देता है तो वह हत्या का दोषी होता, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा, और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा, और यदि ऐसे कार्य द्वारा किसी व्यक्ति को उपहति कारित हो जाए, तो वह अपराधी या तो आजीवन कारावास से या ऐसे दण्ड से दण्डनीय होगा, जैसा एतस्मिनपूर्व वर्णित है।

आजीवन सिद्धदोष द्वारा प्रयत्न - जबकि इस धारा में वर्णित अपराध करने वाला कोई व्यक्ति आजीवन कारावास के दण्डादेश के अधीन हो, तब यदि उपहति कारित हुई हो, तो वह मृत्यु से दण्डित किया जा सकेगा।

दृष्टांत -

(क) य का वध करने के आशय से क उस पर ऐसी परिस्थितियों में गोली चलाता है कि यदि मृत्यु हो जाती, तो क हत्या का दोषी होता क इस धारा के अधीन दण्डनीय है। 

(ख) क कोमल वयस के शिशु की मृत्यु करने के आशय से उसे एक निर्जन स्थान में अरक्षित छोड़ देता है  ने इस धारा द्वारा परिभाषित अपराध किया है, यद्यपि परिणामस्वरूप उस शिशु की मृत्यु नहीं होती।

(ग) य की हत्या का आशय रखते हुए क एक बंदूक खरीदता है और उसको भरता है। क ने अभी तक अपराध नहीं किया है। य पर क बंदूक चलाता है। उसने इस धारा में परिभाषित अपराध किया है, और यदि इस प्रकार गोली मारकर वह य को घायल कर देता है, तो वह इस धारा के प्रथम पैरे के पिछले भाग द्वारा उपबंधित दण्ड से दण्डनीय है।

(घ) विष द्वारा य की हत्या करने का आशय रखते हुए क विष खरीदता है, और उसे उस भोजन में मिला देता है, जो क के अपने पास रहता है; क ने इस धारा में परिभाषित अपराध अभी तक नहीं किया है। क उस भोजन को य की मेज पर रखता है, या उसको य की मेज पर रखने के लिए य के सेवकों को परिदत्त करता है। क ने इस धारा में परिभाषित अपराध किया है।

308. आपराधिक मानव वध करने का प्रयत्न -

जो कोई किसी कार्य को ऐसे आशय या ज्ञान से और ऐसी परिस्थितियों में करेगा कि यदि उस कार्य से वह मृत्यु कारित कर देता, तो वह हत्या की कोटि में न आने वाले आपराधिक मानव वध का दोषी होता, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा; और यदि ऐसे कार्य द्वारा किसी व्यक्ति को उपहति हो जाए, तो वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।

दृष्टांत -

क गंभीर और अचानक प्रकोपन पर, ऐसी परिस्थितियों में, य पर पिस्तौल चलाता है कि यदि तद्द्वारा वह मृत्यु कारित कर देता तो वह हत्या की कोटि में न आने वाले आपराधिक मानव वध का दोषी होता। क ने इस धारा में परिभाषित अपराध किया है

309. आत्महत्या करने का प्रयत्न -

जो कोई आत्महत्या करने का प्रयत्न करेगा, और उस अपराध के करने के लिए कोई कार्य करेगा वह सादा कारावास से, जिसकी अवधि एक वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।

310. ठग -

जो कोई इस अधिनियम के पारित होने के पश्चात् किसी समय हत्या द्वारा या हत्या सहित लूट या शिशुओं की चोरी करने के प्रयोजन के लिए अन्य व्यक्ति या अन्य व्यक्तियों से अभ्यासत: सहयुक्त रहता है, वह ठग है।

311. दण्ड -

जो कोई ठग होगा, वह आजीवन कारावास से दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।

गर्भपात कारित करनेअजात शिशुओं को क्षति कारित करने,

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